Edited By Urmila,Updated: 19 Jan, 2025 10:56 AM
चाहे प्रशासन द्वारा जानलेवा चाइना डोर की बिक्री रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे है, परंतु न तो चाइना डोर खरीदने वालों को कोई डर है और न ही बेचने वालों को।
शेरपुर : चाहे प्रशासन द्वारा जानलेवा चाइना डोर की बिक्री रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे है, परंतु न तो चाइना डोर खरीदने वालों को कोई डर है और न ही बेचने वालों को, जब अब दुकानों पर सख्ती हो गई है तो चाइना डोर ऑनलाइन खरीदी जाने लगी है। इस खूनी डोर का व्यापार करने वाले अनेकों लोग इसे ऑनलाइन मंगवा रहे है। चाइना डोर की मांग को देखते हुए ऑनलाइन व्यापार करने वाले बहुत से लोग इसे ऑनलाइन मंगवा रहे है। चाइना डोर की मांग को देखते हुए ऑनलाइन व्यापार करने वाली कंपनियों ने चाइना डोर की डिलीवरी मुफ्त कर दी है।
1000 रुपए तक बिक रही है डोर
इस संबंधी एक नौजवान ने अपना नाम गुप्त रखने पर बताया कि ऑनलाइन चाइना डोर बहुत ही आसान ढंग से मंगवाई जा सकती है। उसने बताया कि उसने चाइना डोर का एक गट्टू एक हजार रुपए का मंगवाया है। कंपनीयां और मंगवाए सामान को घर पहुंचाने के अलग से पैसे लेती है, परंतु उनके द्वारा चाइना डोर को मुफ्त लोगों के घरों तक पहुंचाया जा रहा है। 100 रुपए का गट्टू खरीदकर इसे 800 रुपए में बेचा जा रहा है।
भारत में ही बनती है चाइना डोर, प्लास्टिक के धागे पर चढ़ाई जाती है कांच की परत
चायना डोर कहा जाता है कि यह मजबूत धागा चीन नही बल्कि भारत में ही बनता है और यहीं बड़ी मात्रा में इसकी बिक्री होती है। चाइना डोर या चाइना मांझा पतंग उड़ाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला सूती धागा नही, बल्कि यह सिंथैटिक (प्लास्टिक और अन्य बनावटी कच्चे पदार्थों से तैयार) या नाइलोन का बना धागा है। इस धागे को कांच के बारीक टुकड़ों की परत चढ़ाकर तेज किया जाता है।
इन कानूनों तहत हो सकती है कार्रवाई
चाइना डोर बेचने और इसके प्रयोग पर नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2017 में ही पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए पत्र भी जारी किया था। चाइना डोर बेचने और प्रयोग करने वालों के खिलाफ अब राज्य में जिला मैजिस्ट्रेट के आदेशों की उल्लघंन के साथ सैक्शन 15 एनवायरनमैंट प्रोटैक्शन एक्ट तहत केस दर्ज किए जा रहे है, जिस तहत आरोपी पाए जाने पर 5 वर्ष तक की कैद हो सकती है। इसके अलावा चाइना डोर का प्रयोग और बिक्री करने वालों के खिलाफ आफ क्रूटली आफ एनीमल एक्ट 1960 और वर्ल्डलाइफ प्रोटैक्शन एक्ट 1972 तहत भी कार्रवाई की जा सकती है।
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