Edited By Urmila,Updated: 01 Jan, 2025 12:27 PM
पिछले काफी समय जालंधर नगर निगम जबरदस्त आर्थिक तंगी का शिकार रहा जिसका कारण यह रहा कि राज्य सरकार द्वारा जी.एस.टी. शेयर में से जो राशि जालंधर निगम को भेजी जाती थी।
जालंधर: पिछले काफी समय जालंधर नगर निगम जबरदस्त आर्थिक तंगी का शिकार रहा जिसका कारण यह रहा कि राज्य सरकार द्वारा जी.एस.टी. शेयर में से जो राशि जालंधर निगम को भेजी जाती थी, उसमें कटौती की गई और निगम को तयशुदा पैसों में से कम राशि मिलती रही जिस कारण निगम के सामने तो कई बार कर्मचारियों को देने वाले वेतन का संकट खड़ा हो जाता रहा।
इन दिनों भी नगर निगम आर्थिक संकट झेल ही रहा है और निगम में केवल जरूरी खर्च ही किए जा रहे हैं। इस आर्थिक तंगी के कारणों की ओर जाएं तो सबसे बड़ा कारण यही नजर आता है कि इस समय जालंधर नगर निगम में कई फालतू खर्चे हो रहे हैं। नगर निगम में कई जे.ई. ऐसे भी हैं जो फिजूल कामों के भी एस्टीमेट बनाए जा रहे हैं, वह एस्टीमेट पास भी हो रहे हैं और उनके आधार पर वह काम भी करवाए जा रहे हैं, जिनकी कोई जरूरत ही नहीं होती।
कई काम ऐसे गिनाए जा सकते हैं जो एक दो लाख रुपए की रिपेयर से किए जा सकते हैं परंतु ऐसा न करके 20-30 लाख रुपए का एस्टीमेट बना दिया जाता है। यही कारण है कि नगर निगम की आर्थिक तंगी दूर होने का नाम नहीं ले रही। अब नए मेयर जल्द ही निगम में पदभार ग्रहण करने जा रहे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि उनके सामने भी निगम का यह आर्थिक संकट बरकरार रहेगा क्योंकि हाल ही में चुनावों से पहले निगम अधिकारियों ने करीब 65 करोड़ के विकास कार्यों के टैंडर लगा लिए हैं जिनमें से 32-33 करोड़ के टैंडर तो खोल दिए गए हैं जबकि बाकी टैंडर जल्द खोल दिए जाएंगे। इनमें से 32 करोड़ रुपए तो स्मार्ट सिटी ने अदा करने हैं पर बाकी पैसे निगम फंड से खर्च होने हैं। जिस कारण निगम आर्थिक संकट में फंस सकता है। हाल ही में सैंक्शन के आधार पर भी निगम में करोड़ों के काम हुए हैं जिनकी पेमेंट भी आने वाले दिनों में निगम को करनी होगी।
कई ठेकेदारों ने 45 प्रतिशत डिस्काउंट पर टैंडर लिए, मैटेरियल महंगा, काम सही कैसे होंगे
करीब डेढ़ साल पहले मुख्यमंत्री ने जालंधर निगम को 50 करोड़ की ग्रांट दी थी जिसमें से निगम के कई ठेकेदारों ने 30-40 प्रतिशत डिस्काऊंट ऑफर करके काम ले लिए थे। उसके बाद भी ज़्यादातर काम 40 प्रतिशत से ज़्यादा डिस्काऊंट पर गए। इस बार भी निगम ने अपने पैसों के जो टैंडर लगाएं हैं, उनमें से कई काम ठेकेदारों ने 45 प्रतिशत डिस्काऊंट ऑफर करके लिए हैं। डिस्काऊंट देने के अलावा ठेकेदारों को निगम अधिकारियों को कमीशन भी देनी पड़ रही हैं और अर्नेस्ट मनी, जी.एस.टी., लेबर सैस, इंकम टैक्स जैसे खर्च भी उठाने पड़ रहे हैं। बाकी बची राशि से काम कैसे पूरे किए जाएंगे, इस बाबत निगम के गलियारों में फिर से चर्चा चल रही है। एक चर्चा यह भी है कि आजकल मैटेरियल काफी महंगा है। आने वाले समय में कामों के सैंपल थर्ड पार्टी से चैक होने हैं। फिर भी ठेकेदारों ने क्या सोचकर काम लिए हैं?
कांग्रेस के समय ही हो गया था सिस्टम खराब
दरअसल नगर निगम के सिस्टम में खराबी पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान ही आ गई थी। तब निगम अधिकारियों और ठेकेदारों में जो नैक्सस बना हुआ था उसमें राजनेताओं की भी एंट्री हो गई थी। इन तीनों ने मिलकर निगम के खजाने को खूब लूटा। तब अफसरों ने कमीशन लेकर ठेकेदारों को टैंडर दिए, ठेकेदारों ने मनमर्जी से घटिया काम करके करोड़ों अरबों कमाए और राजनेताओं को भी इस सारे खेल में उनका हिस्सा मिला। कमीशन लेने वाले अफसरों ने ठेकेदारों के किसी काम की कोई जांच नहीं की। कांग्रेस सरकार दौरान किसी ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट नहीं किया गया और न ही किसी काम के सैंपल भरे गए ।
एक सरकार के ही कार्यकाल में दो-दो बार सड़कों का निर्माण हुआ परंतु कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई। चंडीगढ़ बैठे अधिकारी भी शिकायतों को दबाते रहे और लोकल बॉडीज मंत्री, विधायकों ने भी इस मामले में चुप्पी धारण किए रखी। अब आम आदमी पार्टी के नेतृत्व को चाहिए कि निगम के बिगड़ चुके सिस्टम को पटरी पर लाए वरना सरकारी पैसों का दुरुपयोग इसी प्रकार होता रहेगा।
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