Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Jul, 2017 10:08 AM
इस बार किसान पराली से धरती का सीना नहीं जला पाएंगे। गेहूं व धान की नाड़ जलाने से पैदा होने वाले हवा प्रदूषण को रोकने के लिए जिला मैजिस्ट्रेट व डी.सी. कमलदीप सिंह संघा ने इस बार धान की कटाई में पुरानी तकनीक वाली कंबाइनों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा...
अमृतसरःइस बार किसान पराली से धरती का सीना नहीं जला पाएंगे। गेहूं व धान की नाड़ जलाने से पैदा होने वाले हवा प्रदूषण को रोकने के लिए जिला मैजिस्ट्रेट व डी.सी. कमलदीप सिंह संघा ने इस बार धान की कटाई में पुरानी तकनीक वाली कंबाइनों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
अब पुरानी तकनीक वाली कंबाइनों को धान की कटाई में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। जिला मैजिस्ट्रेट ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट, नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, दिल्ली हाईकोर्ट व अन्य अदालतों में धान की पराली यानी नाड़ जलाने के मुद्दे पर चल रहे केसों को देखते हुए पंजाब सरकार ने पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी लुधियाना को खोज करने के लिए कहा था।इसके लिए उसने सुपर स्ट्रॉ मैनेजमैंट सिस्टम की खोज की।
इस मशीन के प्रयोग से धान की पराली को खेतों में जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है और किसान पराली को खेतों में ही आसानी से मिलाकर अगली फसल की बिजाई कर सकते हैं।इस तकनीक में पहले से ही चल रही कंबाइन में एक यंत्र लगा दिया जाता है जो कि धान की पराली को काटकर खेतों में बिखेर देता है जो एक बार जोतने से ही खेतों की मिट्टी में मिल जाती है जिससे किसान को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। खेतों की मिट्टी का उपजाऊपन भी बढ़ जाता है।
सख्ती के बावजूद पराली जलाते हैं किसान
चाहे पूर्व अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार रही हो या फिर कैप्टन सरकार, डी.सी. द्वारा हर बार गेहूं व धान के सीजन में नाड़ जलाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है और धारा 144 लगाई जाती है लेकिन किसान पराली जलाने से बाज नहीं आते हैं और सरेआम कानून का उल्लंघन करते हैं। यहां तक की सीमा पर तारबंदी के पार वाले खेतों में भी गेहूं व धान की पराली जलाई जाती है जिससे निकलने वाला धुआं हवा को प्रदूषित करता है और कई प्रकार की बीमारियां हवा में पैदा हो जाती हैं।
दमे के रोगियों के लिए तो इस प्रकार के हालात और ज्यादा खतरनाक बन जाते हैं। सड़कों के किनारों पर जलने वाली पराली के धुएं के कारण तो कई बार वाहन दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। एक बार तो एस.जी.आर.डी. एयरपोर्ट तक पराली को लगाई आग पहुंच गई थी और एक बड़ी दुर्घटना होने लगी थी। अब देखना यह है कि प्रशासन पुरानी कंबाइन का प्रयोग कहां तक रोक पाता है।
पराली जलाने से बंजर हो रही है पंजाब की उपजाऊ जमीन
कृषि विभाग के अनुसार पराली जलाने से खेतों की मिट्टी में मौजूद मित्र कीट भी जल कर खत्म हो जाते हैं जिससे खेतों की मिट्टी का उपजाऊपन धीरे-धीरे कम होने लगता है। कृषि वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार बार-बार खेतों में गेहूं व धान की पराली जलाने से एक दिन जमीन बंजर हो जाती है और उपजाऊपन बिल्कुल खत्म हो जाता है जिससे किसान को ही सबसे ज्यादा नुक्सान होता है। खेतों की मिट्टी में केंचुए व अन्य छोटे-छोटे जीव होते हैं जो उपजाऊपन को बढ़ाते हैं लेकिन पराली जलाने से ये मित्र जीव मर जाते हैं। पंजाब की धरती जो पूरे देश में सबसे उपजाऊ मानी जाती है, पराली जलाने से उसके बंजर होने तक की नौबत आ सकती है।