SYL मामला: कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा सहित सभी पार्टियां सरकार को घेर रहीं

Edited By Urmila,Updated: 11 Oct, 2023 11:02 AM

syl case all parties including cornering the government

एक बार फिर से एस.वाई.एल. का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है।

पटियाला (राजेश): एक बार फिर से एस.वाई.एल. का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है। इस बार यह जिन्न 2024 के लोकसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा बनेगा और आम आदमी पार्टी को घेरने के लिए सभी विरोधी पार्टियां एस.वाई.एल. को ब्रह्मास्त्र के तौर पर प्रयोग करने का मन बना चुकी हैं। जिस तरह बिहार और यू.पी. जैसे राज्यों में लोकसभा चुनाव जाति सर्वेक्षण के मुद्दे पर लड़े जाने है परन्तु पंजाब में जाति सर्वेक्षण के मुद्दे को कोई हवा नहीं मिली और इस समय पंजाब की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा एस.वाई.एल. नहर बन गई है।

पंजाब में आतंकवाद की शुरूआत भी इस एस.वाई.एल. के मुद्दे पर ही हुई थी, जिस कारण पंजाब के लोग एक बार फिर से डर गए हैं क्योंकि उनको पिछला काला दौर याद आ गया है। आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार ने इस मुद्दे पर 20 अक्तूबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है, जिसमें एक बार फिर से मुख्यमंत्री भगवंत मान पिछली सरकारों की तरह सख्त कानून पास करेंगे। इससे पहले 2002 से 2007 वाली कैप्टन अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमैंट एक्ट 2004 विधानसभा में पास करके पानी संबंधी हुए सभी समझौते रद्द कर दिए थे, जिसके बाद कैप्टन अमरेंद्र सिंह को उस समय कांग्रेस ने पंजाब के पानियों का रक्षक का खिताब दिया था परन्तु 2007 में अमरेंद्र सिंह फिर मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे। 

इसी तरह नवम्बर 2016 में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली अकाली-भाजपा सरकार ने एस.वाई.एल. के लिए एक्वायर की गई जमीन किसानों को फिर वापस कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट का जब 11 नवम्बर 2016 को फैसला आया था तो बादल सरकार ने रातों-रात समूह डिप्टी कमिश्नरों को हुक्म देकर एस.वाई.एल. की जमीन किसानों के नाम करके इंतकाल भी किसानों के नाम कर दिए थे। अकाली दल ने एक विशेष मुहिम चला कर एस.वाई.एल. नहर को भर दिया था परन्तु 2017 की विधानसभा चुनाव में अकाली दल को कोई लाभ नहीं मिला और अकाली दल की करारी हार हुई थी। 

पंजाब के लिए यह मुद्दा काफी अहम है और इस पर सभी पार्टियां आंदोलन भी करती हैं परन्तु 2007 की विधानसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव स्पष्ट करती हैं कि जिन पार्टियों ने एस.वाई.एल. को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा उनको इसका कोई लाभ नहीं मिला। अब एक बार फिर से इस मुद्दे के द्वारा कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल राजनीतिक ताकत हासिल करना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में पंजाब में यह मुद्दा 
भारी रहेगा और विरोधी पार्टियां इस मुद्दे को मुख्य रख कर चुनाव लड़ेंगी।

केस सुप्रीम कोर्ट में होने को ध्यान में रखते हुए फैसला लेंगे राज्यपाल 

दूसरी तरफ ‘आप’ की तरफ से जो 20 अक्तूबर को विधानसभा का विशेष सैशन बुलाया है, उसमें एक बार फिर से पानी के मुद्दे पर कैप्टन और बादल सरकार की तरह कानून के पास कर सकतीं हैं। विधानसभा में आम आदमी पार्टी पंजाब के लोगों की वकालत करते हुए कोई भी कानून बना कर अकालियों और कांग्रेसियों के प्रोपेगंडा को फेल कर सकती है परन्तु कानूनी तौर पर इसके कोई मायने नहीं होंगे क्योंकि राज्यपाल के साइन करने के बाद ही विधानसभा की तरफ से पास किया गया कोई प्रस्ताव ही कानून बन सकता है। 

राज्यपाल इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट केस को ध्यान में रखते हुए फैसला लेंगे। ऐसे में लग रहा है कि एस.वाई.एल. का यह पूरा मामला एक बार फिर से जटिल होता जा रहा है और समूची पार्टियां इस मुद्दे पर हमलावर हो गई हैं। आम आदमी पार्टी ने भी विरोधी पार्टियों को ‘चित्त’ करने के लिए यह सैशन बुला लिया है।

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