इस शख्स के जज्बे को सलाम, बैसाखी को छोड़ साइकिल को बना लिया अपना सहारा

Edited By Updated: 05 Mar, 2017 02:32 PM

salute to handicapped man

कहते हैं कि कुछ करने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है। बस इरादों में दम होना चाहिए फिर आपकी कमजोरी भी आपकी ताकत बन जाती

जालंधर:  कहते हैं कि कुछ करने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है। बस इरादों में दम होना चाहिए फिर आपकी कमजोरी भी आपकी ताकत बन जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया जालंधर के 22 साल के अर्जुन ठाकुर ने। जी हां, 22 साल की उम्र में 3 साल के बच्चे जितनी ताकत रखने वाले अर्जुन ने ब्रिटिश साइक्लिस्ट एडम पेक्सटन के साथ वाघा बार्डर से बंगाल बॉर्डर तक 2334 किलोमीटर की राइड 31 दिनों में तय की। बैसाखी को छोड़ साइकिल को अपना सहारा बनाने वाले अर्जुन के इस जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है। 

10 साल की उम्र तक बैसाखी के सहारे ही चला
जानकारी के अनुसार ज्वाला नगर में रहने वाले अर्जुन ठाकुर के न तो जांघ के मसल हैं और न ही पिंडलियों के। डाक्टरों का कहना है कि  वह 70 फीसदी फिजिकली हैंडीकैप्ड है और उसमे 3 साल के बच्चे जितनी ही ताकत है। 10 साल की उम्र तक वो बैसाखी के सहारे ही चला। फिर एक दिन साइकिल चलाई। अर्जुन का कहना है कि  मैंने कभी नहीं सोचा था कि बड़ा होकर क्या करूंगा। मैं सिर्फ यही सोचता था कि सरकारी नौकरी मिल जाए या फिर कोई बैठकर करने वाला काम। एक दिन अचानक बैसाखी छोड़कर एक्सपेरीमैंट के तौर पर साइकिल चलाने की कोशिश की थी। बस फिर धीरे-धीरे घर से बाहर साइकिल पर ही जाता था। स्कूल के बाद दवा की दुकान पर पार्टटाइम नौकरी मिल गई। 

साइकलिंग क्लब में अर्जुन बना स्टार
अस्पताल में दवा की दुकान चलाने वाले रोहित शर्मा ने अर्जुन की साइकलिंग में बेहद मदद की। धीरे-धीरे साइकलिंग क्लब बना, जिसमें अर्जून स्टार बन गया। पिछले साल की जून में अर्जुन पहली बार चर्चा में आया। तब उन्होंने महिलपुर से तलवाड़ा तक 47 लोगों के साथ 13 घंटे में 200 किलोमीटर की राइड पूरी की थी। इन दिनों ब्रिटिश साइक्लिस्ट एडम पेक्सटन के पूर्वज ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में रहे थे, जो उनकी याद में जनवरी में यहां पर साइक्लिंग करने आए हुए थे। अर्जुन ने बताया कि पंजाब बाइकर्स क्लब ने मेरा संपर्क एडम से कराया। एडम ने पूरी राइड के दौरान मुझे साथ रखने की सहमति दी। इसके बाद हम रोजाना 5-6 घंटे साइकिल चलाते, जो 20-22 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत पर होती। इसके बाद 26 जनवरी को वाघा बॉर्डर से चल कर बंगाल बॉडर तक 2334 किलोमीटर की राइड 31 दिनों में पूरी की।  

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