बेटियों को सलाम, दिव्यांग पूजा बच्चें को सिखा रही हुनर पैरों पर खड़े होने का

Edited By Updated: 04 Apr, 2017 05:07 PM

salute to daughters

आज अष्टमी पर कन्याओं को हर जगह पूजा जाएगा। शक्ति के इस रूप को निहारने के लिए हर कोई इनके पैर छुएगा और इन्हें हलवा-पूरी का सेवन

नवांशहर(त्रिपाठी): आज अष्टमी पर कन्याओं को हर जगह पूजा जाएगा। शक्ति के इस रूप को निहारने के लिए हर कोई इनके पैर छुएगा और इन्हें हलवा-पूरी का सेवन करवा कर अपने नवरात्रों के व्रत का उद्यापन करेगा। पर सवाल यह उठता है कि क्यों वर्ष में सिर्फ 2 बार ही कन्या पूजन होता है। कोई भी शुभ कार्य हो तो कन्याओं को पूजा जाता है। क्यों न कन्या पूजन के इन दिनों सभी यह मिल कर प्रण करें कि नारी शक्ति जिसे मां के नवरात्रों में इतना सम्मान दिया जाता है, उन्हें हर दिन इतना सम्मान दिया जाए ताकि इन बेटियों को पुरुष प्रधान समाज में आगे बढऩे का मौका मिले। आज कन्या पूजन पर हम आपको मिलवा रहे हैं शहर की ऐसी बेटियों से जिन्होंने अपने बलबूते पर अपनी प्रतिभा से शहर व जिले का नाम रोशन किया है। वैसे तो शहर में टैलेंट की कमी नहीं है लेकिन बेटियों को भी अपनी शक्ति को सभी के सामने लाने के लिए सशक्त महिलाओं व युवतियों से प्रोत्साहित होकर आगे बढऩे की ललक पैदा करने की जरूरत है। जिले की बेटियों को सलाम है जिन्होंने न केवल अपना बल्कि अपने जिले का भी नाम रौशन किया। ऐसी ही एक बेटी है पूजा जो दिव्यांग होने के बावजूद भी बच्चों को अपने पैरों पर खेड़े होने का हुनर सिखा रही है। 

बाधाएं कुछ पल रोक सकती हैं मार्ग, हमेशा के लिए नहीं
पूजा ने बताया कि 10वीं की परीक्षा से करीब एक सप्ताह पहले उसे लकवे का अटैक हुआ जिसके चलते उसके शरीर का निचला हिस्सा पूरी तरह से नाकारा हो गया। स्कूल में टेबल टैनिस की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी होने के साथ पढ़ाई में अव्वल तथा सहायक शिक्षण गतिविधियों में हमेशा अग्रणी रहने वाली पूजा से जैसे एक ही झटके में किसी ने सपनों को मिट्टी में मिला कर रख दिया। बाधाएं मार्ग रोकती हैं और आगे बढऩा सिखा देती हैं। स्कूल प्राध्यापिका पूजा ने ग्रैजुएशन करने के उपरान्त एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. संस्कृत, एम.एड. तथा एम.फिल. तक की शिक्षा विपरीत स्थितियों में जिस तरह से ग्रहण की है वह समाज के लिए एक उदाहरण है। पूजा ने बताया कि लकवे के अटैक के बाद उसी स्कूल में व्हील चेयर पर जाने का अनुभव क्या होता है उसके अतिरिक्त शायद कोई नहीं जान सकता। उसने बताया कि जीवन में कई ऐसे अवसर आए जब वह डिप्रैशन का शिकार हुई मगर आज वह हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाने के योग्य होने के साथ अपने पांव पर स्वयं खड़ी है। उसने बताया कि उसकी परेशानियों का अंत केवल शिक्षा हासिल करने तक ही नहीं रहा है बल्कि कई ऐसे कार्य स्थलों पर भी उसे अन्य प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा है जिसमें उसके साथी अध्यापक ही उसके लिए बाधाएं बने। उसने कहा कि जीवन के संघर्ष ने उसे फौलादी बना दिया है तथा अब वह पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाहती। 


अनभिज्ञ होने के बावजूद बनी पी.सी.एस. अधिकारी अनमजोत कौर
वर्ष 2016 में बतौर पी.सी.एस. अधिकारी सिविल सर्विसिज सेवाओं में प्रवेश करने वाली अनमजोत कौर ने बताया कि देश व समाज की सेवा का जज्बा उन्हें सिविल सॢवसिज सेवाओं की ओर ले आया। एन.आई.टी. जालंधर से इलैक्ट्रानिक्स में बी.टैक. करने वाली अनमजोत कौर ने बताया कि गैजुएशन की डिग्री करने तक पी.सी.एस., आई.पी.एस. तथा आई.ए.एस. अधिकारी किस तरह से बना जा सकता है, संबंधी वह अनभिज्ञ थी। उनका सपना भी दूसरे युवाओं की भांति कार्पोरेट सैक्टर में जाकर पैसा कमाना था परन्तु जल्द ही उन्हें इस बात का आभास हो गया कि सिविल सॢवसिज में जाकर न केवल वह समाज तथा राष्ट्र की सेवा कर सकती है बल्कि प्रभावशाली करियर भी बना सकती है। पी.सी.एस. परीक्षा पास करके अपनी पहली नियुक्ति नवांशहर में बतौर जी.ए. टू डी.सी. निभा रही अनमजोत कौर ने कहा कि उसका मुख्य लक्ष्य लोगों की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करना है। शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाना तथा नए युग के अनुसार शिक्षा पद्धति में सुधार करना भी उनका मंतव्य है। 

 

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