गाय 1 रुपए का दूध न दे तो भी उपयोगी है किसानों के लिए

Edited By swetha,Updated: 05 Mar, 2019 09:01 AM

even if the cow does not give 1 rupee milk it is useful for the farmers

गौरक्षा हमेशा से राजनीतिक और धार्मिक मुद्दा रहा है। मगर गाय की बदहाली और अनदेखी भी किसी से छिपी नहीं है। देश भर में गौरक्षा के नाम पर हजारों संस्थाएं कार्य कर रही हैं।

जालंधर(सोमनाथ): गौरक्षा हमेशा से राजनीतिक और धार्मिक मुद्दा रहा है। मगर गाय की बदहाली और अनदेखी भी किसी से छिपी नहीं है। देश भर में गौरक्षा के नाम पर हजारों संस्थाएं कार्य कर रही हैं। हजारों गौशालाएं बनाई गई हैं। मगर सड़कों और कूड़े के ढेरों पर लावारिस हालत में गायों का मिलना जारी है। कई बार यही गौधन हादसों का कारण भी बनता है। बीते दिनों कानपुर में गायों का एक झुंड ट्रैक पार करते समय वंदे भारत एक्सप्रैस की चपेट में आ गया। आधा दर्जन से अधिक गायों की मौत हो गई।

हादसे के बाद रेलवे ट्रैक बाधित होने से वंदे भारत एक्सप्रैस को लगभग आधा घंटा खड़ा रहना पड़ा और इस रूट पर चलने वाली कई ट्रेनें लेट हो गईं। गायों की बदहाली के पीछे सीधा-सा कारण है कि गाय जब तक दूध देती है तब तक पशुपालक उसकी अच्छी तरह देखभाल करते हैं। जैसे ही वह दूध देना बंद कर देती है तो पशुपालक उसे सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं। गायों की ऐसी हालत पर विशेषज्ञों का विश्वास है कि सरकार द्वारा गायों की संभाल के लिए दिए जाते करोड़ों रुपए के फंड का कुछ हिस्सा इनकी रिसर्च पर खर्च हो तो यही पशुधन एक बार फिर से किसानों की कमाई का जरिया बन सकता है और सड़कों पर घूमने वाली गायों और गौधन की हालत में सुधार भी हो सकता है। साथ ही मवेशियों की जनसंख्या पर अंकुश लगाने सहित आम चारागाहों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए ताकि इन चारागाहों पर मवेशी चारा चरें और यही चारागाह उनके लिए गौशालाएं बन सकें। 

मवेशी प्रजनन डेयरियों को विनियमित करना
पशु अधिकार कार्यकर्ता चाहते हैं कि डेयरियों में गायों के प्रजनन पर अंकुश लगाने के लिए मजबूत नियामक तंत्र हो। यह डेयरी उद्योग की देन है जो किसानों को बछड़ों और सांडों को छोडऩे के लिए प्रेरित करता है जिससे आवारा पशुओं को बचाया जा सकता है लेकिन जब तक डेयरी उद्योग अनियंत्रित है मवेशियों की आबादी पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। 

आम चारागाह भूमि
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने गौचर भूमि और आम चारागाह भूमि पर अस्थाई काऊ शैल्टर बनाने की घोषणा की है लेकिन ये चारागाहें कहां बनेंगी अभी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है। इसके लिए सांझी जमीन के साथ-साथ कई कानून पहलू भी जुड़े हुए हैं। 

गाय और गौवंश की उपयोगिता 

गाय और गौवंश की उपयोगिता पर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आई.वी.आर.आई.) बरेली के पशु अनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रणवीर सिंह कहते हैं कि जो गाय एक भी रुपए का दूध न दे रही हो उससे भी जैविक खाद वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाकर 20 हजार रुपए तक कमाए जा सकते हैं। डी.ए.पी.-यूरिया, रासायनिक कीटनाशकों से हमारी जमीन का स्वास्थ्य खराब हो गया है और इसे ठीक करने के लिए गाय, केंचुए और सूक्ष्मजीवी से अच्छा कुछ नहीं हो सकता। गाय की उपयोगिता समझने के लिए यह समझना जरूरी है, ‘‘गाय किसान से लेती क्या है और बदले में उसे मिलता क्या है।’’ एक देसी गाय एक दिन में 2 से 3 लीटर दूध, 7-10 लीटर गौमूत्र और 10 किलो गोबर देती है। सांड का गोबर और गौमूत्र थोड़ा ज्यादा होता है जबकि उसे खाने के लिए सिर्फ  5.6 किलो भूसा चाहिए। अगर दूध की जगह किसान गोबर-गौमूत्र का उपयोग करने लगें या फिर सरकार पंचायत स्तर पर किसानों से गौमूत्र खरीदना शुरू कर दे, डी.ए.पी.-यूरिया की तरह गोबर की खाद बनाने पर सबसिडी मिलने लगे तो सब समस्या दूर हो जाएगी। 

 आई.वी.आर.आई. के न्यूट्रीशियन विभाग के डॉ. पुतान सिंह बताते हैं कि किसानों को इसकी समझ नहीं है और न ही कृषि, बागवानी या फिर पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने किसानों को इनका महत्व समझाने की कोशिश की है। फैडरेशन ऑफ द इंडियन एनिमल प्रोटैक्शन ऑर्गेनाइजेशन (एफ.आई.ए.पी.ओ.) 2018 के मुताबिक हर गौशाला को बायोगैस प्लांट लगाने चाहिएं। एक बायोगैस प्लांट लगाने में करीब 5 लाख रुपए लागत आती है और इसके रख-रखाव पर सालाना 50 हजार रुपए खर्च आएगा। गौशाला में 100 मवेशियों के साथ हर बायोगैस प्लांट से बिजली उत्पादन कर सालाना 4.80 लाख रुपए लाभ कमाया जा सकता है। 

इसके अलावा उत्तर प्रदेश स्थित चंदोली में रहते वैटर्नरी डॉ. अरविंद वैश अनुसार गाय का गोबर अपने आप में कंप्लीट प्लांट फूड और सॉयल कंडीशनर है जिसे बेच किसान अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार भी काऊ यूरिन (गौमूत्र) दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। वहीं गौमूत्र कई फसलों के लिए दवाई के रूप में भी इस्तेमाल होता है। एक किसान एक लीटर दूध बेचकर 50 रुपए कमाता है जबकि साधारण डिस्ट्रीलेशन सिस्टम से काऊ यूरिन डिस्टिल्ड कर किसान 300 रुपए लीटर यूरिन बेचकर मोटी कमाई कर सकता है। 

बीजम मैथड 
नोएडा स्थित बीजम एनिमल फार्म की संस्थापक अपर्णा राजागोपाल ने बताया कि कुछ एनिमल वैल्फेयर संगठन अलग-अलग तरीकों से किसानों के लिए गाय की उपयोगिता समझाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बीजम प्रोजैक्ट बारे बताया कि यह गाय के गोबर से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बनाने का मैथड है। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से फ्लावर पोट्स, अगरबत्ती और उपले बनाकर हर महीने 15 हजार रुपए तक कमाए जा सकते हैं।  उन्होंने बताया कि निगमबोध घाट पर अब गौ गोबर से बने उप्पलों और लकड़ी का उपयोग संस्कार में किया जाने लगा है। कम धुएं और इको फ्रैंडली होने कारण के निगमबोध घाट अब इन उप्पलों और लकड़ी का नियमित ऑर्डर देने पर विचार कर रहा है। 

उन्होंने बताया कि यही नहीं अब ‘बुल पावर’ पर भी काम किया जाने लगा है। चारा काटने वाली मशीनों, थ्रैसर मशीनों और सिं्प्रकल सिस्टम को चलाने के लिए सांडों का उपयोग किया जा सकता है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से 2019 के आम बजट में काऊ वैल्फेयर के लिए 750 करोड़ रुपए रखे गए हैं, वहीं अगर लावारिस हालत में घूमने वाले इन मवेशियों की सही उपयोगिता के तरीकों पर काम किया जाए तो इनकी समस्या हल हो सकती है। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!