भारतीय गरीबों के दस्तावेज भी ‘गरीब’

Edited By Sunita sarangal,Updated: 15 Jan, 2020 05:06 PM

documents of indian poor are also poor

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि देश में कागजी कार्रवाई की बात आती है तो गरीब और हाशिए पर नजर आते हैं। मुख्य उदाहरण जन्म प्रमाण पत्र है, जो सबसे अमीर और सबसे विशेषाधिकार प्राप्त सामाजिक समूहों के पास होने की संभावना है। इस बारे में नैशनल फैमिली...

नई दिल्ली(विशेष): 2015-16 तक 5 वर्ष से कम आयु के 80 प्रतिशत बच्चों का जन्म पंजीकृत हुआ था (जिसका अर्थ है कि आम तौर पर अस्पतालों द्वारा नगरपालिका या पंचायत के रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण करवाया गया था)। हालांकि, सिर्फ 62 प्रतिशत लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र था, जो जन्म और मृत्यु पंजीकरण (आर.बी.डी.) अधिनियम 1969 के तहत कानूनी दस्तावेज रजिस्ट्रार द्वारा बच्चे के कानूनी अभिभावक को अनुरोध करने पर दिया जाता है। इससे एक दशक पहले, जन्म पंजीकरण और प्रमाणन और भी कम था। 2005-06 के दौर में किए गए नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के केवल 41 प्रतिशत बच्चों का जन्म तब सिविल अधिकारियों के साथ पंजीकृत था और 5 वर्ष से कम आयु के केवल 27 प्रतिशत बच्चों के पास जन्म प्रमाणपत्र था।
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आर.बी.डी. अधिनियम के अनुसार बच्चे के जन्म को पंजीकृत करने में जितनी देर होगी जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करना उतना ही कठिन होगा। कोई भी जन्म, जो बच्चे के जन्मदिन के एक वर्ष के भीतर पंजीकृत नहीं किया गया है तो वह केवल प्रथम श्रेणी मैजिस्ट्रेट या प्रैजीडैंसी मैजिस्ट्रेट द्वारा किए गए आदेश-जुर्माने के भुगतान पर ही पंजीकृत किया जा सकता है। यह बताता है कि पुरानी पीढ़ियों के लिए युवा व्यक्तियों की तुलना में जन्म प्रमाण पत्र होने या प्राप्त करने की संभावना काफी कम है। विशेषाधिकार यह निर्धारित करने में भी एक बड़ी भूमिका निभाता है कि किसके जन्म और पालन-पोषण के उचित दस्तावेज हैं या नहीं। बेहतर शिक्षित माता-पिता और जो लोग बेहतर हैं वे अपने बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने की अधिक संभावना रखते हैं। सिख सबसे अधिक संभावना रखते हैं और मुस्लिम धार्मिक समूहों के बीच जन्म प्रमाण पत्र होने की संभावना सबसे कम है। अगड़ी जाति के हिंदू सबसे अधिक संभावना वाले हैं और आदिवासी बच्चों में जाति समूहों के बीच जन्म प्रमाण पत्र होने की संभावना सबसे कम है।

अन्य डाटा सूत्रों ने भी समान रुझान दिखाए हैं। 2011-12 के आंकड़ों का इस्तेमाल कर भारत मानव विकास सर्वेक्षण में इतिस्मिता मोहंती और टेस्फे, अलेमयेह गेब्रेमेधिन ने बताया कि अधिक स्वायत्तता वाली महिलाएं-जिनका अपनी मोबायलिटी पर बेहतर नियंत्रण है और कुछ के पास अपने संसाधनों का जायजा लेना आसान है तथा यात्रा करने और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष खर्च करने में सक्षम हैं ये लोग जन्म प्रमाण-पत्र में भी शामिल हो सकते हैं। अन्य तथ्य जो जन्म प्रमाण-पत्रों की संभावनाओं पर प्रश्न उठा सकते हैं उनमें संस्थागत डिलीवरी, पैतृक शिक्षा, मां के प्रसूति पूर्व स्वास्थ्य के बारे में आकलन करना, घर की अधिक आय जिनका संबंध अगड़ी जाति से है और मुस्लिम होने की हिन्दुओं के साथ तुलना करना शामिल है।  

एक समृद्ध राज्य में रहने वाले जहां पुष्टिकरण की प्रक्रिया अधिक सक्रिय है वे भी अपने जन्म निर्धारण को कानूनी बता सकते हैं। एन.एफ.एच.एस. के आंकड़ों से पता चलता है कि वे महिलाएं जोकि कहती हैं कि उनके बच्चों की 5 वर्ष से कम उम्र का पंजीकरण है उनका हिसाब सरकारी नमूना पंजीकरण प्रणाली से कम है। एस.आर.एस. प्रणाली का कहना है कि 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ही 2016 तक 100 प्रतिशत जन्म पंजीकरण प्राप्त किया था। 2015-16 में एन.एफ.एच.एस. द्वारा किए गए घरेलू सर्वेक्षण और 2011-12 में आई.एच.डी.एस. ने एक भी राज्य में 100 प्रतिशत पंजीकरण नहीं पाया था।

सबसे अधिक हाशिए पर पड़ा यह बोझ अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों में भी स्पष्ट है। नैशनल सैंपल सर्वे डाटा के विश्लेषण मुताबिक 2004-05 में सबसे गरीब चतुर्थक में 51.4 प्रतिशत और अगली चतुर्थांश में 58.4 प्रतिशत परिवारों के पास या तो अंत्योदय अन्न योजना या गरीबी रेखा से नीचे (बी.पी.एल.) राशन कार्ड नहीं था। यह इस तथ्य के बावजूद कि इन योजनाओं में विशेष रूप से गरीब से गरीब लोगों को लक्षित किया गया था। नागरिकता परीक्षणों के समर्थकों ने जो तर्क दिए हैं, उनमें से एक यह है कि इस तरह की पहचान ‘कानूनी’ गरीबों की पक्षधर है। हालांकि गरीबों को सबसे पहले और सबसे ज्यादा परेशानी यह साबित करने में होती है कि वे कानूनी हैं।

बर्थ सर्टीफिकेट में कब और कितना इजाफा 
5 साल तक के बच्चे (प्रतिशत में)

  2015-16 2005-06
बर्थ सर्टीफिकेट 62 27
पंजीकरण हुआ 17 14
सर्टीफिकेट नहीं 20 59

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