कैप्टन जीते या सिद्धू, शहरों में नैतिक तौर पर हारेगी कांग्रेस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 09:09 AM

captain sidhu

पंजाब में कांग्रेस को सत्ता में आसीन करने में शहरी मतदाताओं ने मुख्य भूमिका निभाई थी मगर कांग्रेस इस समय शहरी क्षेत्रों में ही आम जनता की हंसी का पात्र बन रही है। कैप्टन व सिद्धू के बीच मेयर मामले में छिड़ी जंग में दोनों में जीत चाहे किसी को भी मिले...

अमृतसर (जिया): पंजाब में कांग्रेस को सत्ता में आसीन करने में शहरी मतदाताओं ने मुख्य भूमिका निभाई थी मगर कांग्रेस इस समय शहरी क्षेत्रों में ही आम जनता की हंसी का पात्र बन रही है। कैप्टन व सिद्धू के बीच मेयर मामले में छिड़ी जंग में दोनों में जीत चाहे किसी को भी मिले लेकिन शहरी क्षेत्रों में नैतिक हार कांग्रेस की ही होगी।

पहली बार मेयरों के चुनाव में नहीं दिखे निकाय मंत्री
पंजाब में कांग्रेस ने एक नया इतिहास रच कर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया कि किसी नगर निगम के मेयर का चुनाव हो रहा हो, उस कार्यक्रम में उस विभाग से संबंधित मंत्री अर्थात स्थानीय निकाय मंत्री ही उपस्थित न हो और अनुपस्थित होने का कारण शहर से बाहर होना अथवा बीमार होना न होकर मंत्री महोदय का मेयर के नाम को लेकर उनकी रजामंदी का न होना है। उल्लेखनीय है कि कि नवजोत सिंह सिद्धू का शुरू से ही विवादों के साथ चोली-दामन का साथ रहा है। हठ के चलते 4 बार सांसद एवं पत्नी के मंत्री रहने के बावजूद वह भाजपा से रिश्ता तोड़ कर कांग्रेस की झोली में पड़ गए।

क्या कैप्टन के डंडे से डर गए सिद्धू 
राजिन्द्र मोहन सिंह छीना को इम्प्रूवमैंट ट्रस्ट का चेयरमैन बनाने का विरोध करने वाले सिद्धू लगभग 6 महीने अज्ञातवास में रहे लेकिन मेयर प्रकरण में & दिन बाद मंत्रिमंडल की बैठक में कैप्टन के साथ ऐसे बैठे थे जैसे उन्हें कोई नाराजगी ही न हो। क्या वह कैप्टन के अनुशासनिक कार्रवाई के डंडे से डर गए या परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने की कोशिश में लग गए प्रतीत हो रहे हैं।

‘आप’ को रोकने के लिए लाया गया था सिद्धू को कांग्रेस में
कांग्रेसी सूत्रों के अनुसार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह शुरू से ही नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस में नहीं लेना चाहते थे। इसका एक कारण यह है कि दोनों ही पटियाला से हैं और दोनों ही सिख जाट हैं। इसके अलावा वह यह समझते थे कि सिद्धू एक अलग स्वभाव के कारण कांग्रेस में अधिक देर तक टिक नहीं सकते, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की दूरगामी सोच थी कि कहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी के बहाव को पतवार न मिल जाए, इसलिए कांग्रेस सिद्धू को किसी भी कीमत पर आम आदमी पार्टी में शामिल नहीं होने देना चाहती थी। राहुल गांधी ने पंजाब में ‘आप’ को रोकने के लिए ही कैप्टन को सिद्धू को कांग्रेस में लाने के लिए राजी किया।

सिद्धू को उप मुख्यमंत्री बनने से रोकने में सफल रहे कैप्टन
कांग्रेस की सरकार बनने पर अमरेन्द्र सिंह मंत्रिमंडल के गठन के दौरान सिद्धू व मनप्रीत बादल की महत्वाकांक्षा से भयभीत हो गए थे। वह कांग्रेस हाईकमान को यह समझाने में सफल हो गए थे कि उप मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस की परंपरा नहीं है और कैप्टन सिद्धू को डिप्टी सी.एम. की शपथ न दिला कर अपनी रणनीति में सफल रहे।

यहां भी साधे एक तीर से 2 निशाने
जब पंजाब में नंबर-2 के मंत्री बनाने की बात हुई तो कैप्टन ने हाईकमान को कहा कि किसी हिन्दू को मंत्रिमंडल में दूसरी वरीयता प्राप्त होनी चाहिए। कैप्टन ने इस मामले में एक तीर से दो निशाने साध लिए, एक हिन्दू हितैषी होने व दूसरा सिद्धू व मनप्रीत बादल को डिप्टी सी.एम. बनने पर रोक लगाने में सफल रहे। हालांकि ब्रह्म महिन्द्रा उनके कट्टर विरोधी हैं, इसके बावजूद उन्होंने कड़वा घूंट पिया ताकि डिप्टी सी.एम. बनने से सत्ता के 2 केंद्र न बन जाएं।

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