उपचार के लिए सिविल अस्पताल में तड़प रहा रणधीर सिंह

Edited By Vatika,Updated: 30 Apr, 2018 12:19 PM

civil hospital

पंजाब सरकार के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग एवं सिविल अस्पताल के दावों की हवा निकालते हुए अस्पताल की घटिया कार्यशैली एक बार फिर से अखबारों की सु्र्खियां बनने जा रही है। सिविल अस्पताल की कार्यशैली का पिछला इतिहास देखने के लिए लोगों को इतिहास के ज्यादा...

खन्ना(सुनील): पंजाब सरकार के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग एवं सिविल अस्पताल के दावों की हवा निकालते हुए अस्पताल की घटिया कार्यशैली एक बार फिर से अखबारों की सु्र्खियां बनने जा रही है। सिविल अस्पताल की कार्यशैली का पिछला इतिहास देखने के लिए लोगों को इतिहास के ज्यादा पन्ने पलटने की जरूरत नहीं। आज शहर वासियों के साथ-साथ लगभग 80 गांवों के लोग सिविल अस्पताल को सिविल अस्पताल की बजाय रैफर अस्पताल के नाम से जानने लग पड़े हैं। हालांकि सरकार ने 2 करोड़ रुपए खर्च करते हुए सिविल अस्पताल में ट्रोमा सैंटर का निर्माण करवाया था, लेकिन बी-ग्रेड होने के चलते इस ट्रोमा सैटर में पूरी आधुनिक सुविधाएं न होने के चलते आज भी अधिकांश लोगों को रैफर किया जाता है, जिसके चलते खर्च किए 2 करोड़ रुपए व्यर्थ होते प्रतीत हो रहे हैं।


क्या है पूरा मामला
जानकारी के अनुसार लगभग 9 अप्रैल को रणधीर सिंह पुत्र गुरनाम सिंह निवासी गांव कुलेवाल खन्ना के निकटवर्ती गांव मंजी साहिब के पास एक सड़क हादसे में बुरी तरह से घायल हो गया था, जिसे घायलावस्था में खन्ना के सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों के अनुसार इस हादसे में रणधीर सिंह की टांग की हड्डी टूट गई थी, जिसके चलते अस्पताल में तैनात कर्मचारियों ने खानापूॢत करते हुए उसकी टांग पर पट्टी बांधकर इंतजार करने को कहा। दर्द के मारे जहां एक तरफ वह रोजाना दर्द के साए में सारी रात चीखें मारकर रात बिताता, वहीं दूसरी तरफ किसी ने भी इस असहाय व्यक्ति पर कोई तरस नहीं दिखाया। 


रणधीर के अनुसार लगभग 10 दिन पहले उसकी टांग का यह कहकर एक्स-रे किया गया था कि अगले दिन उसको प्लस्तर लगाया जाएगा, के उपरांत अगर जरूरत होगी तो उसका आप्रेशन भी कर दिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आज उसकी टांग में से इस कदर बदबू उठने लगी कि आसपास के मरीजों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। नतीजा साफ था कि पास पड़े मरीजों ने उसे यहां रखने का विरोध शुरू कर दिया। रणधीर सिंह ने किसी तरह किसी की सहायता से अपना बैड छोड़ा और खुद को घसीटते हुए ट्रोमा सैंटर तक  पहुंचा, जहां उसने पत्रकारों को आप बीती सुनाते हुए रोते हुए अपना उपचार कराने की गुहार की। हालांकि, पट्टी बंधी होने के चलते इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि क्या उसका जख्म और गल चुका है और जख्म में क्या कोई कीड़े तो नहीं पड़े, लेकिन आ रही बदबू से एक बात तो साफ है कि जख्म कम होने की बजाय बढ़ा होगा।

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