आधुनिक, सांस्कृतिक सुमेल से ही सुदृढ़, सभ्य व शिक्षित समाज का सृजन संभव: शिव कुमार

Edited By Sunita sarangal,Updated: 16 Feb, 2020 11:39 AM

creation of strong civilized and educated society

30 देशों से आए 80 अनिवासी भारतीय

जालंधर(राहुल): आधुनिक व सांस्कृतिक सुमेल से ही सुदृढ़, सभ्य व शिक्षित समाज का सृजन संभव है। उक्त शब्द विद्या भारती अखिल भारतीय संस्थान के महामंत्री शिव कुमार ने सर्वहितकारी शिक्षा समिति द्वारा आयोजित चौथे एन.आर.आई. सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कहे। 

गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को समर्पित उक्त सम्मेलन स्थानीय विद्या धाम के डा. अम्बेदकर सभागार में सम्पन्न हुआ। इसमें 30 देशों से आए 80 अनिवासी भारतीयों ने भाग लिया। कार्यक्रम में विद्या भारती के उत्तर क्षेत्रीय मंत्री विजय नड्डा, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, उत्तर क्षेत्र के संयोजक देस राज शर्मा, जयदेव वातिश, अशोक बब्बर, विजय ठाकुर, डा. स्वर्ण सिंह, राम गोपाल, करुणेंद्र कुमार, कमल कांत व अन्य गण्यमान्य उपस्थित थे।

शिव कुमार ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के पश्चात देश की शिक्षा नीति की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया गया। समिति ने शिक्षा को समयानुकूल बनाने के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागृति लाने के लक्ष्य से 1952 में गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में पहला सरस्वती विद्या मंदिर शुरू किया था। 1977 में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की स्थापना के पश्चात 13 हजार औपचारिक व 14 हजार अनौपचारिक (एकल शिक्षक विद्यालय) चल रहे हैं। पंजाब में 127 औपचारिक व 377 अनौपचारिक (एकल शिक्षक विद्यालय) चल रहे हैं और पंजाब के सीमांत गांवों में बड़ी संख्या में संस्कार केंद्र खोले जा रहे हैं। इस दौरान सर्वहितकारी विद्या मंदिरों के विद्यार्थियों द्वारा बनाई कलाकृतियों व पंजाब का लोक नृत्य गिद्दा की प्रस्तुति दी जिसने सभी का मन मोह लिया। 

हरित क्रांति से अन्न भंडार भरे पर भूजल का स्तर गिरा: उमेश दत्त 
समाजसेवी व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले उमेश दत्त ने कहा कि खेती को खुराक से, खुराक को विद्यार्थियों व स्वास्थ्य से जोड़ना है। पंजाब ने हरित क्रांति से देश के अन्न भंडार तो भर दिए पर इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। हरित क्रांति के कारण जमीन से इतना पानी निकाला जा चुका है कि पंजाब के अधिकतर क्षेत्रों में भूजल का लैवल चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुका है। अगर अब भी न चेते तो वह दिन दूर नहीं जब हम पानी की बूंद-बूंद को तरसेंगे। उन्होंने प्राकृतिक खेती के महत्व की भी विस्तृत जानकारी दी। 

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