Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Mar, 2018 04:26 PM
भारत में 90 के दशक में उदारीकरण और बाजारीकरण की नीति अपनाने के बाद से पूरे देश में बेतरतीब तरीके से शहरीकरण करना शुरू कर दिया गया। बिना किसी नियम-कायदों के जहां जिसको मन किया वहां अपना मकान बना लिया। जहां पहले कभी एक मकान बना हुआ था, वहां धीरे-धीरे...
बठिंडा (आजाद): भारत में 90 के दशक में उदारीकरण और बाजारीकरण की नीति अपनाने के बाद से पूरे देश में बेतरतीब तरीके से शहरीकरण करना शुरू कर दिया गया। बिना किसी नियम-कायदों के जहां जिसको मन किया वहां अपना मकान बना लिया। जहां पहले कभी एक मकान बना हुआ था, वहां धीरे-धीरे करके कलोनी बननी शुरू हो गई। कलोनी बन जाने के बाद रोड, पानी की व्यवस्था की जाने लगी। राष्ट्रीय मानक पर खरी न उतरने के बावजूद भी वोट बैंक के कारण अवैध तरीकों से बनी कालोनियों को पूरे देश में वैध करने का भी दौर शुरू हो गया। बठिंडा शहर का भी विस्तार कुछ इसी तरह से हुआ है। जहां कभी जंगल हुआ करते थे, उन्हें अंधाधुंध तरीके से काटा गया गया, उसके बाद वहां पर कलोनियां स्थापित की गईं। इन कलोनियों में सरकारी मानक का ख्याल भी नहीं रखा गया, जिसके कारण से आज स्थिति ऐसी हो गई है कि यहां पर राष्ट्रीय मानक के अनुपात से 20 गुना हरियाली का एरिया कम है, क्योंकि शहर में जमीन की कीमत ज्यादा होने के कारण कोई भी खुला स्पेस नहीं छोडऩा चाहता है। पेड़-पौधे कम होने के कारण पक्षी व अन्य जीवों की धीरे-धीरे कमी होने लगती है, इससे प्रकृति में असंतुलन पैदा होता है जो आज चिंता का विषय है।
हर वर्ष कम हो रही बारिश, तापमान में हो रही बृद्धि
प्रदूषण के कारण बारिश के ग्राफ में लगातार गिरावट देखने को मिलती है। मौसम विभाग के आंकड़ों पर गौर करने पर पाएंगे कि लगातार बारिश के रिकार्ड में कमी आई है। इसके कारण यहां के तापमान में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। पिछले एक दशक में सबसे ’यादा गर्मी इलाहाबाद के बाद बठिंडा में रही। इसका असर अभी तक बरकरार है। मार्च का महीना शुरू होते ही गर्मी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। अभी इतनी गर्मी पडऩे के वजह पेड़-पौधों क ी कमी है। जनसंख्या के मुताबिक यहां पर जंगल की कमी है। पिछले साल गर्मी में शहर का तापमान 49 डिग्री तक पहुंच गया था।
मानक से 20 गुना कम है हरियाली
जिस प्रकार से शहर का विकास तेजी से हो रहा है, उस हिसाब से ग्रीनरी लगातार खत्म हो रही है। अब इस समय शहर में सिर्फ 1.67 फीसदी ही ग्रीनरी रह गई है, जबकि यह && फीसदी होनी चाहिए लेकिन मानक से हरियाली का एरिया 20 गुना कम है। अब इतना बड़ा ग्रीनरी का आंकड़ा विकास के नाम पर खत्म किया गया है, जिसको पूरा कर पाना मुश्किल बन गया है। वहीं धड़ाधड़ इमारतों का निर्माण होने के साथ अन्य विकास किया जा रहा है। मगर कहीं भी ग्रीनरी नहीं लगाई जाती। अगर कहीं पर एक-दो पेड़-पौधे लगा भी दिए जाएं तो उनकी देखभाल नहीं की जाती। जो दो-चार साल में खत्म हो जाते हैं। पर्यावरण प्रेमियों की मानें तो ऐसा विकास किस काम का जहां पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। सरकार को प्रकृति से खिलवाड़ बंद करना चाहिए।
बीते वर्षों में मात्र सरकारी कागजों में हुआ पौधारोपण
सरकारी नियमानुसार किसी भी शहर के क्षेत्रफल में 33 प्रतिशत तक पेड़-पौधे अथवा हरियाली का होना आवश्यक होता है, लेकिन सिर्फ बठिंडा में पौधों का & प्रतिशत भी नहीं है। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं लाखों की तादाद में पौधारोपण करती हैं, मगर उसके बाद इनकी सही से देखरेख नहीं करने की वजह से सारे पौधे खत्म हो जाते हैं। कुछ को आवारा पशु खा जाते हैं जो बच भी जाते हैं, वे सही देखरेख के अभाव में दम तोड़ देते हैं। इस तरह पौधारोपण सिर्फ कागजों तक सिमित होकर रह जाता है।
बठिंडा में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बड़े-बड़े उद्योग
शहर में प्रदूषण को तेजी से बढऩे का सबसे बड़ा कारण यहां के खतरनाक उद्योग हैं। नैशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, 2 सीमैंट की कंपनी अल्ट्राटैक सीमैंट और अंबूजा सीमैंट, 2 पावर प्लांट गुरु नानक देव थर्मल पावर प्लाट दूसरा गुरु हरगोङ्क्षबद थर्मल प्लाट, पैट्रो कैमिकल प्लांट, आयल रिफाइनरी, शराब की फै क्टरी व बङ्क्षठडा के इतने कम एरिया में एन्वायरनमैंट को नुक्सान पहुंचाने वाले ही उद्योगों ने शहर को चारों तरफ से घेर लिया है। इन उद्योगों से भारी मात्रा में हानिकारक गैस और कैमीकल निकलते हैं। यह कै मीकल यहां के हवा, पानी और मिट्टी में मिल जाते हैं और धीरे-धीरे करके कैमीकल यहां की हवा में मिलकर बीमारी के में तबदील हो जाते हैं। यह उद्योग सरकारी नियमों की अनदेखी करके चलाए जा रहे हैं। माना जाता है कि पंजाब पर्यावरण कंट्रोल बोर्ड के दिशा-निर्देश ताक पर रखकर रिवर्स बोरिंग के माध्यम से धरती में हानिकारक कैमीकल को डाला जाता है। ये कैमीकल अंडर ग्राऊंड वॉटर में मिलने कैंसर और अन्य लाइलाज बीमारियां फैलती हैं।
ये हैं नियम
शहर में जहां भी किसी भी प्रकार का निर्माण करना हो वहां पर एरिया के हिसाब से ग्रीनरी लगानी होती है। इसके लिए 10 से 15 फीसदी की जगह जरूरी है। अगर कहीं पर एरिया ’यादा हो तो वहां पर ग्रीनरी लगाने की जगह &0 फीसदी तक भी हो सकती है। मगर यह शहर में दिन-प्रतिदिन कम हो रही है। वहीं शहर के आऊटर एरिया में जितनी जगह पर निर्माण किया जाना होता है, उतनी ही जगह पर ग्रीनरी लगानी होती है क्योंकि इससे पर्यावरण शुद्ध रहता है।