किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा संगरूर के सियासी किले को फतेह करना

Edited By swetha,Updated: 13 May, 2019 08:39 AM

sangrur lok sabha seat

पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से मालवा से संबंधित हलका संगरूर का सियासी दृश्य बेहद दिलचस्प और पेचीदा बनता जा रहा है। इसकी मौजूदा सियासी तस्वीर अनुसार इस क्षेत्र के किले को फतेह करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नजर नहीं आ रहा।

संगरूर/ गुरदासपुर: पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से मालवा से संबंधित हलका संगरूर का सियासी दृश्य बेहद दिलचस्प और पेचीदा बनता जा रहा है। इसकी मौजूदा सियासी तस्वीर अनुसार इस क्षेत्र के किले को फतेह करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नजर नहीं आ रहा। इस क्षेत्र में 2 पार्टियों के प्रधानों के अलावा पंजाब की राजनीतिक में अहम पहचान रखने वाले नेताओं समेत 2 दर्जन के करीब प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें से कई राजनीतिज्ञों के लिए इस सीट की जीत-हार न सिर्फ प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, बल्कि इससे कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी तय होगा।

विशेषकर कई तरह के विवादों में घिरी आम आदमी पार्टी के प्रांतीय कन्वीनर भगवंत सिंह मान इस क्षेत्र में चुनाव मैदान में हैं, जिनकी जीत-हार न सिर्फ भगवंत मान के राजनीतिक भविष्य को दिशा देगी, बल्कि इससे पंजाब में आम आदमी पार्टी के अस्तित्व संबंधी भी स्थिति स्पष्ट होगी। इसी तरह शिरोमणि अकाली दल (अ) के प्रधान सिमरनजीत सिंह मान भी एक बार फिर से इस क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे हैं जिन्हें मिलने वाली वोट जनता में उनके आधार को दर्शाएगी।  

बदल गए है संगरूर के राजनीतिक समीकरण
इस बार इस क्षेत्र में कई राजनीतिक परिस्थितियां और राजनीतिक समीकरण काफी हद तक बदल चुके हैं, क्योंकि अब न तो आम आदमी पार्टी का पहले की तरह बोलबाला नजर आता है और न ही इस बार डेरा प्रेमियों के वोट बैंक संबंधी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है। इसके साथ ही अकाली दल में घटे पिछले घटनाक्रम के चलते इस क्षेत्र से संबंधित दिग्गज अकाली राजनीतिज्ञ सुखदेव सिंह ढींढसा के इस्तीफे समेत अन्य कई मामलों ने इस क्षेत्र के समीकरण बदल दिए हैं। 

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भगवंत मान के पक्ष में बातें

  •  सैलीब्रिटी वाला प्रभाव।
  •  लोकसभा सदस्य के रूप में संसद में पंजाब के कई मुद्दे उठाना।
  •  9 विधानसभा क्षेत्रों में 5 में आप के विधायक होना।
  •  भाषण शैली में निपुण होने से लोगों को आकर्षित करने का गुण होना।
  •  आप का प्रदेशाध्यक्ष होना।
  •  क्षेत्र की कई समस्याओं के निवारण हेतु लगातार यत्नशील रहना।

विरोध में बातें

  •  निचले स्तर पर ‘आप’ का लगातार गिर रहा ग्राफ।
  •  कई विधायकों द्वारा आप को छोड़ कर कांग्रेस का दामन थामना। 
  •  केजरीवाल द्वारा मांगी माफी से लोगों में घटिया प्रभाव।
  • खैहरा गुट द्वारा किया रहा दुष्प्रचार। 
  •  लोकसभा सदस्य होने के बावजूद क्षेत्र में कोई बड़ा प्रोजैक्ट न लेकर आना।

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परमिंदर सिंह ढींडसा के पक्ष में बातें

  •  शरीफ, ईमानदार, मेहनती और नर्म स्वभाव वाले नेता की छवि होना। 
  •  नौजवान नेता के रूप में काम करने का शौक होना।
  •  क्षेत्र में पिछले समय में करवाए कार्यों का प्रभाव।
  •  पिछले समय के दौरान लहरागागा क्षेत्र में मिली सबसे बड़ी लीड।
  •  हमेशा विवादों से दूर रहकर घटिया राजनीति को नजरअंदाज कर सभी की समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करना।

 विरोध में बातें 

  •  शिअद के खिलाफ बेअदबी जैसे लगे गंभीर आरोपों का प्रभाव।
  •  पिछले समय के दौरान पिता द्वारा पार्टी और चुनाव प्रचार से बनाई गई दूरी। 
  •  सरकार विरोधी पडऩे वाली वोट का कई भागों में बंट जाना। 
  •  पिछले समय के दौरान सुनाम क्षेत्र छोड़कर लहरागागा जाना।
  • 5 दशक के दौरान उच्च पदों पर रहने के बावजूद क्षेत्र में कोई भी बड़ा उद्योग न लगाना। 

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जस्सी जसराज के पक्ष की बातें

  •  नौजवानों में गायक के रूप में पहचान।
  •  प्रमुख पार्टियों के खिलाफ पडऩे वाले वोट का लाभ मिलने की संभावना।
  •  नौजवान होने से काम करने का जोश और जज्बा।
  •  कुछ स्थानों पर मिल रहा प्यार।
  •  आप से परेशान कई लोगों का समर्थन। 

विरोध में बातें

  •  बोल चाल तीखी होना। 
  •  पार्टी के निचले स्तर पर ज्यादा आधार न होना।
  •  अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले प्रचारकों की कमी।
  •  जिले से बाहर का होना।
  •  नई पार्टी का प्रत्याशी होना।

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केवल सिंह ढिल्लों के पक्ष की बातें

  •  कांग्रेस सरकार का प्रभाव होना।
  •  मुख्यमंत्री के करीबियों में शुमार होने का लाभ।
  •  क्षेत्र में बड़ा उद्योग स्थापित करके कई नौजवानों को रोजगार दिलाना। 
  •  2 बार विधायक के रूप में काम करने का अच्छा अनुभव।
  •  बरनाला को जिला बनाने में निभाई भूमिका का लाभ। 
  •  बेदाग चरित्र और ईमानदारी के अलावा अच्छा स्वभाव होने का लाभ।

विरोध में बातें

  •  अन्य के मुकाबले भाषण शैली में अंतर।
  •  क्षेत्र में अधिक समय न देना।
  •  चुनाव प्रचार शुरु करने में देरी।
  •  सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से का नुक्सान।
  •  कई बागी नेताओं के साथ जुड़ने से अन्य में नाराजगी।
  •  आम लोगों और वर्करों से दूरी के आरोप।

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