Edited By Vatika,Updated: 31 Mar, 2025 01:27 PM

चाहे ट्रैफिक पुलिस शहर की ट्रैफिक को ढर्रे पर लाने के लिए बहुत सराहनीय कार्य
अमृतसर : चाहे ट्रैफिक पुलिस शहर की ट्रैफिक को ढर्रे पर लाने के लिए बहुत सराहनीय कार्य कर रही है, परंतु कुछ अन्य पहलू ऐसे भी है, जिसको ठीक करना भी ट्रैफिक पुलिस व स्थानीय प्रशासन का ही दायित्व बनता है। हम बात कर रहे हैं शहर की सड़क पर यैलो लाइन के बाहर कारे व अन्य वाहनों को पार्क करने वाली जगहों पर रेहड़ियों, फड़ियों द्वारा किए हुए नाजायज कब्जों की। इसके अलावा शहर में पैदल चलने वाले फुटपाथों पर भी कुछ दुकानदारों द्वारा अपनी जागीर समझकर किए हुए कब्जों की। शहर में प्रशासन द्वारा एक रेहड़ी मार्किट भी बनाई जा चुकी है, परंतु उसके बावजूद शहर में अवैध रेहड़ियों व फड़ियों की भरमार है। आखिर प्रशासन की लंबी-चौड़ी फौज होने के बावजूद किसकी मिलीभगत से वाहन पार्क करने वाले पार्किग जोनों में ये रेहड़ी-फड़ी अपनी रेहड़ियां लगाकर पक्का कब्जा जमाई बैठे हैं? ये एक बड़ा प्रश्न है। रेहड़ी व फड़ी लगाने से चाहें हजारों की संख्या में लोगों का पेट भरता है, परंतु उनको चाहिए कि वे अपनी रेहड़ियां व फड़ियां एक सीमित जगह पर लगा कर रखे, जिससे एक तो ट्रैफिक को बाधित न हो और दूसरा उनकी वजह से किसी वाहन चालक को मजबूरी में वाहन का चालान न कटवाना पड़े। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रैफिक पुलिस निगम के कर्मियों को साथ लेकर कब्जाधारियों को खदेड़ने की भी मुहिम चलाता है, परंतु ऐसी मुहिम का क्या फायदा?, जिसका बाद में ध्यान ही न रखा जाए कि वहां पर दोबारा कब्जे हुए हैं या नहीं।
रेहड़ी-फड़ियां कैसे लग रही, जांच का विषय
मुहिम छेड़ने के बावजूद उसी प्रकार ही रेहड़ी-फड़ियां कैसे लग जाती हैं? ये एक जांच का विषय है। कुछेक लोगों का आरोप है कि यैलों लाइन के बाहर लगी ये रेहड़ी-फड़ियां व दुकानदारों द्वारा यैलो लाइन के बाहर तक किए ये अवैध कब्जे निगम प्रशासन के कर्मियों के अंदरखाते सहयोग के बिना नहीं हो सकते, यानि कि दाल में कुछ काला है या फिर पूरी दाल ही काली है? इस पर आवश्यक तौर से जांच जरूर होनी चाहिए। कुछेक का आरोप है कि ये रेहड़ी फड़ी वाले महीना भरते हैं। ये महीना किस अधिकारी या कर्मियों को भरते है? इस पर जिला व पुलिस प्रशासन को अपने स्तर पर जांच बैठानी चाहिए।
बिना किसी डर के फुटपाथों पर अपनी जागीर समझकर कब्जे करते हैं दुकानदार
सबसे बड़ी बात शहर के कई बाजारों के अधिकांश दुकानदारों की हैं, जो बिना किसी डर के फुटपाथों को अपनी जागीर समझकर उस पर कब्जे करी बैठे हैं। प्रशासन चाहे इन पर छापामारी चलाता है, परंतु ये फिर से फुटपाथों पर अपना सामान रखकर कब्जा कर लेते हैं। इसके अलावा कई दुकानदारों द्वारा तो यैलो लाइन के बाहर तक पूरे दिन भर अपनी सामान जमाई रखते है। इससे वाहन चालकों द्वारा अपने वाहन पार्क करना संभव नहीं होता। इसका परिणाम उनको मोटा चालान भरकर सामने आता है। कुछ वाहन चालकों (जिनकी कारों का सड़क पर खड़े होने के कारण वाहन टो होकर मोटा चालान कटा था) ने अपने नाम ना छापने की तर्ज पर कहा कि पार्किंग जोन पर रेहड़ी फड़ी वालों का कब्जा था तो वो कुछ ही मिनटों पर अपने वाहन सड़क के एक छोर पर पार्क करके गए, परंतु वो जल्द ही वापस आए तो देखा कि उनकी कार ट्रैफिक पुलिस प्रशासन के टो-वाहन द्वारा उठा ली जा चुकी थी। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें जुर्माना भरना पड़ा। ऐसे की कुछ मामले शहर में आने वाले पर्यटकों के सामने आते हैं, जिन्हें मजबूरी वश ऐसे चालान भरने पड़ते है जो कसूर उन्होंने मजबूशीवश करना पड़ा हो, परंतु प्रश्न यह है कि क्या ट्रैफिक पुलिस का काम सिर्फ चालान काटने तक ही सीमित है।
क्या कब्जा धारियों के चालान नहीं काटे जाने चाहिए
क्या इन कब्जा धारियों के चालान नहीं काटे जाने चाहिए। न्यू-रियालटों वाली सड़क के सेंट पाल चर्च वाली सड़क पर देखे तो प्रशासन के नाक तले ही यैलो लाइन के बाहर व पैदल चलने वाले फुटपाथों पर पक्के तौर पर कब्जा किए हुए बैठे हैं, जिससे लोगों को मजबूरी वश अपने वाहन सड़कों की साइड पर पार्क करने पड़ते हैं और आते ही चालान भरना पड़ता है। वाहन चालकों का कहना था कि इसी सड़क पर से रोजाना ही शहर के संबंधित प्रशासनिक उच्चाधिकारियों के अलावा कई बड़े उच्चाधिकारी व कई नेतागण गुजरते है। क्या उनको ये समस्या नजर नहीं आती। वाहन चालकों का कहना है कि प्रशासन दिनभर व पक्के तौर पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करके उनको खदेड़े। ये मुहिम महीने में चार-पांच दिन ही नहीं, बल्कि पंद्रह बीस दिनों तक चले तो ये कब्जाधारी अपना कब्जा छोड़ेंगे, वर्ना स्थिति एक ढाक के तीन पात वाली ही रहेगी। दूसरी तरफ रेहड़ी-फड़ी वालों को उनके परिजनों के पेट पालने के लिए शहर में दो-तीन और जगहें बनाई जानी चाहिए, जहां पर ये पक्के तौर से रेहड़ियां लगाकर अपनी रोजी-रोटी कमा सके।