मां के कंधों पर विदा हुए सिपाही अरुणजीत, रोते हुए बोलीं, 'लौटा दो मेरा लाल'

Edited By Vatika,Updated: 23 Dec, 2019 04:51 PM

pathankot soldier arunjeet funeral

विश्व के सबसे ऊंचे व दुर्गम युद्ध क्षेत्र सियाचीन ग्लेशियर में तैनात सेना की 5 डोगरा यूनिट के 22 वर्षीय सिपाही अरुणजीत कुमार जो ग्लेशियर से छुट्टी आ रहे थे, चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर लैंड करते ही जिनकी तबीयत बिगड़ गई तथा उन्हें सेना के कमांड अस्पताल चंडी...

बमियाल/पठानकोट/तारागढ़ (मुनीष, आदित्य): विश्व के सबसे ऊंचे व दुर्गम युद्ध क्षेत्र सियाचीन ग्लेशियर में तैनात सेना की 5 डोगरा यूनिट के 22 वर्षीय सिपाही अरुणजीत कुमार जो ग्लेशियर से छुट्टी आ रहे थे, चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर लैंड करते ही जिनकी तबीयत बिगड़ गई तथा उन्हें सेना के कमांड अस्पताल चंडी मंदिर में दाखिल करवाया गया।
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जहां इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया। रविवार को तिरंगे में लिपटी उनकी पार्थिव देह को सेना के जवानों द्वारा बमियाल सैक्टर में पड़ते उनके सीमावर्ती गांव फरवाल लाया गया। अरुणजीत की मां ने बेटे की तिरंगे में लिपटी पार्थिव देह को श्मशानघाट तक कंधा भी दिया, जहां पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। रोते-बिलखते हुए मां ने कहा कि मेरा लाल मुझे लौटा दो। वहीं वहां मौजूद हर किसी की आंखों में आंसू थे। मामून से आई सेना की 3/4 जी.आर. यूनिट के जवानों ने शस्त्र उल्टे कर हवा में गोलियां दागते हुए बैंड की मातमी धुन के साथ सिपाही अरुणजीत को सलामी दी। स्टेशन कमांडर मामून कैंट की तरफ से मेजर दीपक सिंह व 5 डोगरा यूनिट के कमांडिंग अफसर कर्नल पीयूष सूद की तरफ से सूबेदार नरेंद्र सिंह के अलावा हलका विधायक जोगिन्द्र पाल, शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविन्द्र सिंह विक्की, नायब तहसीलदार सतीश कुमार ने रीथ चढ़ाकर सिपाही अरुणजीत को सैल्यूट किया। इस मौके ब्लाक समिति बमियाल के चेयरमैन तरसेम रतड़वां, सरपंच दलजीत सिंह, पी.पी.सी.सी. सचिव सुरेंद्र महाजन शिंदा व रविन्द्र शर्मा, सरपंच सुमित, नायब सूबेदार निर्मल कुमार थापा, सूबेदार शक्ति पठानिया, शहीद सिपाही जतिन्द्र कुमार के पिता राजेश कुमार, कैप्टन स्वर्ण सिंह, कैप्टन हरदीप सिंह, कैप्टन बलवीर सिंह आदि उपस्थित थे।

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मां की फोटो ले गया था ग्लेशियर
5 महीने पहले सिपाही अरुणजीत की यूनिट फैजाबाद से ग्लेशियर जा रही थी तो उन्होंने घर फोन पर परिवार को पठानकोट मिलने के लिए कहा था तथा मां नीलम को अपनी फोटो साथ लाने को कहा। मां ने बाकी परिवार के साथ पठानकोट पहुंच बेटे से पूछा कि उसकी फोटो का वह क्या करेगा तो अरुणजीत ने कहा कि मां ग्लेशियर में बहुत खतरा है। वहां ड्यूटी करना बहुत कठिन है। शायद में वहां से जिंदा वापस न आ पाऊं। जितनी देर भी वहां रहूंगा तेरी फोटो को देखकर मेरा जोश कायम रहेगा।

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बेसुध हुई मां व बहनें 
तिरंगे में लिपटी सिपाही अरुणजीत की पार्थिव देह जब गांव फरवाल पहुंची तो सारे गांव में मातम पसर गया। मां नीलम व बहनें मोनिका व वीरता अरुणजीत की मृतक देह देखते ही बेसुध हो गई। होश में आते ही उनकी चीत्कारें पत्थरों का कलेजा भी छलनी कर रही थी।


अरुणजीत के कंधों पर थी परिवार की जिम्मेदारी
अरुणजीत परिवार में इकलौता कमाने वाला था। घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी, क्योंकि उनका पिता दर्शन कुमार व बड़ा भाई अमरजीत मजदूरी करते है तथा दोनों छोटी बहनें पढ़ाई पूरी कर घर बैठी हैं। उनकी शादी की उसे बहुत चिंता थी। कहता था कि बहनों की शादी करने के बाद ही खुद शादी करेगा। मां नीलम ने बेटे अरुणजीत के माथे पर सेहरा बांध व बहनें मोनिका व वीरता ने मृतक भाई की कलाई पर राखी बांध अंतिम विदाई दी। 

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