जिस जेल से ड्रग रैकेट चलते हों वहां पुलिस-कैदियों की भिडंत पर हैरत!

Edited By Vaneet,Updated: 27 Jun, 2019 07:40 PM

more than 3 000 prisoners lodged in jail

जिस जेल से बैठे-बिठाए कैदी दिल्ली से पंजाब तक ड्रग रैकेट को हैंडल करते हों। जिनके लिए हर तरह का नशा और मोबाईल तक की सुविधा जेल में उपलब्ध हो जाती हो, ....

लुधियाना(सूरज ठाकुर): जिस जेल से बैठे-बिठाए कैदी दिल्ली से पंजाब तक ड्रग रैकेट को हैंडल करते हों। जिनके लिए हर तरह का नशा और मोबाईल तक की सुविधा जेल में उपलब्ध हो जाती हो, उनका गुस्सा जब किसी बात को लेकर सातवें आसमान पर चला जाए तो जाहिर है कि वह जेल मुलाजिमों की पूजा तो नहीं करेंगे। ऐसा ही घटनाक्रम गुरूवार को लुधियाना की सेंट्रल जेल में जब हुआ तो इसमें हैरत वाली बात तो होनी ही नहीं चाहिए। वो भी इस सूरत में जब जेल में बंद अपराधिक प्रवृति के 3 हजार से ज्यादा खुंखार कैदियों और हवालातियों में अनुशासन कायम करने का जिम्मा मात्र 271 जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों के कंधों पर हो। यहां सूबे के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के उस दावे की भी दाद देनी पड़ेगी, जिसमें वह राज्य की जेलों में व्यवस्था को सुधारने के लिए लंबे अरसे से नए कर्मियों की भर्ती की बात कर रहे हैं।

ये है लुधियाना सेंट्रल जेल में व्यवस्था  
लुधियना सेंट्रल जेल में 3 हजार से कैदियों की सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखने का जिम्मा करीब 275 जेल कर्मियों पर है जिनमें एक दर्जन के करीब अधिकारी भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि रेस्ट, छुट्टी या बीमारी की सूरत में कैदी के साथ अस्पताल में ड्यूटी देने के बाद करीब 125 मुलाजिम ही जेल में रोजाना तैनात रहते हैं। जेल में परिसर की निगरानी के लिए पांच टॉवर हैं, जबकि वहां 10 टॉवर की जरूरत है। जेल के बाहर केवल दो पीसीआर गश्त कर रहे हैं, जबकि चार होने चाहिए। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है की टकराव की स्थति में इन मुलाजिमों को हाल क्या होता है। लुधियाना में भी कुछ ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई और सूबे के आसपास के इलाकों की पुलिस को भारी मात्रा में जेल में तैनात करना पड़ा। कैदियों को काबू करने के लिए करीब 5 घंटे का समय लगा। आसू गैस के गोले छोड़े गए और फायरिंग अलग से करनी पड़ी।

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केस स्टडी-1
जेल से बैठकर दिल्ली से पंजाब तक ड्रग रैकेट

बात 28 अप्रैल की है पंजाब पुलिस की एसटीएफ लुधियाना निर्मल पैलेस रोड पर सुखविंदर कौर नाम की महिला तस्कर को 440 ग्राम हैरोइन के साथ गिरफ्तार करती है। एसटीएफ इसे बहुत बड़ी उपलब्धि मानती है, लेकिन एसटीएफ की यह उपलब्धि लुधियाना जेल प्रशासन की पोल खोल देती है। मामले से परतें उठने के बाद पता चलता है कि महिला का बेटा लवदीप सिंह लुधियाना सेंट्रल जेल में बंद है और उसी के कहने पर वह दिल्ली से एक निगरो से नशा लेकर आई थी, वह फोन पर उसके संपर्क में था। खुलासा होने पर लवदीप का फोन जेल से बरामद हो जाता है। इस घटनाक्रम के बाद  मोहाली स्थित एसटीएफ थाने में आपराधिक मामला दर्ज होता है। इस साल की ही बात करें तो नशे समेत पकड़े गए 28 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं।

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केस स्टडी-2
जेल में कहां से आया नशीला पाउडर और नशा?

बात 31 मई की करते हैं, लुधियाना जेल में अचानक चैकिंग होती है। तीन कैदियों के कब्जे से नशीला पदार्थ और मोबाइल फोन बरामद किया जाता है। थाना डिविजन सात की पुलिस ने सहायक सुपरिंटेंडेंट तरलोचन सिंह की शिकायत पर जगरांव के रामपुरा मोहल्ला निवासी कैदी हरजीत सिंह, एसबीएस नगर स्थि ढांडा नगर निवासी मंदीप कुमार और हरियाणा स्थित भवानी के तेलीवाड़ा चौक निवासी दीपक कुमार के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट व अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाता है। आरोपियों के कब्जे से 24 ग्राम नशीला पाउडर और एक मोबाइल फोन बरामद किया जाता है। यहां यह जांच का विषय हो जाता है कि मोबाइल फोन और नशीला पाउडर कहां से आया है। इसी तरह जेल में 18 जून को तीन आरोपियों से मोबाइल जब्त किए गए। अगर 2018 की बात करें तो में जेल में कैदियों से 150 मोबाइल बरामद किए थे और पुलिस ने 115 केस दर्ज किए थे। कम स्टाफ का ही नतीजा है कि जेल में अक्सर मारपीट के मामले सामने आते हैं। साल 2018 में पुलिस ने जेल में हुई मारपीट के 20 पर्चे दर्ज किए।  

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केस स्टडी-3
कैदियों की मानसिक स्थिति 

अगर बात कैदियों की मानसिक दशा की बात करें तो उनकी हालत संतोषजनक नहीं है। जेल प्रशासन पहले ही कई परेशानियों से जूझ रहा है। ऐसे में किसी मनोविज्ञानिक चिकित्सक से कैदियों की काउंसिल के बारे में सोचना उससे कोसों दूर है। बात 23 मई की है लुधियाना सेंट्रल जेल में पारिवारिक परेशानी के कारण अरूण नाम के कैदी ने 12 थर्मामीटर तोड़कर इनमें मौजूद पारा पी लिया। अरूण गोराया का रहने वाला है। वह हत्या के मामले में 15 साल की सजा काट रहा है। उसकी जेल में मिलने आए उसके परिजनों से कहासुनी हो गई थी। उसकी ड्यूटी जेल अस्पताल में थी, जहां उसे थर्मामीटर आसानी से मिल गए। हालात खराब होने पर उसे अस्पताल लेजाया गया, जहां उसकी जान बच गई।  

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सूबे की हर जेल व्यवस्था बदहाल
पंजाब की जेलें क्रिमिनल्स को सुधारने में नाकाम होती जा रही हैं। आपराधिक गतिविधियां जेलों में बढ़ती जा रही हैं। सबसे सुरक्षित माने जाने वाली नाभा जेल में बेअदबी के आरोपी डेरा समर्थक का कत्ल सरकार और जेल प्रशासन पर सवालिया निशान छोड़ता है। अब शायद ही सूबे की कोई ऐसी जेल बची हो जहां पर नशाखोरी, जानलेवा हमले, कैदियों की आपस व पुलिस के साथ भिडंत के मामले दर्ज न हों। बहरहाल सजायाफ्ता कैदी फिर से जेलों में आपराधिक प्रवृति को अपना रहें हैं, जो कैप्टन सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। चूंकि सजा काटने के बाद यही कैदी पंजाब में वैसा ही माहौल कायम कर देंगे, जिसे सरकार दरुस्त करने का प्रयास कर रही है।

 

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