Edited By Urmila,Updated: 12 Mar, 2025 11:10 AM
जालंधर नगर निगम के 7वें और शहर के पहले आम आदमी पार्टी के मेयर वनीत धीर ने ठीक 2 महीने पहले यानी 11 जनवरी को मेयर की पोस्ट का चार्ज ग्रहण किया था।
जालंधर (खुराना): जालंधर नगर निगम के 7वें और शहर के पहले आम आदमी पार्टी के मेयर वनीत धीर ने ठीक 2 महीने पहले यानी 11 जनवरी को मेयर की पोस्ट का चार्ज ग्रहण किया था। इससे पहले 2 साल से भी ज्यादा लंबे समय तक जालंधर निगम पर अफसरशाही का राज रहा और उन 2 सालों में जालंधर नगर निगम का सिस्टम अत्यंत बिगड़ गया। उन दिनों नगर निगम के अफसरों ने खूब मनमानियां कीं जिस कारण लोगों की निगम में सुनवाई बिल्कुल ही बंद हो गई।
दिसम्बर 2024 में जब पंजाब सरकार ने जालंधर निगम के चुनाव करवाने का कार्यक्रम बनाया तो करीब 1 माह पहले मुख्यमंत्री कार्यालय से आए निर्देशों और आम आदमी पार्टी के नेतृत्व के दबाव तले निगम के अफसरों ने शहर की शक्ल सूरत बदलने का काम शुरू किया। एक महीने में निगम के अफसरों द्वारा कोटेशन और सैंक्शन के आधार पर करोड़ों रुपए के काम करवा लिए गए। इसके बावजूद जालंधर नगर निगम में आम आदमी पार्टी को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और सत्तापक्ष को जोड़ तोड़ का सहारा लेना पड़ा।
मेयर वनीत धीर के 2 माह के कार्यकाल की बात करें तो इस दौरान उनके समक्ष कई चुनौतियां आई। नगर निगम की दोनों यूनियनों ने उनके समक्ष अपनी-अपनी मांगों के चार्टर रखे जिनमें मेयर काफी उलझे भी रहे। मेयर को सबसे ज्यादा तंगी निगम के ओ. एंड एम. विभाग से आई जिसके जिम्मे शहर की वाटर सप्लाई और सीवरेज व्यवस्था की जिम्मेदारी है।
इन 2 महीनों में शायद एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब पानी और सीवर को लेकर निगम विरुद्ध प्रदर्शन न हुए हो। खुद मेयर का अपना वार्ड सीवर के गंदे पानी में कई कई दिन डूबा रहा। इसके अलावा उन्हें बंद पड़ी स्ट्रीट लाइटों, टूटी सड़कों, जगह जगह लगे कूड़े के ढेरों, सड़कों पर हुए कब्जों और साफ सफाई व्यवस्था संबंधी कई दिक्कतें आईं जिस बाबत उन्होंने निगम अधिकारियों से असंख्य बैठकें भी कीं और ढेरों आदेश भी निकाले ।
2 महीने में ही टूट गया मेयर के सब्र का बांध
वनीत धीर को वैसे तो काफी शांत स्वभाव का माना जाता है, परंतु मेयर की पोस्ट का चार्ज संभालने के 2 महीने के भीतर ही उनके सब्र का बांध टूट गया। पिछले सप्ताह के अंत में उन्होंने नगर निगम के बड़े अफसरों को साफ शब्दों में वार्निंग दे डाली कि अगर उनका काम करने का मन नहीं है तो जालंधर से अपनी बदली किसी दूसरे शहर में करवा लें। मेयर ने ऐसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया कि अगर इस काम में किसी अफसर को उनकी हैल्प चाहिए तो वह बदली करवाने में मदद करने को भी तैयार हैं।
कहा जाता है कि मेयर ने अफसरों को यह अल्टीमेटम भी दिया है कि बड़े अफसरों की ए.सी.आर. उन्होंने ही लिखनी है और वह ए.सी.आर. में सब कुछ लिख देंगे। मेयर ने यह भी कहा कि अफसरों की कारगुजारी संबंधी रिपोर्ट सरकार को दी जाएगी और लापरवाही किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगी। जिस अफसर के जिम्मे जो भी काम है, उसे करना ही होगा।
एक ही दिन में मेयर ने दी-दो बार वार्निंग
नगर निगम के अफसरों की कारगुजारी से मेयर वनीत धीर इतने परेशान रहे कि उन्होंने एक ही दिन में बड़े-बड़े अफसरों को दो बार वार्निंग जारी की। पहली वार्निंग उन्होंने मॉडल टाऊन स्थित मेयरहाउस में शाम के समय अफसरों संग हुई एक बैठक दौरान आमने सामने दी और कहा कि अब उनके सब्र का पैमाना भर चुका है। अफसरों ने यदि लोगों की सुनवाई नहीं करनी है और काम ही नहीं करना तो ऐसे अफसरों की जालंधर में कोई जरूरत भी नहीं है, इस बारे सरकार को पूरी जानकारी दी जाएगी।
कहा जाता है कि आमने-सामने हुई बैठक के कुछ घंटे बाद ही रात के समय मेयर ने अफसरों को लेकर बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप में भी अपनी भड़ास निकाली और वहां कई मैसेज लिख दिए। जिसमें साफ कहा गया कि जिस अफसर ने जालंधर में काम नहीं करना है, वह यहां से बदली करवा कर जा सकता है। अफसर की ए.सी.आर लिखने संबंधी अल्टीमेटम भी मेयर ने व्हाट्सएप ग्रुप में ही दिया।
सीनियर डिप्टी मेयर बिट्टू भी अफसरशाही से परेशान दिखे
मेयर के साथ साथ सीनियर डिप्टी मेयर बलबीर सिंह बिट्टू भी निगम की अफसरशाही से अच्छे खासे परेशान दिख रहे हैं। गत दिनों उन्होंने भी मेयर ऑफिस में बैठकर निगम के दो अफसरों एस.ई. राहुल गगनेजा और एक्सियन जसपाल सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। बलबीर बिट्टू ने कहा कि पार्षदों को छोटे छोटे कामों के लिए भी मेयर, कमिश्नर या एस.ई. के पास आना पड़ रहा है।
सभी जोन कार्यालय जेईज के हवाले कर दिए गए हैं परंतु न वह किसी का काम करते हैं, न फोन उठाते हैं और न वहां मिलते हैं। अगर कच्चे आधार पर रखे जेईज का यह हाल है तो उनकी बजाए दूसरों को नौकरी दी जानी चाहिए। बलबीर बिट्टू का साफ कहना था कि चुनाव जीतने के बाद लोगों पास जाते समय उन्हें कई परेशानियां आ रही है परंतु निगम के अधिकारी उन समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहे। बीच बीच में अफसरों का तर्क था कि विभाग में कर्मचारियों और स्टाफ की काफी कमी है, जिसे पूरा किए बिना सिस्टम में सुधार हो ही नहीं सकता।
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