ब्यास में प्रदूषण से डॉलफिन-घडियाल पर गहराया संकट

Edited By swetha,Updated: 19 May, 2018 03:15 PM

fish dies in beas river

ब्यास नदी में फैले कैमिकल के प्रदूषण ने हजारों मछलियों को लील लिया है। प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि डॉलफिन व घडियालों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वन्यजीव विभाग के सर्वे में शुक्रवार को एक भी डॉलफिन देखने को नहीं मिली। दरिया में कुछ...

चंडीगढ़ (अश्वनी कुमार): ब्यास नदी में फैले कैमिकल के प्रदूषण ने हजारों मछलियों को लील लिया है। प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि डॉलफिन व घडियालों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वन्यजीव विभाग के सर्वे में शुक्रवार को एक भी डॉलफिन देखने को नहीं मिली। दरिया में कुछ चुनिंदा टापुओं की जांच-पड़ताल के बाद एक-दो घडिय़ाल ही दिखाई दिए। वन्यजीव विभाग के अधिकारियों की मानें तो पानी साफ होने के बाद ही पता चल सकेगा कि डॉलफिन की गिनती दुरुस्त है या नहीं। 

पंजाब वन्यजीव विभाग व डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. ने प्रदूषण फैलने के कुछ दिन पहले ही डॉलफिन का सर्वे किया था जिसमें ब्यास दरिया में दर्जनभर डॉलफिन होने की बात सामने आई थी। इसी कड़ी में सर्दियों के दौरान नदी में घडिय़ाल इंट्रोडक्शन प्रोग्राम के तहत 25 से ज्यादा घडिय़ाल भी रिलीज किए गए थे। इस प्रोग्राम को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के स्तर पर मॉनीटर किया जा रहा था। बाकायदा मंत्रालय ने ही पंजाब सरकार को ब्यास में 50 घडिय़ाल छोडऩे की अनुमति दी थी। ऐसे में अब प्रदूषण के कारण इस नैशनल प्रोग्राम पर आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। डॉलफिन व घडियाल लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके वन्यप्राणी की सूची में शामिल हैं। 

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने किया दौरा
प्रदूषण से ब्यास नदी की बायोडायवर्सिटी को हुए नुक्सान का जायजा लेने के लिए खुद चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन कुलदीप कुमार ने मौके का दौरा किया। उन्होंने बताया कि इस प्रदूषण ने ब्यास नदी की बायोडायवर्सिटी को ध्वस्त कर दिया है।  मरे हुए जलीय वन्यजीवों की तादाद इतनी ज्यादा है कि जगह-जगह बदबू फैल गई है। किनारे से दूर-दूर तक केवल भूरे रंग का पानी ही दिखाई देता है। यह पंजाब में अब तक के सबसे बड़े सीधे पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने वाले हादसे की संज्ञा दी जा सकती है।
 
मरी मछलियों से पैदा हो सकता है खतरा
 
शूगर मिल से निकलने वाले सीरे से ब्यास दरिया में लाखों मछलियों के मर जाने के उपरांत जहां इन जीवों का मर जाना एक बड़ी त्रासदी है, वहीं बड़ी बात यह है कि इन मछलियों को बड़ी संख्या में लोग चोरी-छुपे वाहनों से उठा कर भी ले गए हैं। ऐसे में इनके इस्तेमाल करने से बड़ा खतरा पैदा हो सकता है क्योंकि मर चुकी मछलियों को लोग यदि खाने में प्रयुक्त कर लेते हैं तो ये उनके लिए हानिकारक हो सकती हैं। पहले इस बात की खबर थी कि मरी मछलियों को पुलिस ने बड़ी संख्या में अपनी कस्टडी में ले लिया है किन्तु ऐसा नहीं है। इस संबंध में आई.जी. बॉर्डर रेंज एस.पी.एस. परमार ने स्पष्ट किया कि पुलिस इन जीवों को अपनी कस्टडी में नहीं ले सकती यह संबंधित विभागों का काम है।

क्या कहते हैं फिश ट्रेडर्ज
अमृतसर की बड़ी मंडी हाल गेट की मछली मार्कीट के थोक व्यापारी व अनुभवी अक्षय कुमार ने बताया कि जिंदा मछली पानी के बहाव में अपने आप को क्षेत्रीय सीमा में सुरक्षित रखती है पर मृत्यु हो जाने पर वह पानी के बहाव में बह जाती हैं व काफी दूर तक निकल जाती हैं और इन्हें पेशेवर ग्रामीण लोग निकाल सकते हैं। हालांकि मई से अगस्त तक बाजारों में मछली नहीं आती केवल छुटपुट माल हिमाचल से ही आता है। यदि यह त्रासदी सॢदयों में आती तो मुश्किल ज्यादा बड़ सकती थी। 


इन बातों का रखें ध्यान
* ग्रामीण क्षेत्रों में मछली की खरीदारी में सावधानी रखी जाए।
* चलते-फिरते अंजान लोगों से मछली न खरीदी जाए।
*मछली रंग सामान्य से अलग हो जाता है।
* ऐसी मछली में बेहद दुर्गंध आती है।
*कैमीकल प्रभाव से मरी मछलियां अधिक हानिकारक होती हैं।
* सीरे से मरी मछलियां जानलेवा नहीं होती।

 

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