आसान नहीं है 84 के कातिलों को फांसी

Edited By swetha,Updated: 21 Nov, 2018 10:47 AM

not easy to hang 84 slaughterers

1984 के सिख विरोधी दंगों के साथ जुड़े एक मामले में दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने चाहे 2 दोषियों नरेश सहरावत और यशपाल सिंह को सजा सुनाई है, जिससे दंगा पीड़ित परिवारों में खुशी की लहर है। पर दोषियों को फांसी की सजा इतनी...

जालंधर(वैब डैस्क/ जसबीर):1984 के सिख विरोधी दंगों के साथ जुड़े एक मामले में दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने चाहे 2 दोषियों नरेश सहरावत और यशपाल सिंह को सजा सुनाई है, जिससे दंगा पीड़ित परिवारों में खुशी की लहर है। पर दोषियों को फांसी की सजा इतनी आसान नहीं है। अगर हम अपने देश के कानून की बात करें तो इसकी न्याय प्रणाली इतनी ढीली और जटिल है कि यहां न्याय मांगने वाले न्याय मांगते-मांगते दुनिया से रुखस्त हो जाते हैं, परंतु न्याय नहीं मिल पाता।  

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ये रहेगी कोर्ट की अगली प्रक्रिया
यदि इस मामले में कोर्ट की आगे वाली प्रक्रिया की बात करें तो अभी यह फैसला पटियाला हाऊस की लोअर कोर्ट की तरफ से ही दिया गया है। यह तय है कि दोषियों की तरफ से इस मामले की पटीशन हाईकोर्ट में भी डाली जाएगी वहां मामला कितनी देर लटकेगा इस बारे भी कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि यहां से भी दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा। देर-सवेर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी यदि फांसी की सजा सुना दी जाती है तो इसके बाद भी दोषियों को डबल बैंच के पास रिव्यू पटीशन डालने का हक है। यदि सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच भी दोषी को फांसी की सजा सुना देती है तो इसके बाद वह राष्ट्रपति के पास रहम की अपील भी कर सकता है। 

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अब तक किन लोगों को हुई फांसी  
आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 13 सालों में अब तक सिर्फ 4 लोगों को ही फांसी दी गई है, जबकि लोअर कोर्ट की तरफ से 371 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इस दौरान 2004 में धनंजय चैटर्जी को नाबालिगा के रेप और कत्ल केस में फांसी दी गई थी। इसके बाद 21 नवम्बर, 2012 को मुम्बई हमले के दोषी मोहम्मद अजमल कसाब को फांसी दी गई। इसी तरह 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को पार्लियामैंट अटैक मामले में फांसी दी गई थी। इस तरह के मामलों में सबसे आखिरी फांसी की सजा 30 जुलाई, 2015 को याकूब मेनन को दी गई थी। 

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निर्णय ने साबित किया कि केंद्र में सरकार का बदलाव सिखों को इंसाफ दिला सकता है: बादल

चंडीगढ: पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने आज दिल्ली की एक अदालत द्वारा नवम्बर 1984 में हुए निर्दोष सिखों के कत्लेआम के एक केस में एक दोषी को मृत्यु की सजा तथा दूसरे को उम्रकैद की सजा सुनाने के फैसले का स्वागत किया है। इस बारे में एक सांझा बयान जारी करते हुए दोनों बादलों ने कहा कि यह इंसाफ हवा का पहला झोंका है। यह फैसला इस बात का सबूत है कि केंद्र में हुआ सरकार का बदलाव हजारों निर्दोष सिखों को इंसाफ दिला सकता है, क्योंकि ये केस केंद्र में मौजूद पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा बंद किए जा चुके थे तथा इन्हें शिरोमणि अकाली दल के कहने पर मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हुक्म देकर दोबारा खुलवाया है।

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1984 हत्याकांड के पीड़ितों के लिए न्याय की नई किरण जागी : पीर मोहम्मद
 ऑल इंडिया सिख स्टूडैंट फैडरेशन के अध्यक्ष करनैल सिंह पीर मोहम्मद ने 1984 सिख विरोधी हत्याकांड के 2 आरोपियों को सजा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इससे लंबे समय से न्याय की लड़ाई लड़ रहे पीड़ित परिवारों के लिए नई उम्मीद की किरण जागी है। उन्होंने कहा कि 34 वर्षों के बाद कोर्ट की ओर से सजा का फैसला अपने आप में महत्वपूर्ण है जिससे बाकी आरोपियों को भी सजा की उम्मीद बंधी है। 

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