शहर में थम नहीं रहा प्रैशर हॉर्न का कहर

Edited By Vatika,Updated: 17 Jan, 2019 12:26 PM

pressure horn

शहर की सड़कों पर इन दिनों ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की गिनती बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ महीने प्रदूषण नियंत्रण व ट्रैफिक विभाग द्वारा ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम ने असर दिखाया था व काफी वाहनों से प्रैशर हॉर्न हटाए गए थे पर पिछले कुछ...

जालंधर(बुलंद): शहर की सड़कों पर इन दिनों ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की गिनती बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ महीने प्रदूषण नियंत्रण व ट्रैफिक विभाग द्वारा ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम ने असर दिखाया था व काफी वाहनों से प्रैशर हॉर्न हटाए गए थे पर पिछले कुछ दिनों में शहर में दोबारा प्रैशर हॉर्न का कहर देखने को मिल रहा है।

वातावरण प्रेमियों की मानें तो सुबह व दोपहर को स्कूलों-कालेजों के टाइम पर मोटरसाइकिलों पर कुछ युवाओं द्वारा प्रैशर हॉर्न बजाकर भारी हंगामा किया जाता है। खास तौर पर डी.ए.वी. कालेज, जी.एन.डी.यू. कालेज लद्देवाली आदि के आसपास युवाओं द्वारा अपने मोटरसाइकिलों पर प्रैशर हॉर्न लगाकर खूब हल्ला मचाया जाता है। वहीं देर रात ज्योति चौक से मकसूदां रोड, नैशनल हाईवे, 120 फुटी रोड पर भारी वाहनों द्वारा प्रैशर हार्न जो कि अक्सर किसी गीत की धुन पर होते हैं, बजाकर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जा रहा है।

प्रैशर हॉर्न कमजोर करते हैं कानों की नसें: डा. संजीव
ई.एन.टी. स्पैशलिस्ट डा. संजीव शर्मा का कहना है कि आमतौर पर वाहनों के हॉर्न की 80 डेसिबल तक ध्वनि की इजाजत होती है पर जो प्रैशर हार्न वाहनों पर इस्तेमाल हो रहे हैं उनकी 100 डेसीबल से भी अधिक क्षमता होती है जो सीधे तौर पर लोगों के कानों पर दुष्प्रभाव डालते हैं। इन हॉर्नों से खासकर बुजुर्गों व बच्चों के कानों की नसें कमजोर होती हैं जिससे कम सुनाई देने लगना, कानों में सांय सांय की आवाज आते रहना व चक्कर आने की समस्या शुरू हो जाती है। विदेशों में तो हॉर्न बजाना गाली के समान समझा जाता है, क्योंकि वहां लोग अपनी लेन में ही गाड़ी चलाते हैं लेकिन हमारे देश में तो बड़े वाहनों के पीछे ही लिखा होता है ‘हॉर्न बजाओ’ जो कि कानूनन गलत है। जिला पुलिस व प्रशासन इस संबंधी लोगों को जागरूक करें व नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई की जाए।

 

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