IG कुंवर विजय प्रताप ने दलबदल विरोधी कानून पर लिखी नई पुस्तक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jul, 2018 04:45 PM

kunwar vijay pratap

पंजाब पुलिस के आई.पी.एस. अधिकारी आई.जी. कुंवर विजय प्रताप सिंह ने अब एक नई पुस्तक लिखी है जो दलबदल विरोधी कानून पर आधारित है। कुंवर विजय, जिन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से पुलिस प्रशासन में पीएच.डी. तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से...

जालन्धर (धवन): पंजाब पुलिस के आई.पी.एस. अधिकारी आई.जी. कुंवर विजय प्रताप सिंह ने अब एक नई पुस्तक लिखी है जो दलबदल विरोधी कानून पर आधारित है। कुंवर विजय, जिन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से पुलिस प्रशासन में पीएच.डी. तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से  एल.एल.बी. की हुई है, ने अपनी चौथी पुस्तक बाजार में उतारी है। इससे पहले वह ‘संत कबीर के अनमोल वचन’, ‘राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट’ तथा ‘साइबर क्राइम’ पर भी किताबें लिख चुके हैं। 
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कुंवर विजय ने इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी से ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट में एम.बी.ए. तथा संस्कृत में पटना यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री भी हासिल की हुई है। भारतीय इतिहास में भी उनको प्रवीणता प्राप्त है। वास्तव में मौजूदा दलबदल विरोधी कानून काफी मजबूत है जिस कारण इसने दलबदलुओं पर रोक लगाने में सफलता हासिल की है। पुस्तक चाहे पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है परन्तु इसने दलबदलुओं को लेकर विभिन्न विवादास्पद मुद्दों पर प्रकाश अवश्य डाला है। वास्तव में यह कानून भ्रष्टाचार मिटाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा बनाया गया। कुंवर विजय प्रताप ने अपनी नई पुस्तक का हवाला देते हुए बताया कि पहले दलबदल विरोधी कानून किसी भी पार्टी के विधायकों पर उस समय तक लागू नहीं होता था जब तक कि असंतुष्ट विधायकों या सांसदों की गिनती एक तिहाई न हो। अब पिछले समय में इस कानून को भारत सरकार ने और कड़ा बना दिया था ताकि दलबदलुओं पर रोक लगाई जा सके। 

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उन्होंने कहा कि अब नए कानून के प्रावधान के अनुसार दलबदल विरोधी कानून उस समय तक लागू नहीं होगा जब तक असंतुष्टों की गिनती दो-तिहाई तक नहीं पहुंच पाती। इसका अर्थ है कि दो-तिहाई बहुमत जुटाने के बाद ही असंतुष्ट सियासी नेता दलबदल विरोधी कानून की चपेट में आने से बच सकेंगे। ऐसी स्थिति में ही सांसदों या विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकेगा। कुंवर विजय प्रताप ने कहा कि उनकी नई पुस्तक का उद्देश्य वास्तव में मौजूदा समय में छिड़ी लाभ वाले पदों की जंग पर प्रकाश डालना है। उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 102 (1) (ए) के तहत उस सदस्य को अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर वह भारत सरकार या राज्य सरकार में लाभ वाले पद पर आसीन हैं। इसी तरह से धारा 191 (1) (ए) में कहा गया है कि राज्य विधानसभा, राज्य परिषद के सदस्य को उस समय अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर वह भारत सरकार या राज्य सरकार में लाभ वाले पद पर आसीन हो। 
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उन्होंने कहा कि धारा 102 (1) (ए) के क्लॉज (1) में कहा गया है कि अगर कोई सदस्य भारत सरकार या राज्य सरकार में मंत्री पद पर आसीन है तो उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए मंत्री पद को लाभ वाले पद से छूट दी गई है।  इसी तरह से अगर राज्य सरकार लाभ वाले पदों को इस सूची से बाहर रख देती है तो भी यह नियम विधायकों पर लागू नहीं होगा। राज्य सरकार या केंद्र सरकार इस संबंध में विभिन्न पदों को लाभ वाले पदों की श्रेणी से बाहर रख सकती है। उन्होंने पुस्तक में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा,पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसी राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी पदों को लाभ वाले पदों से बाहर रखने के मामलों का भी विस्तार से जिक्र किया।

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