राजनीतिक दलों के लिए चिन्ता का सबब बनी व्यापारी वर्ग की चुप्पी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Oct, 2017 12:24 PM

the silence of the merchant class for the political parties

गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। 11 अक्तूबर को होने वाले मतदान के लेकर काऊंट-डाऊन शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह इस संसदीय क्षेत्र में 2 दौरे कर चुके हैं तथा भाजपा भी विशाल रैली कर...

पठानकोट(शारदा): गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। 11 अक्तूबर को होने वाले मतदान के लेकर काऊंट-डाऊन शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह इस संसदीय क्षेत्र में 2 दौरे कर चुके हैं तथा भाजपा भी विशाल रैली कर चुकी है परन्तु चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाला व्यापारी वर्ग फिलहाल रहस्यमय चुप्पी धारण किए हुए है, जो राजनीतिक दलों के लिए चिन्ता का सबब बना हुआ है। 

हालांकि पंजाब केसरी ने पहले ही खुलासा कर दिया था कि इस बार उपचुनाव में व्यापारी वर्ग चंदा देने के लिए दलों को ठेंगा दिखाएगा। दिन बीतने व मतदान निकट आने के बाद ठीक वैसी ही परिस्थितियां बनती नजर आ रही हैं तथा कहीं भी व्यापारी वर्ग में चुनाव को लेकर सक्रियता नजर नहीं आ रही।

प्रॉपटी का व्यापार हो चुका है ठप्प
दूसरी ओर प्रॉपटी का व्यापार पूरी तरह ठप्प हो चुका है तथा कहीं भी किसी प्रकार की इस क्षेत्र में सेल-परचेज नहीं हो रही। जो लोग इस धंधे में लाखों-करोड़ों कमाते थे, वे हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं। इस धंधे में सक्रिय कारोबारियों को भय है कि कहीं बेनामी सम्पति को लेकर कोई कानून न बन जाए, वहीं व्यापारियों को समझने वाले लोगों का मानना है कि 80 प्रतिशत कारोबार इस क्षेत्र में पूरी तरह चौपट या कम हो गया है। नकदी की किल्लत लगातार बनी हुई है।  

व्यापारियों का राजनीतिक दलों पर प्रभाव
इसमें कोई दो राय नहीं कि व्यापारी वर्ग कुल वोट का महज 5 से 10 प्रतिशत ही होता है, ऐसे में व्यापारी वर्ग चुनाव को अधिक प्रभावित करने की स्थिति में नहीं रहता, परन्तु उनकी लाखों-करोड़ों की दुकानें व कारोबार कस्बों के मुख्य बाजारों में हैं। ये दुकानें चुनाव के दिनों में राजनीति का अड्डा होती हैं। अब पिछले 10-12 दिनों से त्यौहारी सीजन भी शुरू हो गया है। नोटबंदी व जी.एस.टी. लागू होने के बाद यह पहला उपचुनाव है। ऐसे में व्यापारी वर्ग व उनका परिवार उपचुनाव प्रति क्या रुख धारण करेगा, यह यक्ष प्रश्र है। फिलहाल व्यापारी वर्ग का गुस्सा सातवें आसमान पर है। अब 11 अक्तूबर को होने जा रहे उपचुनाव के लिए मतदान में व्यापारी वर्ग वोटर के रूप में क्या निर्णय लेता है, यह देखना रुचिकर होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हर कस्बे में व्यापारी वर्ग का संगठन होता है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी दल से जुड़ा होता है, वहीं राजनीतिक दलों का भी इन संगठनों के साथ संबंध होता है। देखने में आया है कि व्यापारी वर्ग कांग्रेस या भाजपा का कार्यक्रम हो, दोनों ही जगह जाते हैं। इस संसदीय क्षेत्र के व्यापारी वर्ग के संगठनों पर कांग्रेस व भाजपा का प्रभाव है परन्तु दूसरी ओर सामान्य व्यापारी वर्ग एक राय बनाकर एकजुट नजर आ रहा है। 

दोनों परम्परागत राजनीतिक दल व्यापारियों को रिझाने के मूड में
उपचुनाव में आमने-सामने आ खड़े हुए दोनों ही राजनीतिक दल कांग्रेस व भाजपा व्यापारियों को रिझाने के मूड में हैं। कोई राष्ट्र तो कोई राज्य हित की बात करके व्यापारी वर्ग को अपने साथ जोडऩे के लिए नूरा-कुश्ती कर रहा है। 6 महीने पहले हुए वि.स. चुनाव में व्यापारियों ने जो स्टैंड लिया था, उसका परिणामों पर प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिला था। अब यह तो समय ही बताएगा कि उपचुनाव के परिणाम 15 अक्तूबर को क्या होते हैं परन्तु एक तथ्य तो खुलकर सामने आ गया है कि व्यापारी वर्ग इस उपचुनाव को प्रभावित करने के मूड में है।

दूसरी ओर व्यापारी वर्ग की रहस्यमय चुप्पी सुनामी आने से पहले की शांति भर है। व्यापारी वर्ग का मानना है कि नोटबंदी के बाद इसका प्रभाव पड़ रहा है। पहले उन्हें उम्मीद रहती थी कि त्यौहारी सीजन उनके वारे-न्यारे कर देगा परन्तु नोटबंदी के बाद से परिस्थितियां बदली हैं। ऐसे में इस बार दीपावली पर 40 प्रतिशत कारोबार कम होने की संभावना नजर आ रही है जिसको लेकर भी व्यापारी वर्ग ङ्क्षचतित है।

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