नतीजे से पहले भाजपा में हार की समीक्षा!

Edited By Updated: 18 Feb, 2017 02:13 AM

the results of the review before the bjp defeat

पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही भाजपा की वीरवार को हुई बैठक में विशेषकर....

जालंधर: पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही भाजपा की वीरवार को हुई बैठक में विशेषकर गिफ्ट और इलैक्शन मैनेजमैंट को लेकर चर्चा हुई और समीक्षा बैठक में स्थिति काफी विस्फोटक रही। शायद बैठक फ्लॉप होने के पीछे यही कारण रहे। एक बड़े भाजपा नेता के अनुसार 23 प्रत्याशियों में से लगभग 20 ने साफ  तौर पर हाईकमान को कहा है कि प्रदेश भाजपा का नेतृत्व पार्टी के अंदर चल रहे विरोध को कम करने में नाकाम रहा है। इसलिए पंजाब में भाजपा को अब तक की सबसे बड़ी हार का डर सता रहा है।  

चुनावी खानापूॢत या ओवर कॉन्फीडैंस  
प्रत्याशियों का तो यहां तक कहना है कि विधानसभा चुनाव में ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम चुनाव जीतने के लिए मैदान में उतरे हैं। ऐसा लग रहा था कि हम मात्र खानापूर्ति कर रहे हैं। एक भाजपा नेता के अनुसार हाईकमान को यह कहा गया था कि मुकाबला 3 दलों के बीच है और सरकार विरोधी वोट कांग्रेस और आप के साथ-साथ बसपा में बंट रहे हैं। विरोधी वोट बंटने के कारण हम आसानी से जीत जाएंगे। यह हमारा ओवर कॉन्फीडैंस था।

अकाली दल पर ठीकरा फोडऩे की तैयारी
भाजपा अगर हारी तो उसका ठीकरा अकाली दल पर फोडऩे की तैयारी अभी से शुरू हो गई है।  मीटिंग में अधिकतर भाजपा उम्मीदवारों ने कहा कि अकाली दल के खिलाफ बने नफरत के माहौल का खमियाजा उनको भुगतना पड़ सकता है। चुनाव में नशाखोरी का मुद्दा हावी रहने के कारण कोई भाजपा की बात सुनने को तैयार नहीं हुआ। 

खर्च पर भी उठे सवाल
कई उम्मीदवारों ने चुनावों के दौरान केन्द्र से आए फंड के खर्च पर सवाल उठाए। उन्होंने साफ कहा कि जहां जरूरत थी वहां तक पैसा पहुंच ही नहीं पाया। कई कमजोर उम्मीदवारों को यह कह कर अपने तौर पर प्रबंध करने का फरमान सुनाया जाता रहा कि इस बार चुनाव खर्च के लिए ऊपर से पैसे ही नहीं आए जबकि जिनके पास पैसों का कंट्रोल था उन्होंने मनमर्जी से खर्च किया और चहेतों को मौज करवाई। 

न सुखबीर से गिफ्ट,न पार्टी ने हाथ खोला
कुछ नेताओं को यह भी कहते सुना गया कि सुखबीर बादल की तरफ से भी पिछले चुनावों में भाजपा प्रत्याशियों को कुछ सामान भेजा जाता था लेकिन इस बार ऐसा कोई गिफ्ट नहीं आया। भाजपा प्रभारी प्रभात झा से इस बारे अलग हुई बात में यह मुद्दा भी उठा कि पार्टी ने इस बार हाथ नहीं खोला और कई जगह दूसरी पाॢटयों के बागियों को मजबूत करने के लिए सुखबीर द्वारा दी जाती आॢथक मदद भी इस बार नाममात्र ही रही। 

...तो फिर किसने किया चौपर का प्रयोग 
कई उम्मीदवारों ने चौपर का प्रयोग करने को लेकर भी प्रदेश इकाई की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए । ऐसा नहीं कि हाईकमान पैसे खर्च नहीं करना चाहता दो चौपर दिए गए थे। प्रचार के दौरान  चौपर कहां और किसने प्रयोग किया इसका कोई पता नहीं है क्योंकि कई बार नेताओं के तय कार्यक्रम में न पहुंच पाने या लेट होने के लिए चौपर का प्रबंध न होने का ही बहाना बनाया गया। 

फगवाड़ा- भाजपा उम्मीदवार सोम प्रकाश का सांपला समर्थकों द्वारा विरोध करने से भीतरघात का खतरा। अगर हारे तो हार का कारण अपने लोग ही बनेंगे।

जालंधर वैस्ट- उम्मीदवार महिन्द्र भगत का भी सांपला समर्थकों ने विरोध किया। एक नेता का वीडियो वायरल हुआ, कह रहा था भगत को वोट मत डालना। 

जालंधर नार्थ- के.डी. भंडारी का भाजपा के 3 पार्षद खुलेआम विरोध कर रहे थे। हालांकि चुनाव में संघ के कहने पर खामोश रहे लेकिन इस सीट पर भी भीतरघात का खतरा है। 

जालंधर सैंट्रल- मनोरंजन कालिया का हालांकि भाजपा के बाहर ज्यादा विरोध नहीं था लेकिन एक गुट अंदरखाते कालिया को हराने में लगा हुआ था। ये कितना नुक्सान कर पाता है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। 

होशियारपुर- तीक्षण सूद का सांपला गुट अंदरखाते विरोध कर रहा है जिसका नुक्सान सूद को हो सकता है। 

मुकेरियांं- अरुणेश शाकर के खिलाफ  भाजपा से बागी होकर जंगी लाल महाजन चुनाव लड़ रहे हैं। मनाने की कोशिश बेकार रही।  

दसूहा- सुखजीत कौर साही का भी अपने ही कुछ नेता अंदरखाते विरोध कर रहे थे। 

पठानकोट- अश्वनी शर्मा का भाजपा के पूर्व मंत्री मास्टर मोहन लाल विरोध कर रहे थे। मोहन लाल ने तो आजाद प्रत्याशी के रूप में नामांकन भी दायर कर दिया था लेकिन केन्द्रीय मंत्री 

अरुण जेतली के कहने पर वह मान गए लेकिन इसके बावजूद कुछ नेता विरोध कर रहे थे।  
भोआ-सीमा कुमारी का भाजपा में अंदरखाते काफी विरोध हुआ था। इतना ही नहीं विधायका के पति का हलके में भी विरोध था। एक बार तो मारपीट की नौबत तक आ गई थी। यहां पर भी भीतरघात का खतरा है।

अमृतसर नार्थ- अनिल जोशी की सीट को सुरक्षित माना जा रहा था लेकिन विरोध के कारण यहां पर भी मामला फंस गया है। राजपुरा सीट पर हरजीत ग्रेवाल का पूर्व विधायक राज खुराना का परिवार विरोध कर रहा था। स्थानीय अकाली नेता भी साथ नहीं थे। आनंदपुर साहिब से परमिंदर शर्मा को मंत्री मदन मोहन मित्तल की टिकट काट कर दी गई थी। इस सीट के कई दावेदार थे। यहां पर भीतरघात का सबसे ज्यादा खतरा रहा।

लुधियाना उत्तरी- दूसरी बार चुनाव लड़े प्रवीण बांसल के लिए टिकट मांगने वाले डिप्टी मेयर आर.डी. शर्मा व पार्षद पति मिंटू शर्मा आदि ने खुलकर साथ नहीं दिया। कई मौजूदा व पूर्व पार्षद साथ चले, लेकिन अधिकतर अंदरखाते विरोध कर रहे थे। बांसल को अकाली दल के जिला प्रधान मदन लाल बग्गा के आजाद खड़े होने का भी नुक्सान हो सकता है।

लुधियाना सैंट्रल- टिकट कटने के कारण सतपाल गोसाईं ने पहले कांग्रेस ज्वाइन की, फिर भाजपा में वापस आ गए लेकिन वह एक भी दिन गुरदेव शर्मा देबी के लिए वोट मांगने नहीं गए। भाजपा पार्षद गुरदीप नीटू ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कुछ और पार्षद भी खुलकर देबी के साथ नहीं चल रहे थे।

लुधियाना वैस्ट- इस सीट पर पहले चुनाव हारे राजेन्द्र भंडारी ने अब उम्मीदवार कमल चेतली के लिए किसी जगह प्रचार करने की जगह सिर्फ फेसबुक या व्हाट्सएप पर ही वोट अपील की। उनका खेमा भी खुलकर नहीं चला। यही हाल कुछ जगह अकाली दल का भी रहा। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!