ड्रैगन से व्यापारिक टक्कर लेने की भारतीय निर्माताओं में क्षमता नहीं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Oct, 2017 09:31 AM

indian manufacturers are not capable of trading collision with dragon

चीन से आने वाले माल की बिक्री को देश में रोकने के लिए पिछले कई महीनों से समाज सेवी संस्थाओं और राजनीतिक पाॢटयों द्वारा भी मुहिम चलाई जा रही है कि भारत में चीन के माल की बिक्री के कारण देश का उद्योग-व्यापार चरमरा रहा है और भारत के नागरिकों का पैसा...

अमृतसर(इन्द्रजीत): चीन से आने वाले माल की बिक्री को देश में रोकने के लिए पिछले कई महीनों से समाज सेवी संस्थाओं और राजनीतिक पार्टियों द्वारा भी मुहिम चलाई जा रही है कि भारत में चीन के माल की बिक्री के कारण देश का उद्योग-व्यापार चरमरा रहा है और भारत के नागरिकों का पैसा विदेशों को जा रहा है। इससे देश की अर्थ व्यवस्था के लिए आने वाले समय में खतरा पैदा हो सकता है।

ऐसी कई दलीलों के साथ लोगों को भावनात्मक तौर पर भी कहा जा रहा है कि भारतीय लोगों को भारतीय उत्पाद का इस्तेमाल करना चाहिए किन्तु इस के बावजूद चीन के माल की बिक्री दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण है कि चीन के माल की कीमत भारतीय उत्पादों की अपेक्षा अत्यंत कम होती है। यही कारण है कि चीन के माल की कीमत के सामने भारत में बनी वस्तुएं मार्कीट में आने के बाद तिनके की तरह उड़ जाती हैं।

हालांकि चीन के माल को इस्तेमाल करने से रोकने के लिए पिछले 25 वर्ष से प्रचार किया जा रहा है कि चीन के बने माल की क्वालिटी घटिया होती है किन्तु उपभोक्ताओं पर इसका कोई असर दिखाई नहीं देता।भारत में बिकने वाले चीन के उत्पाद इतने अधिक हो चुके हैं कि भारत के निर्माताओं को इसका व्यापारिक तौर पर सामना करने के लिए चीजों के रेट घटाने के साथ-साथ उत्पादन की क्षमता भी बढ़ानी होगी। ऐसी बहुत-सी असमानताएं हैं जो भारत की मंडियों में देश के निर्माताओं के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर रही हैं। 

खिलौने, घडियां व ऐनकें 
चीन के माल में सबसे अधिक बिकने वाली चीजें खिलौने, घडिय़ां व ऐनकें हैं, जिनकी सेल करोड़ों रुपए प्रतिदिन देश में हो रही है। देखने में आया है कि भारत के बने खिलौनों में टैडी बियर, डॉग्स, ट्राईसाइकिल, इलैक्ट्रॉनिक खिलौने इत्यादि हैं जिनकी भारतीय खिलौनों की अपेक्षा कीमत मात्र 15 से 20 प्रतिशत है। ऐसी परिस्थितियों में बच्चों के खेलने वाले खिलौने जो अधिक मजबूत होने की आवश्यकता को लोग नहीं समझते, चीन के माल को ही विकल्प बना लेते हैं।

दूसरी ओर चीन से आने वाली इलैक्ट्रोनिक  घडियां, इतनी सस्ती हैं कि 1970 के दशक में जब ये  घडियां, देश में आई थीं तो इन्हें तोल कर मार्कीट में बेचा जाता था। एकदम से आने वाली इन घडिय़ों ने एक बार तो भारतीय घडिय़ों की सेल को रोक लगा दी थी। दूसरी ओर भारतीय ऐनकें जोकि ब्रांडेड कंपनी की 2000 से 2 लाख तक कीमत रखती हैं, जैसी हू-ब-हू दिखने वाली चीन मेड ऐनकें 50 से 200 रुपए तक बाजार में आम र्मि जाती हैं जबकि चीन की नजर की ऐनक तो 50 रुपए से शुरू हो जाती है जबकि भारतीय नजर की ऐनकें 500 से शुरू होती हैं।

ऑटो पार्ट्स और बियरिंग
चीन के माल ने पिछले 20 वर्षों से ऑटो पार्ट्स और बॉल बियरिंग की दुनिया में धमाल मचा रखा है। चीन से आने वाले बियरिंग की कीमत जहां उदाहरण के तौर पर 15 से 25 रुपए है वहीं उसी साइज के 6204, 6203, 6205, 6301, 6302 इत्यादि बड़ी सेल रखने वाले बियरिंग 60 से 125 रुपए तक के हैं। ऐसी परिस्थिति में वर्कशाप के मैकेनिक और छोटी मशीनों के निर्माता चीन के बियरिंग्स का इस्तेमाल करते हैं।

एक अनुमान के अनुसार यदि चीन निर्मित बियरिंग का आयात खत्म कर दिया जाए तो भारतीय बियरिंग की सेल 10 गुणा बढ़ जाएगी किन्तु लोगों का कहना है कि यदि चीन से आने वाले इन पुर्जों को बंद कर दिया जाए तो भारतीय निर्माता अपना रेट 6 गुणा और बढ़ा देंगे। दूसरी ओर ऑटो पार्ट्स में भी चीन निर्मित माल ने धमाल मचा रखा है। बाइक में प्रयुक्त होने वाले स्पार्क प्लग, इलैक्ट्रीकल हार्न, स्विच, इंजन पार्ट्स में वॉल्व, केम, रॉकर, हैलोजिन बल्ब, ट्यूब, सी.डी.आई. यूनिट, बजर, बैटरी, टाइमिंग चेन इत्यादि कई ऐसी चीजें है जिनकी सेल का यदि अनुमान लगाया जाए तो ऑटो पार्ट्स की 25 प्रतिशत सेल यही आइटम्स खपा जाती हैं। भारतीय निर्माताओं द्वारा बनाई गई यही चीजें चीन के माल से 10 से 15 गुणा अधिक महंगी हैं। 

टायर और ट्यूब का व्यापार
पिछले लम्बे समय से भारत की मंडियों में अपना प्रभुत्व जमा चुकी ब्रांडिड टायर की कंपनियां अपने मनचाहे तरीके से माल को बेच र

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