Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 07:16 PM
भारत-पाक सीमा से करीब 13 किलोमीटर दूर सटे दीनानगर पुलिस स्टेशन पर ठीक दो वर्ष पहले आज ही के दिन हुए.....
दीनानगर(कपूर): भारत-पाक सीमा से करीब 13 किलोमीटर दूर सटे दीनानगर पुलिस स्टेशन पर ठीक दो वर्ष पहले आज ही के दिन हुए आतंकी हमले को याद कर आज भी दिल-दहल उठता है तथा इस हमले की चपेट में आने वाले दीनानगर वासियों की जिंदगी के लिए यह हमला अभिशाप बनकर रह गया है। हमले को दो वर्ष बीत जाने के बाद भी इसकी चपेट में आने वाले परिवारों के जख्म आज भी हरे है। एक तरफ अपनों को खोने का गम तथा दूसरी तरफ सरकार की उपेक्षा का दंश उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है। इस हमले में एक पुलिस कप्तान सहित चार पुलिस कर्मचारियों व तीन सिवलियनों को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया था।
आतंकियों द्वारा दीनानगर थाना पर हमला करने से पूर्व स्थानीय रेलवे ट्रैक पर रेलगाड़ी को उड़ाने की मंशा से पांच किलो आर.डी. एक्स से पांच बम फिट किए थे तथा उस ट्रैक से प्रात 5:30 बजे एक रेलगाड़ी भी इन बमों के ऊपर से गुजर गई मगर संयोगवश आतंकी अंधेरे के कारण उन बमों के कनैक्शन सहीं नहीं लगा पाए थे, जिसके कारण यह दीनानगर में घटने वाला बड़ा हादसा टल गया था और जब कुछ राहगीरों की नजर इन बमों पर पड़ी तो उनके द्वारा रेलवे विभाग को सूचित करने पर इस ट्रैक को बंद किया गया था, ऐसा न करने की सूरत में आतंकी इस नगर में बड़ी तबाही मचाने में कामजाब हो जाते।
सरकार की घोषाणाओं के पूरा होने की प्रतीक्षा में शहीद परिवार
इस हमले की दूसरी बरसी की पूर्व संध्या पर उस हमले में शहीद होने वाले होमगार्ड के जवान बोधराज निवासी सैदीपुर की पत्नी सुदेश कुमारी ने नम आंखो से बताया कि पति के शहीद होने पर बेशक सरकार ने उन्हें नौकरी तो दे दी, मगर अभी तक सरकार द्वारा घोषित उनके पति की याद में यादगारी गेट व गांव के सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर नहीं रखा गया है।
एन.जी.ओ कर रही है शहीद परिवारों के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने शहीद परिवारों को यह भरोसा दिलाया था कि उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्चा सरकार देगी, लेकिन एक महीना पैसे आने के बाद वह मदद भी बंद हो गई। मगर ए.एस.पी. दीनानगर वरुण शर्मा ने चेन्नई की एक एन.जी.ओ शौर्य चैरीटेबल ट्रस्ट के माध्यम से इन बच्चों की पढ़ाई व होने वाले खर्च का प्रबंध किया। यह संस्था किश्तो में इन परिवारों को आर्थिक सहायता भेजती है। शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद ने ए.एस.पी वरुण शर्मा के इन प्रयासों को एक सराहनीय कदम बताया है।
नए मकान की इच्छा मन में लेकर चले गए पापा: ज्योति
गांव सैदीपुर के शहीद जवान बोधराज की छोटी बेटी ज्योति ने बताया कि 26 जुलाई की शाम को जब पापा डयूटी पर गए तो नए बन रहे मकान पर हो रहे खर्च का हिसाब-किताब जोड़ रहे थे और जाते समय कहकर गए थे कि बाकि सब आकर देखता हूं, लेकिन वह आज तक नहीं लौटे। उसने बताया कि उनकी इच्छा थी कि मकान जल्दी बन जाए, मगर अफसोस उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। सरकार की ओर से मिले दस लाख रुपए की मदद से अब मकान तो बन गया, लेकिन देखने के लिए पापा नही रहे।
आज भी सुबह पति के आने का रहता है इंतजार: सुदेश
गांव जंगल निवासी शहीद देसराज की पत्नी सुदेश ने नम आंखो से बताया कि रोजाना की तरह 26 जुलाई की शाम को थाने पर ड्यूटी पर यह कहकर गए थे कि वह सुबह जल्दी आ जाएगे, मगर 27 जुलाई को सुबह पति के शहीद होने के बाद शाम 6 बजे उन्हें जानकारी दी गई। पति की शहादत के बाद सरकार ने उनके बेटे को नौकरी भी दे दी, लेकिन वह आज भी उन्हें पति के सुबह आने का इंतजार रहता है।
दो साल बाद भी बेटी को नहीं मिली नौकरी: कमलजीत
दीनानगर आतंकी हमले में सबसे पहले आतंकियो ने कमलजीत सिंह मठारू की गाड़ी को छीनकर उन्हें गंभीर रुप से घायल कर दिया था तथा उसी गाड़ी से आतंकी थाने तक पहुंचे थे। कमलजीत सिंह ने बताया कि उस हमले में उनकी दाई बाजू कंधे के पास से कट गई है तथा वह 87 फीसदी आपाहिज हो चुका है। उसका एक बेटा व एक बेटी है, जबकि बेटा बचपन से ही मंदबुद्धि है तथा परिवार में कमाने वाला अकेला बचा है, जब वह अमृतसर अमनदीप अस्पताल में एडमिट थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल उनका हाल जानने के लिए पहुंचे थे तथा उन्हें तीन लाख का चैक देकर यह कहा था कि उनकी बेटी को सरकार नौकरी देगी व उसे पेंशन देगी, मगर दो साल हो गए वह सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटकर थक चुके है, लेकिन अभी तक तत्कालीन मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल नहीं किया गया। इस हमले से उनके सारे परिवार की जिंदगी ठहर सी गई है। इस लिए वह सरकार से अपील करते है कि वह उनकी बेटी को नौकरी देकर उनके रिस्ते जख्मो पर मरहम लगाने का प्रयास करें।