Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Mar, 2018 01:32 PM
आर.टी.ए. दफ्तर में आर.सी. ट्रांसफर के लिए मैजिस्ट्रेट के जाली हस्ताक्षर वाले एफीडैविट लगाने के मामले में कुछ देर पहले सुर्खियों में आए विंटेज नंबर वाले एजैंट और उसकी सहायता करने वाले ब अक्षर वाले निजी कारिंदे के साथ तार जुड़ रहे हैं। तहसीलदार-1...
जालंधर(अमित): आर.टी.ए. दफ्तर में आर.सी. ट्रांसफर के लिए मैजिस्ट्रेट के जाली हस्ताक्षर वाले एफीडैविट लगाने के मामले में कुछ देर पहले सुर्खियों में आए विंटेज नंबर वाले एजैंट और उसकी सहायता करने वाले ब अक्षर वाले निजी कारिंदे के साथ तार जुड़ रहे हैं। तहसीलदार-1 करनदीप सिंह भुल्लर द्वारा हस्ताक्षर और मोहरों को पहले ही जाली बताया जा चुका है, जिसके चलते यह साफ हो जाता है कि एजैंटों को किसी कानून का कोई भय नहीं है और वे सरेआम गलत कामों को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
जानकारी के अनुसार विजीलैंस इस मामले को बेहद गंभीरता से लेकर गहन पड़ताल कर रही है जिससे आने वाले समय में इन दोनों की मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं। यहां बताने लायक है कि विजीलैंस की रेड से पहले ही पंजाब केसरी द्वारा इस बात का खुलासा किया गया था कि कैसे शहर के कुछ बड़े एजैंटों ने अपने दफ्तर में ही आर.टी.ए. दफ्तर खोल रखा है और हर छोटे-बड़े काम को अंजाम देने के लिए उनके पास हर साधन मौजूद है। अपने काम करवाने के लिए उक्त बड़े एजैंट बिना किसी डर के हर कायदे-कानून व नियम को तोड़ रहे हैं। आर.टी.ए. दफ्तर से काम करवाने में कोई अड़चन न आए इसके लिए उन्होंने अपने पास पूरे प्रदेश के आर.टी.ए. दफ्तरों की जाली मोहरें तक बनाकर रखी हुई हैं, जिनका इस्तेमाल आर.सी. की वैरीफिकेशन या तत्काल कापी के लिए किया जाता है। इन्हीं जाली मोहरों का खुलकर इस्तेमाल करके विंटेज नंबर वाले एजैंट और निजी कारिंदे ने धड़ल्ले से पुरानी सीरीज वाले नम्बरों को मोटी राशि लेकर बेचा और अपनी जेबें गर्म की, जिसका पता विजीलैंस की जांच में भी लग चुका है। इस मामले में किसी भी समय बड़ी कार्रवाई संभव है, जिसमें जाली सरकारी मोहरों बनाने और मैजिस्ट्रेट के जाली साइन करने पर पर्चा तक दर्ज हो सकता है।
विजीलैंस की रेड के बाद घर शिफ्ट किया सारा काम
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार निजी कारिंदे का पैसों को लेकर मोह इतना बड़ा है कि विजीलैंस की रेड का उस ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिसके चलते उसने सारा काम अपने घर में शिफ्ट कर लिया। विंटेज नंबर वाले एजैंट निजी कारिंदे के पास काम लेकर आता है। निजी कारिंदा सुबह थोड़ी देर के लिए दफ्तर आता है, और जरूरी दस्तावेज व अन्य औपचारिकताएं पूरी कर अपने घर जाकर बाकी काम निपटाता है। हालांकि किस कर्मचारी द्वारा इनका साथ दिया जा रहा है, उसको लेकर कुछ साफ नहीं है। मगर इतना तय है कि इन्हें दफ्तर से जरूर कुछ मदद मिल रही है, जिसके चलते वह इस काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
करोड़ों रुपए की संपत्ति का मालिक बन चुका है निजी कारिंदा
सूत्रों की मानें तो ऐसे गलत काम करके निजी कारिंदा करोड़ों रुपए की संपत्ति का मालिक बन चुका है। इस काम में उसने अपने एक नजदीकी रिश्तेदार को भी शामिल कर लिया है। काली कमार्ई के दम पर वह विदेश की सैर भी करता रहता है।
मृत व्यक्तियों के घर जाकर जाली साइन करवाने की चर्चा
मैजिस्ट्रेट के जाली हस्ताक्षर करने का मामला सामने आते ही, आर.टी.ए. दफ्तर में इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई, कि उक्त जोड़ी ने न केवल जाली मोहरें लगाकर जाली साइन किए हैं बल्कि ये दफ्तर से विंटेज (पुराने)नंबरों की डिटेल लेकर असल मालिक के पते पर जाते थे और जब उन्हें पता लगता था कि असल मालिक का निधन हो चुका है तो वे उसके जाली साइन कर नंबर आगे बेचने के गोरखधंधे को भी अंजाम दे रहे थे। फिल्हाल इस बात को लेकर कोई पुष्टि तो नहीं हुई है, मगर दफ्तर में इस बात की चर्चा बड़े जोर-शोर से हो रही है कि ऐसे नबंरों की जानकारी भी जल्दी ही विजीलैंस के पास पहुंचने वाली है।
क्या कहते हैं लीगल एक्पसर्ट?
सीनियर एडवोकेट के.के. अरोड़ा का कहना है कि किसी भी सरकारी अधिकारी के जाली हस्ताक्षर करना या फिर जाली मोहर बनाकर उसका इस्तेमाल करना और उसे असली बताकर इस्तेमाल करना सीधा-सीधा जालसाजी है। ऐसा करने वालों के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 465, 467 (मूल्यवान प्रतिभूति, विल इत्यादि की कूटरचना), 468 (छल के प्रयोजन से कूटरचना), 471 (कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रोनिक अभिलेख का असली के रूप में उपयोग लाना) के तहत पर्चा दर्ज हो सकता है। इन धाराओं में धारा 465 के तहत दो साल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। 467 के अधीन दोषी को उम्रकैद तक की सजा का भी प्रावधान है या 10 साल की सजा एवं 10 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है। धारा 468 के तहत दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की सजा का प्रावधान है। इसी तरह से धारा 471 के तहत दोषी पाए जाने पर दो साल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।