बेटों की शहादत बनी बहूअों की मौज,मां-बाप खा रहे धक्के

Edited By Updated: 26 Jul, 2016 12:07 PM

Sons martyrdom

भारतीय सेना की 13 जैक राइफल के शहीद लांस नायक हरीश पाल शर्मा के परिजनों का दर्द विजय दिवस पर दोगुना हो जाता है।

पठानकोट/कपूरथलाःभारतीय सेना की 13 जैक राइफल के शहीद लांस नायक हरीश पाल शर्मा के परिजनों का दर्द विजय दिवस पर दोगुना हो जाता है। कारगिल युद्ध को हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन इस युद्ध का दंश जेल चुके परिवारों के जख्म अाज भी हरे हैं। इन परिवारों को जहां अपने लाडलों से जुदा होने का गम सताता है वहीं सरकार ने इन्हें धक्के खाने को मजबूर कर दिया है।

भारत-पाक सीमा से सटे गांव झरोली के शहीद लांस नायक हरीशपाल का परिवार गरीबी में जी रहा है। शहीद की माता राज दुलारी व भाई सतीश शर्मा ने बताया कि 15 जून 1999 को कारगिल युद्ध में अपनी सैन्य टुक्ड़ी के साथ टाइगर हिल को फतेह कर हरीश ने शहादत दी थी। सरकार ने मरणोपरांत सेना का मैडल देने की घोषणा की थी लेकिन अाज तक नहीं मिला।

हरीश की मां के दुखों की दांस्तां यही खत्म नहीं होती । उसने बताया बेटे की शहादत के बाद उसकी बहू मायके चली गई अौ र फिर दूसरी शादी कर ली। सरकार से जो अार्थिक सहायता मिली थी उसे भी वे साथ ले गई। सरकार की अोर से अलॉट पैट्रोल पंप भी वही चसाती है। पंजाब सरकार ने जो 2 लाख रुपए दिए थे वे भी नहीं छोड़े उसने,अपने साथ ले गई।

उधर,बी.एस.एफ.के डिप्टी कमांडेट महिंदर राज ने कभी सोचा नहीं होगा कि शहादत के बाद उसके मां-बाप को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होगी। अातंकवादियों के साथ मुठभेड़ में बेटे को खोने वाले बूढ़े मां-बाप का दर्द अोर भी असहनीय हो जाता है,जब बेटे की शहादत के बाद मिलने वाली तमाम सरकारी सुविधाएं लेकर बहू  भी उनका साथ छोड़ जाती है। अनुकंपा के अाधार पर सहायक एक्साइज एंड टैक्सेशन कमिश्नर के पद पर पहुंच कर सरकारी नौकरी के साथ-साथ बहू शहीद पति का पैंशन भी ले रही है। प्रकाश एवेन्यू में रहने वाले शहीद के पिता मोहन लाल ने बहू को मिलने वाली पैंशन का हिस्सा लेने के लिए अब अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

 

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