उपराष्ट्रपति ने करतारपुर कॉरिडोर की रखी नींव, PAK पर बरसे कैप्टन अमरेंद्र

Edited By swetha,Updated: 26 Nov, 2018 02:47 PM

vice president will lay the foundation stone of the kartarpur sahib corridor

भारत-पाकिस्तान की दोस्ती की नई कड़ी को जोड़ने वाले करतारपुर साहिब सड़क गलियारे की उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सोमवार को आधारशिला रखी। पंजाब के गुरदासपुर जिले के मान गांव से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा को जोडने वाली इस सड़क की आधारशिला...

गुरदासपुर:  भारत-पाकिस्तान की दोस्ती की नई कड़ी को जोड़ने वाले करतारपुर साहिब सड़क गलियारे की उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सोमवार को आधारशिला रखी। पंजाब के गुरदासपुर जिले के मान गांव से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा को जोडने वाली इस सड़क की आधारशिला कार्यक्रम में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सहित कई नेता शामिल थे। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल और मुख्यमंत्री ने करतारपुर का रास्ता खोलने के लिए पाकिस्तान का धन्यावाद है। 

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उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने संबोधित करते कहा कि गुरु नानक देव जी ने बराराबरी का संदेश दिया। हमारी कोशिश से यह संभव हो पाया है। आज एक ऐतिहासिक दिन है। लंबे समय के बाद सपना आज पूरा हो है। यह कॉरीडोर दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करेगा। सिख श्रद्धालुओं का दशको पुराना सपना होने जा रहा है।

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इस मौके पर कैप्टन अमरेंद्र सिंह जमकर पाकिस्तान पर भड़ास निकाली। कैप्टन ने कहा कि यह कॉरिडोर प्यार के पैगाम से खुला है किसी की जोर-जबरी से नहीं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद किसी समस्या का हल नहीं। कैप्टन ने पाक सेना प्रमुख बाजवा को चेतावनी दी कि वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए काम करे। हमारे बच्चे मर रहे है, बर्बाद हो रहे है।

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क्या है गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का इतिहास? 
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब श्री गुरु नानक देव साहिब के जीवन काल की अनमोल यादें संजोए है। यहां गुरु साहिब ने सांसारिक जीवन के 17 साल 5 महीने और 9 दिन बिता कर न सिर्फ खुद कृषि का काम किया, बल्कि उन्होंने समूची मानवता को बांट कर छकने, काम करने और नाम जपने का उपदेश भी इसी पवित्र धरती पर दिया था। गुरु साहिब ने इसी ऐतिहासिक स्थान पर दूसरे गुरु अंगद देव साहिब जी को गुरुगद्दी सौंपी थी। इसके अलावा, यह स्थान गुरु साहिब के सांसारिक काल की अंतिम रस्मों से संबंधित यादें भी संभाले है, क्योंकि वह 22 सितंबर, 1539 को यहीं पर ज्योति-ज्योत में समाए थे।

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किस तरह का होगा रास्ता?
डेरा बाबा नानक से नारोवाल को जोड़ने वाली रेलवे लाइन पर रावी दरिया पर पुल भी था, लेकिन भारत-पाक के मध्य हुई जंग में इस पुल को ध्वस्त कर दिए जाने के बाद इस इलाके में पाकिस्तान को जाने के लिए कोई भी सीधा रास्ता मौजूद नहीं है। इस गुरुद्वारा साहिब को भी डेरा बाबा नानक से के लिए आजादी से पहले भी कभी कोई सीधा और पक्का रास्ता नहीं बनाया गया, लेकिन संगत की इच्छा और भावना को देखते साल 2003 दौरान कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार के समय डेरा बाबा नानक के विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा ने डेरा बाबा नानक से इस गुरुद्वारा साहिब की ओर सरहद तक करीब पौने 2 कि.मी. की पक्की सड़क का निर्माण करवा दिया था और अब भी यह संभावना है कि फिर उसी सड़क को चौड़ा और आधुनिक ढंग से आगे तक बनाया जाएगा। इस सड़क से आगे कंटीली तार की दूसरी तरफ मैदानी इलाका है, जहां किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं है। उस से आगे रावी दरिया के बिल्कुल किनारे पर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। 

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