Edited By Vatika,Updated: 26 Jun, 2021 04:11 PM

पंजाब में कांग्रेस सरकार और पार्टी इस समय अपने ही नेताओं की बयानबाजी और असंतोष के चलते चर्चा में है
चंडीगढ़ः पंजाब में कांग्रेस सरकार और पार्टी इस समय अपने ही नेताओं की बयानबाजी और असंतोष के चलते चर्चा में है। पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के खिलाफ बगावत का झंडा उठा रखा है तो कई मंत्री व विधायक भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह पार्टी में अनुशासन कायम रखने के साथ ही संगठन व अपनी सरकार की छवि को जनता में बरकरार रखें। ऐसे ही तमाम मसलों पर सुनील जाखड़ के साथ बातचीत की ‘पंजाब केसरी’ से हरिश्चंद्र ने। उस बातचीत के प्रमुख अंश :-
सवाल: सिद्धू बार-बार कह रहे हैं कि उन्हें कोई पद नहीं चाहिए, फिर वह मुख्यमंत्री से भी दो बार आखिर क्यों मिलने गए?
जवाबः इस बारे तो ये दोनों ही बेहतर बता सकते हैं लेकिन मुझे लगता है कि सिद्धृ अपना विभाग बदलने से आहत थे। उन्हें लगा कि उनके सम्मान को ठेस लगी है। समय रहते उनकी गरिमा बहाल करने की कोशिश होती तो शायद ठीक रहता और मसला भी जल्द सुलझ जाता।
सवालः नवजोत सिद्धू और कैप्टन अमरेंद्र सिंह के ताजा विवाद को बतौर प्रधान आप कैसे देखते हैं? यह मसला इतना क्यों बढ़ा?
जवाबः यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव में चंद महीने रहते पार्टी इस दौर से गुजर रही है। बतौर प्रधान मैं मानता हूं कि सभी पार्टी वर्कर और नेता मेरे साथी हैं, कोलीग हैं। सभी सम्मान के योग्य हैं, मगर पार्टी ने प्रधान की जिम्मेदारी मुझे सौंपी। मैं अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट रहा। सिद्धू का हाईकमान से सीधे संवाद है और उन्हें पार्टी में शामिल भी उसी स्तर पर किया गया था। राष्ट्रीय छवि होने के कारण सिद्धू उसी स्तर के नेता भी हैं। विशेष दर्जा होने के कारण पार्टी के प्रति विशेष दायित्व भी बनता है।
सवाल: चुनावी साल में ऐसे विवाद से पार्टी की चुनाव में कारगुजारी पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा?
जवाब: यह सही है कि विवाद बेहद ङ्क्षचता का विषय है, मगर इसे यदि सकारात्मक रूप में देखें तो हमारे पास अभी भी जनता की शंकाएं दूर करने का समय है। समय रहते कमजोरियां भांप कर उनका हल करने से पार्टी चुनाव में मजबूत होकर उतरेगी। हमें यह अवसर मिला है कि अभी से इन कमजोरियों और लोगों की सभी आशंकाओं को दूर करने के लिए उचित व ठोस कदम उठाएं। हां, यदि ये मसले चुनाव के समय उठते तो कहीं ज्यादा नुक्सान पार्टी को होता।
सवाल: चर्चा है कि आपकी जगह पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी सिद्धू प्रयास कर रहे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है?
जवाब: सरकार व पार्टी को मजबूत करने का अधिकार पार्टी हाईकमान को है। वह जिसे चाहे किसी भी पद पर बिठा सकती है मगर यहां मसला बेअदबी से जुड़ा है, जो किसी को प्रधान, सी.एम. या डिप्टी सी.एम. बनाने से हल नहीं होगा। कोई बदलाव या नियुक्तियां मूल मुद्दे को हल नहीं कर पाएंगी। ओहदे देने से मसला हल नहीं होने वाला।
सवाल: हाल ही में अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन किया है, इससे कांग्रेस को कितनी चुनौती मिलेगी?
जवाब: 25 साल पहले भी दोनों दलों में गठबंधन हुआ था और अब फिर पहले की तरह ही कुछ माह रिश्ता चलेगा। दोनों का अस्तित्व दांव पर लगा है। अकाली दल के प्रति पंजाब के लोगों में अभी भी घृणा है। दोनों दलों के न विचार मिलते हैं और न ही सोच। केवल अवसरवादी गठजोड़ है, जिससे कांग्रेस को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। देखना, अकाली दल भाजपा की तरह ही बसपा को भी यूज करके फैंक देगा।
सवाल: भाजपा राष्ट्रीय दल होने के बावजूद किसान आंदोलन के कारण पंजाब की राजनीति में हाशिए पर चली गई है। इस बारे क्या कहेंगे?
जवाब: इसमें दो राय नहीं कि भाजपा एक बड़ा दल है, मगर अपने अहंकार के कारण वह पंजाब में वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही है। मगर मुझे डर है कि सत्ता लोलुपता के चक्कर में वह धर्म व जाति के नाम पर लोगों को बांटकर पंजाब की अमन-शांति व भाईचारे को चोट न पहुंचा दे। आम आदमी पार्टी भी आदर्शवाद की विचारधारा का नारा देने के बाद अब धर्म की राजनीति पर उतर आई है। केजरीवाल पंजाब आकर किसी सिख को मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते हैं, मगर कांग्रेस ने तो प्रताप सिंह कैरों से लेकर ज्ञानी जैल सिंह, बेअंत सिंह व कैप्टन अमरेंद्र सिंह जैसे सिख मुख्यमंत्री बनाने के साथ-साथ देश को सिख प्रधानमंत्री तक दिए हैं।
सवाल: सिद्धू वरिष्ठ नेता हैं, मगर क्या उनकी टाइमिंग सही थी जो चुनाव से पहले अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर पार्टी की भी किरकिरी करा दी?
जवाबः राजनीतिक दल या संगठन में जितना बड़ा कद होता है, उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी भी होती है। सिद्धू को यह प्रीविलेज प्राप्त है कि वह हाईकमान से सीधे संपर्क कर सकते हैं। ऐसे में अपनी बात या नाराजगी यदि हाईकमान के समक्ष रखते तो उनकी बात का ज्यादा वजन होता। जिस लहजे से सिद्धू बात कहते हैं तो उनके अंदाज में इतना ही कहूंगा कि ‘दुश्मनी जम के करो पर इतनी गुंजाइश रहे, कल जब दोस्त बन जाएं तो शर्मिंदा न हों।’
सवाल: सिद्धू जिस बेअदबी-गोलीकांड मुद्दे को उठा कर कैप्टन सरकार पर हमलावर हुए हैं, उसमें हाइकोर्ट भी कह चुका है कि बादल परिवार को फंसाने की कोशिश की गई है।
जवाबः बेअदबी मामला पूरे पंजाब के लिए ङ्क्षचता का विषय है। यह बेहद भावनात्मक मुद्दा है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए। हाईकोर्ट का फैसला भी समय रहते आया है जिसमें जांच की कई खामियां भी सामने आई हैं। सरकार को नई एस.आई.टी. के जरिए सबूत जुटाकर कानून के दम पर अपील करने का समय मिल गया है। मेरा मानना है कि जांच में निष्पक्षता और पारदर्शिता नजर आनी चाहिए। न्याय मिलना तो चाहिए ही, साथ में वह दिखना भी चाहिए। अभी भी समय है कि अदालत के सामने सबूत रखकर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए, तभी पंजाब के जख्मों पर मरहम लगेगा।
सवाल: इस मसले से जुड़ी एस.आई.टी. के प्रमुख कुंवर विजय प्रताप आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं, इस बारे क्या कहेंगे?
जवाबः सभी का मौलिक अधिकार है कि अपनी पसंद के किस राजनीतिक दल से जुडऩा चाहता है। पूर्व में भी कैग के प्रमुख विनोद राय ने ईमानदार छवि वाले प्रधानमंत्री पर ऐसे घृणित आरोप लगाए, मगर बाद में अदालत में कुछ साबित नहीं हुआ लेकिन कैग प्रमुख टैलीफोन रैगुलेटरी अथॉरिटी के प्रमुख बन गए। एक सेना प्रमुख रिटायरमैंट के बाद केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाए गए। ऐसे में यह चिंता का विषय है यदि जो अधिकारी किसी दल में जाता है उसका सरकारी सेवा में रहते अमुक दल की ओर पहले से झुकाव था।
कुंवर विजय प्रताप की ईमानदार छवि है व अच्छे व्यक्ति राजनीति में आने चाहिएं। उनसे उम्मीद करता हूं कि वह छवि पर खरा उतरेंगे। बेहतर होता कि एस.आई.टी. प्रमुख रहते जांच को सिरे लगाकर रिटायरमंैट लेते। ऐसा करते तो किसी राजनीतिक बैसाखी की जरूरत न पड़ती।