Edited By swetha,Updated: 23 Feb, 2019 11:59 AM
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के दौरान शहादत का जाम पीने वाले 29 वर्षीय मनिन्द्र सिंह अत्तरी अपने पारिवारिक आंगन का ऐसा सुगंधित गुलाब था जो अपनी योग्यता और प्यार की सुगंध बिखेरने से पहले ही मुरझा गया।
गुरदासपुर(हरमनप्रीत): पुलवामा में हुए आतंकी हमले के दौरान शहादत का जाम पीने वाले 29 वर्षीय मनिन्द्र सिंह अत्तरी अपने पारिवारिक आंगन का ऐसा सुगंधित गुलाब था जो अपनी योग्यता और प्यार की सुगंध बिखेरने से पहले ही मुरझा गया। मनिन्द्र सिंह बचपन से ही एक बढिया आर्टिस्ट शिक्षा में अग्रणी रहने के साथ-साथ 2 खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले एक होनहार खिलाड़ी भी थे।
6वीं कक्षा में ही बना दी थी गुरु गोबिंद सिंह जी की तस्वीर
मनिन्द्र सिंह को पेंटिंग और ड्राइंग का भी काफी शौक था। उन्होंने 6वीं कक्षा में ही गुरु गोबिंद सिंह जी की तस्वीर बना दी थी। अब भी वह कभी-कभी खाली समय में तस्वीर या चेहरे की ओर देख कर तस्वीरें बनाते रहते थे।
29 वर्ष में ही शहादत का जाम पी गए पिता का लाडला बेटा
मनिन्द्र सिंह 2 मार्च 2017 को सी.आर.पी.एफ. में बतौर सिपाही भर्ती हुए। उन्होंने भर्ती होने के बाद ही अपने पिता को इस नौकरी के बारे में बताया था। वे नौकरी में आने के बाद भी अपनी उन्नति और बड़ा अधिकारी बनने की चाहत पूरी करने के लिए प्रयत्नशील थे। बड़ा अधिकारी बनने की इच्छा के कारण ही उन्होंने 29 वर्ष की आयु होने के बावजूद शादी नहीं की। माता की मृत्यु के उपरांत मनिन्द्र सिंह का अपने पिता के साथ बहुत गहरा प्यार था और वह अपनी 3 बहनों और एक छोटे भाई में से अपने पिता के लिए सबसे लाडला बेटा था।
बचपन से ही अच्छा प्रदर्शन करते रहे मनिन्द्र
मनिन्द्र सिंह आर्य नगर दीनानगर का निवासी थे। उनका जन्म 21 जून 1988 को पंजाब रोडवेज के ट्रैफिक मैनेजर सतपाल अत्तरी के घर हुआ। नर्सरी से 5वीं तक की शिक्षा स्वामी विवेकानंद स्कूल दीनानगर से करने के बाद उन्होंने 6वीं से 12वीं तक की शिक्षा नवोदय स्कूल नाजोचक्क से की और 11वीं तथा 12वीं कक्षा में नान मैडीकल विषय पढ़ने उपरांत उसने अमृतसर से आई.टी. में बी.टैक की। इस उपरांत गुडगांव में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने के साथ-साथ उन्होंने एम.बी.ए. की शिक्षा भी शुरू कर ली। 2009 में माता जी की मौत होने के उपरांत उन्हें काफी सदमा पहुंचा, मगर बाद में उन्होंने जल्द अपने आपको संभाला और फिर एक बड़ा अधिकारी बनने के उद्देश्य से कड़ी मेहनत करनी शुरू कर दी। मनिन्द्र ने यू.पी.एस.ई. और बैंकिंग समेत अनेक क्षेत्रों में कई प्रवेश और मुकाबला परीक्षाएं दीं, जिनकी तैयारी के लिए उन्होंने भर्ती होने से पहले करीब 6 माह घर पर रहकर ही तैयारी की।
बास्केटबाल और कबड्डी का खिलाड़ी थे मनिन्द्र
मनिन्द्र ने स्कूल में 8वीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान बास्केटबाल और कबड्डी खेलना शुरू कर दिया। ग्रामीण मेलों समेत कई जगहों पर कबड्डी के जौहर दिखाने के अलावा वह राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबाल भी खेल चुके थे। विशेषकर सी.आर.पी.एफ. में भर्ती होने के बाद वह सी.आर.पी.एफ. की तरफ से भी केरल में खेलकर आए थे, जहां उनकी टीम की जीत में उनका बड़ा योगदान रहा। वह जब भी अपने घर छुट्टी पर आते थे तो करीब 25 से 30 बच्चों के ग्रुप को बास्केटबाल की कोचिंग देते थे।
घर की मुरम्मत करवाई, मगर नसीब नहीं हुआ रहना
मनिन्द्र सिंह के भाई लखबीर सिंह ने बताया कि मनिन्द्र हमेशा दूसरों की सहायता करके प्रसन्न होते थे। वह इतना मेहनती थे कि घर के छोटे-मोटे सभी काम वह स्वयं ही करते थे, यहां तक कि घर में बिजली से संबंधित कार्यों के लिए कभी किसी इलैक्ट्रीशियन को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी थी। अब भी उन्होंने मकान की मुरम्मत करवाने के लिए 20 दिन की छुट्टी ली थी। छुट्टी पूरी होने उपरांत वह जम्मू हैडक्वार्टर पर गए तो मौसम खराब होने के कारण वह श्रीनगर नहीं जा सके जिस कारण मकान का बचा काम पूरा करवाने के लिए मनिन्द्र ने 10 दिनों की और छुट्टी ले ली, मगर छुट्टी काट कर जब वह 13 फरवरी की शाम को घर से रवाना हुए तो जम्मू पहुंच कर उन्होंने अंतिम बार अपने पिता को फोन किया कि वह सुबह श्रीनगर के लिए रवाना होंगे, मगर वह ऐसी जगह को रवाना हो गए जहां से कभी किसी का फोन नहीं आता है।