जब झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे बोले, पढ़ने को तो हमारा भी दिल करता है

Edited By Vaneet,Updated: 07 Jan, 2019 11:58 AM

people living in slums are deprived of government schemes

भले ही केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले जरूरतमंदों की भलाई के लिए कई स्कीमें चलाई गई हैं, परंतु संबंधित विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों...

सुल्तानपुर लोधी(धीर): भले ही केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले जरूरतमंदों की भलाई के लिए कई स्कीमें चलाई गई हैं, परंतु संबंधित विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण यह भलाई स्कीमें बीच में ही लटकती रह जाती हैं। इन स्कीमों का जरूरतमंदों को पूरा लाभ नहीं मिलता। यदि बात करें शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने की, तो भले ही कई स्कीमों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं और सरकार की पूरी कोशिश है कि देश का कोई बच्चा, नौजवान व बूढ़ा अनपढ़ न रहे, इसलिए कई भलाई स्कीमों को चलाकर जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क किताबें, वॢदयां, वजीफा आदि दिए जा रहे हैं। 

वहीं समय की सरकारों द्वारा हर एक बच्चे को विद्या देने के लिए चलाई गई स्कीमों के दावे उस समय खोखले नजर आते हैं, जब गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी व्यतीत कर रहे झुग्गी-झोंपडिय़ों वालों को इन भलाई स्कीमों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती और उनके बच्चों का एक ही उद्देश्य है कि सुबह के समय उठकर रुडिय़ों में से लिफाफे, कांच व लोहा तलाशना, किसी धार्मिक जगह पर लंगर में से घर के लिए और अपने के लिए दो वक्त की रोटी का प्रबंध करना और इस उपरांत अपना तथा अपने परिवार के अन्य मैंबरों का पेट भरना। गरीबी के दौर में से गुजर रहे इन परिवारों के बच्चों के पैरों में चप्पलें आदि भी नहीं होतीं और भले ही सर्दी का मौसम ही हो, तो भी शरीर पर फटे-पुराने कपड़े पहनकर जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। 

होटलों, ढाबों में जूठे बर्तन साफ करने के लिए मजबूर बच्चें
अब यदि हम दूसरी ओर बात करें तो भले सरकार की ओर से बाल मजदूरी रोकने के लिए बहुत कड़े कानून बनाए गए हैं, परंतु अभी भी कई जगहों पर होटलों, ढाबों, रैस्टोरैंटों में बड़ी संख्या में करीब 10 से 13 वर्ष के बच्चे अपने पेट भरने की खातिर जूठे बर्तन साफ करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। समय की सरकारों की ओर से भले ही बे-जमीनों को 5-5 मरलों के प्लाट देने की स्कीम शुरू की हुई है और बेघर लोगों को मकान बना कर देने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु काफी समय बीत जाने के बाद भी ये झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले लोग इन भलाई स्कीमों से वंचित हैं। भले ही सरकार की ओर से सर्व शिक्षा अभियान के तहत अनपढ़ बच्चों को पढ़ाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु इन झुग्गी-झोंपड़ी वाले बच्चों को पढ़ाने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 

पढऩे को तो हमारा भी दिल करता है
जब इस संबंधी झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले इन बच्चों के अभिभावकों के विचार जानने चाहे, तो उन्होंने बताया कि हमें सरकार की ओर से चलाई गई भलाई स्कीमों का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी व्यतीत करने के बावजूद हमारी आॢथक तौर पर कोई सहायता नहीं की जा रही। रुडिय़ों में से लिफाफे, कांच उठाने वालों व लंगरों में से रोटी का जुगाड़ करने वाले बच्चों से पूछा तो उन्होंने कहा कि पढऩे को तो हमारा भी दिल करता है, परंतु यदि हम पढऩा शुरू कर देते हैं, तो हमारे घर का गुजारा कैसे चलेगा।  

सरकार भलाई स्कीमों को जरूरतमंदों तक पहुंचाना यकीनी बनाए : राणा 
समाज सेवक व बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट रजिन्द्र सिंह राणा ने कहा कि पहले तो सरकार को गरीब और जरूरतमंदों के लिए बनाई स्कीमों को उन तक पहुंचाना यकीनी बनाना चाहिए और दूसरा बाल मजदूरी पर बनाए हुए कानून को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। समय-समय पर होटलों, ढाबों, रैस्टोरैंटों व अन्य ऐसी दुकानों पर छापेमारी करके आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ बनती कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति बाल मजदूरी करने से गुरेज करे। 


 

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