Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Mar, 2018 09:31 AM
एकतरफ जहां शहीदों की धरती जलियांवाला बाग में शहीद ऊधम सिंह का बुत जनता को समर्पित करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह व अन्य बड़े नेता उपस्थित हुए, वहीं दूसरी तरफ शहीद ऊधम सिंह की कर्म स्थली स्थानीय पुतली घर स्थित सैंट्रल यतीम खाने के...
अमृतसर (नीरज): एकतरफ जहां शहीदों की धरती जलियांवाला बाग में शहीद ऊधम सिंह का बुत जनता को समर्पित करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह व अन्य बड़े नेता उपस्थित हुए, वहीं दूसरी तरफ शहीद ऊधम सिंह की कर्म स्थली स्थानीय पुतली घर स्थित सैंट्रल यतीम खाने के प्रबंधकों को उक्त समागम में शामिल होने के लिए न्यौता तक देना प्रशासन भूल गया।
यह वही सैंट्रल यतीम खाना है, जहां शहीद ऊधम सिंह ने अपनी जिन्दगी के कई वर्ष बिताए थे और इसी यतीम खाने में शिक्षा हासिल की थी। इसी यतीम खाने ने शहीद ऊधम सिंह को उस समय आश्रय दिया था, जब वह यतीम हो गया था, इसी यतीम खाने ने ऊधम सिंह को मां बाप का प्यार दिया और इसी यतीम खाने से शिक्षा लेकर ऊधम सिंह में देशभक्ति का ऐसा जज्बा भरा कि उसने अंग्रेज सरकार को हिला दिया था, लेकिन विडंबना है शहीद ऊधम सिंह की यादों को संजोऐ रखने वाले उक्त सैन्ट्रल यतीम खाने में किसी भी नेता ने आने का कष्ट नहीं किया और न ही इसके प्रबंधकों को शहीद ऊधम सिंह के समागम में भाग लेने का न्यौता दिया।
1907 में सैन्ट्रल यतीम खाने ने ही शेर सिंह को दिया था ऊधम सिंह का नाम
सैन्ट्रल यतीम खाने के इतिहास की बात करें तो पता चलता है कि 26 दिसम्बर, 1899 को पटियाला के सुनाम में एक साधारण परिवार में जन्में शेर सिंह के माता पिता का देहांत होने के बाद 24 अक्तूबर 1907 को सैन्ट्रल यतीम खाने में भर्ती करवा दिया गया और इस यतीम खाने में शेर सिंह को ऊधम सिंह का नाम दिया। इसी यतीम खाने में शिक्षक ज्ञानी जी ने उनको पाला पोसा और शिक्षा दी। ऊधम सिंह आमतौर पर स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे और उनके मन में भारत को आजाद करवाने की जवाला भड़कती रही।