कैंसर के बाद डिप्रैशन की चपेट में आया मालवा

Edited By Anjna,Updated: 09 Apr, 2018 07:43 AM

malwa after getting cancer affected by depression

मालवा एरिया कैंसर बैल्ट के नाम से जाना जाता है क्योंकि पूरे देश में इस एरिया में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज है। कैंसर के मरीजों कीसंख्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बङ्क्षठडा से चलने वाली एक ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से जाना जाने लगा है...

बठिंडा (आजाद): मालवा एरिया कैंसर बैल्ट के नाम से जाना जाता है क्योंकि पूरे देश में इस एरिया में सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज है। कैंसर के मरीजों कीसंख्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बङ्क्षठडा से चलने वाली एक ट्रेन को कैंसर ट्रेन के नाम से जाना जाने लगा है क्योंकि इस ट्रेन में कैंसर के मरीज ही ज्यादा सफर करते हैं। मालवा में कुछ महीनों से डिप्रैशन की चपेट में आकर आत्महत्या करने का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। इससे लगता है कि यह एरिया एक बार फिर कैंसर के बाद डिप्रैशन की चपेट में आ चुका है। इस बात की पुष्टि इस से भी होती है कि पिछले 3 महीने में 50 से भी ज्यादा लोग आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें जेल में बंद 2 कैदी भी शामिल हैं जिन्होंने आत्महत्या कर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। कैदियों के मरने के पीछे का कारण सजा सुनकर दिमागी तौर पर परेशान हो गए थे। उन्हें लगा कि पूरी जिंदगी जेल में ही गुजारनी पड़ेगी।

आंकड़ों को गौर से देखा जाए तो आत्महत्या करने वाले ज्यादातर युवा हैं जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा डिप्रैशन को गंभीरता से ना लेने के कारण आत्महत्याओं का दौर बदस्तूर जारी है। वहीं युवाओं का आत्महत्या करना कई सवालों को जन्म देता है कि आखिर ये युवा जिनके पास अपार शक्ति है, वे एजुकेटेड भी हैं, ऐसे में आत्महत्या करने का रास्ता आखिर क्यों चुनने पर मजबूर हो जाते हैं। इस उम्र में युवाओं द्वारा आत्महत्या का रास्ता चुनना समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को भी कटघरे में खड़ा करता है कि समाज के ताने-बाने को बुनते वक्त कहीं कोई चूक तो नहीं हो रही है। डिप्रैशन में आकर आत्महत्या करना सिर्फ मालवा तक ही सीमित नहीं है बल्कि साऊथ के एक टी.वी. एंकर ने भी हाल में अपने फ्लैट से कूद कर आत्महत्या कर ली।

5 करोड़ भारतीय डिप्रैशन के शिकार  
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 4.4 प्रतिशत आबादी तनाव का शिकार है। भारत में डिप्रैशन के शिकार लोगों की संख्या 5 करोड़ तक पहुंच चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक 36 प्रतिशत भारतीय कभी न कभी डिप्रैशन के शिकार हुए हैं। आज लोगों की इच्छाएं आसमान छूने लगी हैं। कमाई से ज्यादा खर्च करने लगे हैं। जब कमाई से इच्छाएं पूरी वहीं होतीं तो लोग कर्ज लेकर उनको पूरा करने की कोशिश करते हैं। महंगे कपड़े, गाडिय़ों और खाने-पीने का शौक पूरा करते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि कर्ज को वापस भी लौटाना पड़ता है। समय पर कर्ज चुका नहीं पाते हैं तो मानसिक दबाव में आ जाते हैं। मानसिक दबाव में गहरी नींद भी नहीं ले पाने से धीरे-धीरे डिप्रैशन का शिकार होते चले जाते हैं व अंत में आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। 

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