Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jan, 2018 10:38 AM
सुरेश कुमार प्रकरण के पीछे कई लॉबियां काम कर रही थीं। शक की सुई कुछ अफसरों और नेताओं पर तो जाती ही है,
जालंधर (राकेश बहल, सोमनाथ कैंथ): सुरेश कुमार प्रकरण के पीछे कई लॉबियां काम कर रही थीं। शक की सुई कुछ अफसरों और नेताओं पर तो जाती ही है, साथ में एक माफिया ने भी इस प्रकरण में बड़ा काम किया है। वहीं पिछले साल ट्रक यूनियनें खत्म किए जाने के बाद कुछ यूनियन नेता भी सुरेश कुमार के खिलाफ थे। पिछले साल पंजाब सरकार ने कैबिनेट की बैठक में पंजाब गुड्स कैरियर्ज एंड प्रिवैंशन ऑफ कार्टलाइजेशन रूल्स 2017 को मंजूरी दी थी। इस मंजूरी से राज्यभर में ढुलाई के काम में लगे लोगों की यूनियनें और गुट बनाने पर पाबंदी लग गई थी। इसका नोटीफिकेशन पिछले साल नवम्बर महीने के अंतिम सप्ताह जारी हुआ है। सरकार का उद्देश्य ढुलाई के काम में लगे ट्रांसपोर्टरों में से यूनियनों का डर खत्म करना था। ट्रांसपोर्टरों के 93 हजार ट्रक इन यूनियनों के अंडर चलते थे। यूनियनें ट्रांसपोर्टरों को अपनी मर्जी मुताबिक रेट देती थीं। यूनियनों ने एरिया के हिसाब से रेट फिक्स कर रखे थे जिस मुताबिक वे आगे ट्रक ऑप्रेटरों को रेट देती थीं और खुद मोटी कमाई करती थीं।
नैक्सस तोड़ डाला
सुरेश कुमार ने सरकार में रहते हुए पिछले 10 महीनों में कई नैक्सस तोडऩे की भी कोशिश की। ट्रांसपोर्ट विभाग में एक बड़ा नैक्सस चल रहा था, जिसने बड़े स्तर पर बिजनैस पर कब्जा कर रखा था, जिसे सुरेश कुमार ने तोड़ डाला। वहीं पुलिस विभाग में भी तबादलों को लेकर राजनीतिक दबाव के आगे झुकने से उन्होंने इन्कार कर दिया था। ऐसी चर्चा है कि सरकार को आॢथक नुक्सान पहुंचाने वाला एक कथित माफिया सुरेश कुमार से नाराज था।
कांग्रेस के एक विधायक का नाम भी आ रहा सामने
कांग्रेस का एक विधायक भी सुरेश कुमार का दुश्मन बना हुआ था। मालवा से संबंधित यह विधायक सी.एम. का खास माना जाता है लेकिन सुरेश कुमार के कारण इसकी चल नहीं रही थी। इस कारण यह विधायक काफी समय से नाराज चल रहा था। ऐसी चर्चा है कि इस विधायक ने सुरेश कुमार के खिलाफ फैसला आने के बाद एक अफसर को फोन कर कहा था कि ‘साडा राज’ आ गया है।
यूनियनें खत्म होने से सरकार को करोड़ों की कमार्ई
यूनियनें खत्म किए जाने के फैसले के पीछे सुरेश कुमार का बड़ा हाथ माना जा रहा है क्योंकि सरकार के पास फंड की कमी थी और इस कमी से सरकार को उभारने में सुरेश कुमार बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे थे। पहले जिस माल की ढुलाई के लिए सरकार को 40 रुपए तक देने पड़ते थे यूनियनों के खत्म हो जाने से सरकार को 20 रुपए देने पड़ते हैं। 20 रुपए यूनियनों में ही बंट जाते थे। रबी और खरीफ के सीजन में मंडियों से धान और गेहूं की ढुलाई के लिए सरकार को ट्रकों की जरूरत पड़ती थी तथा इसके लिए यूनियनों से ट्रक लिए जाते थे। अब सरकार यूनियनों की बजाय सीधे ट्रक ऑप्रेटरों से बात करती है। इससे सरकार को करोड़ों रुपए की बचत हुई है। ऐसी चर्चा है कि इस फैसले को नहीं करने के लिए सुरेश कुमार पर काफी दबाव था। कुछ लोग चाहते थे कि यह फैसला टाल दिया जाए। दबाव डालने वालों में यूनियन के साथ-साथ कुछ अफसर और नेता भी शामिल थे तथा इस फैसले का बड़े स्तर पर विरोध भी हुआ।
2 अफसरों के खिलाफ हो सकती कार्रवाई
इस प्रकरण में 2 अफसरों के नाम सामने आ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि इन अफसरों के खिलाफ जल्द सरकारी कार्रवाई हो सकती है। चर्चा है कि ऐसा मुख्यमंत्री ने मंत्रियों और विधायकों के साथ हुई मीटिंग में संकेत दिया है। ये दोनों अधिकारी सरकार के सत्ता में आने के बाद खुड्डे लाइन लगे हुए थे।
वापसी तय, किस पद पर आएंगे फैसला बाकी!
मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह की तरफ से सुरेश कुमार को वापस लाए जाने पर विचार किया जा रहा है। सुरेश कुमार 1983 बैच के सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अफसर हैं। सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें चीफ पिं्रसीपल सैक्रेटरी के तौर पर नियुक्त किया गया। अब वह किस पद पर वापस आते हैं इसका फैसला किया जाना बाकी है। सुरेश कुमार इन दिनों निजी दौरे पर जापान गए हुए हैं और कल वीरवार को उनके चंडीगढ़ आने की संभावना है।
सरकार को संकट से निकालने में सक्षम
सूत्रों के मुताबिक कै. अमरेन्द्र सिंह द्वारा इस मामले में वरिष्ठ मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों से बातचीत की गई है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस बात को स्वीकार किया है कि सुरेश कुमार सरकार को किसी भी तरह से प्रशासकीय संकट से निकालने में सक्षम हैं। साथ ही राजनीतिज्ञों को भी प्रभावित और हैंडल करने में सक्षम हैं। सुरेश कुमार मार्च, 2017 में चीफ प्रिंसीपल सैक्रेटरी के तौर पर तैनात हुए थे और पिछले सप्ताह पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने उन्हें पद से हटाने के निर्देश दिए थे।
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने कहा है कि साल 2007 में कांग्रेस के 5 साल के कार्यकाल के बाद जब अकाली-भाजपा सरकार बनी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मुख्यमंत्री कार्यालय की सभी फाइलों की जांच करवाई लेकिन सुरेश कुमार की प्रशासकीय कुशलता के कारण विजीलैंस और दूसरी एजैंसियां इन फाइलों में से कुछ भी नहीं निकाल सकी थीं जिसके आधार पर कै. अमरेन्द्र सिंह को फंसाया जा सके। मंत्रियों और विधायकों ने कै. अमरेन्द्र सिंह के साथ की गई मीटिंगों में स्पष्ट किया कि सुरेश की मुख्यमंत्री कार्यालय में अनुपस्थिति से आने वाले दिनों में प्रशासकीय हालात खराब हो सकते हैं।