Edited By Updated: 13 Jan, 2017 03:58 PM
सांझी संस्कृति का पर्व माने जाते लोहड़ी के त्यौहार को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। शहर के विभिन्न बाजारों में लोहड़ी को लेकर गच्चक, रेवड़ी,
जलालाबाद (गुलशन): सांझी संस्कृति का पर्व माने जाते लोहड़ी के त्यौहार को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। शहर के विभिन्न बाजारों में लोहड़ी को लेकर गच्चक, रेवड़ी, मूंगफली और मकई के दानों की बिक्री शुरू हो गई है। लोगों में खरीदारी को लेकर भी उत्साह नजर आने लगा है। लोहड़ी का त्यौहार हमारी वंश वृद्धि का प्रतीक है। जब किसी के घर में बच्चा पैदा होता है या फिर किसी घर में नई दुल्हन आती है तो उस घर में आग जलाकर तिल, रेवडिय़ों की आहुति के साथ ही अग्नि के चक्कर लगाते हैं तथा नृत्य, गीत, भंगड़ा आदि के अलावा पंजाबी गीत शगुन के तौर पर गाए जाते हैं।
क्यों मनाते हैं लोहड़ी
लोहड़ी पौष मास की समाप्ति-शरद ऋतु के अंत पर माघमास के आरंभ व बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाने वाला पर्व है। एक दंत कथा के अनुसार जब राजा दक्ष ने सती के पति महादेव को यज्ञ में स्थान नहीं दिया और स्वयं को अपमानित अनुभव करने पर यज्ञ अग्नि में कूदकर आत्महत्या कर लेने पर शिव जी ने क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति का सिर काटकर अग्नि को भेंट कर दिया। देवों के विनय करने पर भगवान शिव ने दक्ष को नया जीवन दिया और इसी यज्ञ में पूर्णाहुति डाली गई। लोहड़ी सूर्य नारायण की पूजा का भाग है। कार्तिक मास में सूर्य देव पृथ्वी से काफी दूर चले जाते हैं तभी सूर्य की किरणों में विशेष गर्मी नहीं होती। आदिवासी इस प्रक्रिया को सूर्य का ताप कम होने से जोड़ते हैं तथा सूर्य के प्रकाश तथा ताप को पुन:सजीव करने के लिए लोहड़ी की आग जलाई जाती थी। मध्य काल में सांदल नगर के भट्टी राजपूतों का बागी नौजवान दुल्ला था जिसने अकबर की सेनाओं के संघर्ष का डटकर मुकाबला किया था। दुल्ला भट्टी अमीरों का दुश्मन और गरीबों का हमदर्द था। जब एक गरीब की 2 बेटियां सुंदरी व मुंदरी पर नगर के हाकिम ने बुरी नजर डाली तो पिता की फरियाद पर दुल्ला भट्टी ने जंगल में आग जलाकर उनकी शादी सम्पन्न की थी। तभी तो इस घटना को गाकर याद करते हुए कहते हैं : सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी वियाई हो, सेर शक्कर पाई हो।