खडूर साहिब सीट:42 साल बाद अकाली दल नाजुक स्थिति में

Edited By Naresh Kumar,Updated: 24 Feb, 2019 09:31 AM

khador sahib seat

माझा, मालवा और दोआबा के 9 विधानसभा हलकों को मिलाकर बनी इस सीट पर 1977 के बाद अकाली दल का ही कब्जा रहा है।

जालंधर(नरेश): माझा, मालवा और दोआबा के 9 विधानसभा हलकों को मिलाकर बनी इस सीट पर 1977 के बाद अकाली दल का ही कब्जा रहा है। कांग्रेस यहां आखिरी चुनाव 1971 में जीती थी। जब पार्टी के नेता गुरदियाल सिंह ढिल्लों सांसद बने थे। उसके बाद कांग्रेस यह सीट 1992 में उस समय जीती जब अकाली दल ने चुनाव का बहिष्कार किया हुआ था।

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अकाली दल के पास पंथक सीट को बचाने की चुनौती 

सीधे मुकाबले में कांग्रेस पिछले 42 साल से इस सीट पर जीत नहीं पाई है लेकिन अकाली दल में पड़ी फूट के बाद बनाए गए अकाली दल टकसाली के नेताओं और पार्टी के मौजूदा सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा की बगावत के चलते अकाली दल पहली बार 42 साल बाद इस सीट पर नाजुक स्थिति में है और पार्टी के सामने इस पंथक सीट को बचाने की चुनौती है। पंजाब में सरकार चाहे अकाली दल की रही हो या कांग्रेस की, अकाली दल ही इस सीट पर जीतता आया है लेकिन ऐसी स्थिति कभी नहीं बनी जब पार्टी का ही सांसद पंथक मुद्दे पर पार्टी से अलग हो गया हो। लिहाजा अकाली दल के लिए अपने इस गढ़ को कायम रखना मुश्किल भरा हो सकता है।

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बीबी जागीर कौर हो सकती हैं उम्मीदवार

पार्टी के मौजूदा सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा द्वारा बगावत करके बनाए गए अकाली दल टकसाली के बाद अकाली दल के सामने सबसे पहली चुनौती इस सीट पर ऐसे चेहरे को मैदान में उतारने की है जिसका पंथक हलकों में प्रभाव हो।  माना जा रहा है कि अकाली दल एस.जी.पी.सी. की पूर्व अध्यक्षा बीबी जागीर कौर को इस सीट से मैदान में उतार सकता है। इससे पहले इस सीट के लिए खेमकरण विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रहे विरसा सिंह वल्टोहा के नाम की चर्चा थी लेकिन उनके खिलाफ हत्या का एक पुराना मामला खुल जाने की खबरों के बाद अकाली दल ने बीबी जागीर कौर को विकल्प के रूप में सामने करने की रणनीति तैयार की है। बीबी जागीर कौर के लिए चुनावी राजनीति नई चीज नहीं है। वह भुलत्थ से लगातार चुनाव जीतने के बाद पिछली अकाली-भाजपा सरकार में मंत्री भी बनाई गई थीं लेकिन अपनी बेटी की कथित हत्या के मामले में सजा होने के बाद उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ा था और वह पिछला विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ पाईं लेकिन इस मामले में अदालत से राहत मिलने के बाद अब उनके चुनाव लडने की लगी रोक हट गई है। अदालत से पाक-साफ निकलने के बाद पार्टी के अंदर उनकी छवि मजबूत हुई है। लिहाजा पार्टी में उन्हें मैदान में उतारने पर विचार चल रहा है। 

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विधानसभा चुनाव में अकाली दल को झटका
2017 का विधानसभा चुनाव अकाली दल के लिए इस पंथक हलके में सबसे बुरी खबर लेकर आया था। पार्टी जहां विधानसभा में 15 सीटों पर सिमटी वहीं अकाली दल ने पहली बार इस हलके के तहत आती अपने प्रभाव वाली खेमकरण पट्टी, तरनतारन और खडूर साहिब की सीटें भी गंवा दीं। अकाली दल की हार का एक कारण इन सीटों पर आम आदमी पार्टी द्वारा हासिल किए गए वोट भी रहे। आम आदमी पार्टी को पंथक हलकों में मिले वोट के चलते ही अकाली दल को नुक्सान हुआ और पंथक के उम्मीदवार जीत गए। आम आदमी पार्टी को इस सीट पर 2014 में 144521 वोट मिले थे जबकि 2017 में उसके वोट बढ़ कर 225868 हो गए जबकि दूसरी तरफ अकाली दल को 2014 में 467332 वोट हासिल हुए थे जोकि 2017 में कम होकर 393193 वोट रह गए। इस बीच कांग्रेस को इस सीट पर फायदा हुआ और पार्टी के वोट 2014 की 366763 के मुकाबले 2017 में बढ़ कर 538101 हो गए। 

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रविन्द्र सिंह ब्रह्मपुरा भी उतर सकते हैं मैदान में
अकाली दल टकसाली का गठन करने वाले रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा उम्र के लिहाज से काफी बुजुर्ग हो गए हैं। लिहाजा उनकी जगह उनके बेटे रविन्द्र सिंह ब्रह्मपुरा का नाम चर्चा में है। रविन्द्र सिंह 2016 के उपचुनाव में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। यह चुनाव उन्होंने अकाली दल की टिकट पर लड़ा था लेकिन 2017 के चुनाव में वह हार गए। उन्हें अपने पिता के साथ ही पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बाहर का रास्ता दिखाया गया था। 

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कांग्रेस के कई दावेदार
कांग्रेस की तरफ से इस सीट के लिए कई दावेदार मैदान में हैं। 2002 में ब्यास से विधायक रहे जसबीर सिंह डिम्पा ने भी इस इलाके में सक्रियता बढ़ाई है। उनके अलावा कुलबीर जीरा और पूर्व मंत्री इंद्रजीत सिंह जीरा भी कांग्रेस के दावेदारों में हैं। इन तीनों के अलावा एस.जी.पी.सी. के सदस्य रहे जत्थेदार जैमल सिंह ने भी इस हलके से टिकट के लिए दावेदारी की है। उनके बेटे गुरप्रीत सिंह भी इस सीट से दावेदारों की लिस्ट में शामिल हैं। हालांकि पार्टी ने इस सीट पर कोई नाम तय नहीं किया है लेकिन माना जा रहा है कि हलके के वोटरों के स्वभाव को देखते हुए पंथक दिखने वाला साफ छवि का कोई नेता ही टिकट के मामले में बाजी मारेगा।

संसद में ब्रह्मपुरा
हाजिरी-63
सवाल पूछे-30
बहस में हिस्सा-6
प्राइवेट मैंबर बिल-0

*2004 तक इस सीट का नाम तरनतारन था
*2008 की डिलिमिटेशन के बाद नाम बदल कर खडूर साहिब हुआ

 खडूर साहिब लोकसभा सीट का इतिहास

साल    विजेता  पार्टी
1952  सुरजीत सिंह   कांग्रेस
1957 सुरजीत सिंह   कांग्रेस
1962  सुरजीत सिंह   कांग्रेस
1967 गुरदियाल सिंह  कांग्रेस
1971 गुरदियाल सिंह कांग्रेस
1977 मोहन सिंह  अकाली दल
1980 लैहणा सिंह  अकाली दल
1985  त्रिलोचन सिंह अकाली दल
1989 सिमरनजीत सिंह  शिअद (मान)
1992   सुरिन्द्र सिंह कैरों   कांग्रेस
1996 मेजर सिंह   अकाली दल
1998  प्रेम सिंह लालपुरा  अकाली दल
1999 त्रिलोचन सिंह अकाली दल
2004 रतन सिंह अजनाला  अकाली दल
2009 रतन सिंह अजनाला  अकाली दल
2014  रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा   अकाली दल


  
  
   
     
   

      
  

  
   
  
     
       
 

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