कामराज प्लान बचाएगा डूबती लुटिया! कांग्रेस ने 56 वर्ष पहले के मुश्किल दौर में इसे बनाया था राजनीतिक

Edited By Vaneet,Updated: 26 Jul, 2019 12:42 PM

kamraj plan in congress

देश की सवा सौ साल पुरानी पार्टी कांग्रेस, आज अपने राजनीतिक दौर की बड़ी उथल-पुथल से गुजर रही है। ...

जालंधर(चोपड़ा): देश की सवा सौ साल पुरानी पार्टी कांग्रेस, आज अपने राजनीतिक दौर की बड़ी उथल-पुथल से गुजर रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद यह दूसरा मौका है जब कांग्रेस के लोकसभा में इतने सांसद भी नहीं कि वह नेता विपक्ष के पद पर दावा कर सके। एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है वहीं इसके 2 महीने बाद भी कांग्रेस अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई है, परंतु कांग्रेस जब भी संकट का सामना करती है, तो वह अतीत में समाधान खोजती है। 

ऐसा ही एक समाधान कामराज योजना है, जिसे 56 साल पहले मद्रास के तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमार स्वामी कामराज ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस और सरकार को फिर से मजबूत करने के लिए एक नीति के रूप में प्रस्तावित किया था, जिसे उस मुश्किल के दौर में नेहरू ने राजनीतिक कूटनीतिक  ‘हथियार’ की भांति उपयोग किया था। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में संभावित बिखराव को रोकने को शीर्ष नेतृत्व आज पुन: कामराज योजना को अमल में लाने के मंथन में जुटा हुआ है, परंतु इस प्लान को पुन: लागू करने को लेकर भी पार्टी दो खेमों में विभाजित है। आज कांग्रेस के गलियारों में सबसे बड़ा सावल पैदा हुआ है कि क्या आज कामराज प्लान को दोहरा कर कांग्रेस दोबारा मजबूत हो सकती है? 

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कांग्रेस आलाकमान के एक वष्ठि युवा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आज कामराज प्लान को दोहराने का मतलब ही नहीं है। 1960 के दशक में कांग्रेस बहुत ताकतवर थी परंतु आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है। देश भर में कांग्रेस मात्र चार-पांच राज्यों तक सिमट कर रह गई है। अगर उन राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस्तीफा दे दें तो और बुरी स्थिति हो जाएगी। भारत को लोकतांत्रिक देश के तौर पर आगे बढ़ाने के लिए एक मजबूत विपक्ष होना बहुत जरूरी है। कांग्रेस को दोबारा खड़ा करने के लिए एक नई नीति की जरूरत होगी। कांग्रेस को जल्द से जल्द नया अध्यक्ष चुन लेना चाहिए और यह चुनाव किसी तिकड़मबाजी से नहीं होना चाहिए। वहीं कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है किभले ही आज की राजनीतिक परिस्थितियों में कामराज प्लान को दोहराना कांग्रेस से लिए सही न हो लेकिन अपना वजूद बचाए रखने के लिए किसी कामराज की कांग्रेस को सख्त जरूरत है जो कांग्रेस को बिखरने से बचाने के लिए कोई अचूक उपाय बता सके। 

आखिर क्या है कामराज प्लान
1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार तीसरी बार जीत मिली। प. जवाहर लाल नेहरू लगातार चौथी बार देश के प्रधानमंत्री बने। इसके कुछ ही महीनों बाद चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ। इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठने लगे। उधर वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने देश की जनता पर भारी टैक्स का बोझ डाल दिया। ऐसे में जनता के बीच कांग्रेस को लेकर भरोसा डगमगाने लगा। इसकी झलक तब दिखी, जब 1963 में हुए 3 लोकसभा उपचुनावों में कांग्रेस हार गई। कांग्रेस की आधिकारिक वैबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, संकट की इस घड़ी में कामराज ने नेहरू को एक प्लान सुझाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को सरकार में अपने पद छोड़कर संगठन के लिए काम करना चाहिए। 

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इस प्लान को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने मंजूरी दे दी और 2 महीने के अंदर ही यह लागू हो गया। खुद कुमारस्वामी कामराज ने इसी प्लान के तहत 2 अक्तूबर 1963 को मद्रास के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस दौरान कामराज, बीजू पटनायक और एस.के. पाटिल सहित 6 मुख्यमंत्रियों और मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और लाल बहादुर शास्त्री सहित 6 मंत्रियों ने अपने पद छोड़े थे। इसके बाद ये सभी पार्टी के लिए काम करने में जुट गए। कामराज प्लान लागू होने के बाद 9 अक्तूबर 1963 को कुमारस्वामी कामराज कांग्रेस के अध्यक्ष बना दिए गए। वहीं नेहरू ने शास्त्री को बिना विभाग का मंत्री बना दिया और शास्त्री उप-प्रधानमंत्री की तरह काम करने लगे। ऐसा करके नेहरू ने शास्त्री को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। कुछ समय पहले तक जिस कांग्रेस में कलह के आसार दिख रहे थे, उसमें बिना किसी टकराव के ये बदलाव हो जाना छोटी बात नहीं थी। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। माना जाता है कि उनके कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।

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पार्टी में अस्थिरता का हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली व झारखंड के विधानसभा चुनावों पर पड़ रहा दुष्प्रभावआगामी कुछ महीनों में देश के 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और झारखंड, इन चारों राज्यों में कांग्रेस अहम पार्टी रही है, लेकिन इस वक्त कांग्रेस की तरफ से इन राज्यों में चुनावों की भी कोई तैयारी नहीं दिखाई दे रही है जिस कारण वह विरोधी पाॢटयों से खासी पिछड़ रही है। अस्थिरता के माहौल से पार्टी की चारों राज्यों के चुनावों की तैयारियों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। कांग्रेस को आज पार्टी में स्थिरता लाना जरूरी है ताकि आने वाले 4 विधानसभा चुनावों में एक राष्ट्रीय पार्टी की तरह चुनाव लड़ सके। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि जब तक नए अध्यक्ष पर कोई राय नहीं बनती है। तब तक सोनिया गांधी वह भूमिका निभा सकती हैं।

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