2 दशकों में डेरा प्रमुख के साथ ही खत्म हुई डेरे की सियासी लंका

Edited By Vatika,Updated: 18 Jan, 2019 08:50 AM

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साध्वी दुष्कर्म केस में 20 साल की सजा भुगत रहे डेरा सिरसा के प्रमुख के विरुद्ध आज आए ताजा प्रथम फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि डेरा प्रमुख की जिंदगी अब जल्द मुक्ति नहीं पा सकती है। करीब डेढ़ वर्ष पहले जिस व्यक्ति की समूचे देश में तूती बोलती थी,...

श्री आनंदपुर साहिब(शमशेर सिंह डूमेवाल): साध्वी दुष्कर्म केस में 20 साल की सजा भुगत रहे डेरा सिरसा के प्रमुख के विरुद्ध आज आए ताजा प्रथम फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि डेरा प्रमुख की जिंदगी अब जल्द मुक्ति नहीं पा सकती है। करीब डेढ़ वर्ष पहले जिस व्यक्ति की समूचे देश में तूती बोलती थी, उसका आदेश उसके करोड़ों श्रद्धालु रब का हुक्म मान कर स्वीकारते थे, आज कुदरत ने उसके सितारे उलटे कर उसको संगीन जुर्मों के तहत जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया है।
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मैनेजर कत्ल कांड व साधुओं को नपुंसक बनाने के मामलों का होगा फैसला 

आस की जा रही है कि यह जुर्म उसको कभी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि मैनेजर रणजीत सिंह कत्ल कांड और 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के मामले जो सुनवाई के बिल्कुल निकट हैं उसकी मुश्किलें और बढ़ाएंगे। ऐसी स्थिति में सवाल पैदा होता है कि डेरा प्रमुख के साथ उसकी सियासी लंका भी खत्म हो जाएगी। समझा जा रहा है कि डेरे का अपना दो दशकों का वर्चस्व प्रभावहीन हो जाएगा। डेरे का कोई भी गद्दीनशीन न तो डेरा प्रमुख की तर्ज पर सियासी रिपोर्ट चला सकेगा और न ही डेरा प्रमुख के समय के वोट बैंक को बरकरार रखा जा सकेगा। इसलिए 1998 से चली डेरे की सियासी शतरंज 2018 में समाप्त होती निश्चित समझी जा रही है। इसका सबसे बड़ा पहलू यह है कि एक साधू के रूप में डेरा प्रमुख का छुपा शैतान, कातिल और हवसी किरदार डेरे के वोट बैंक के बड़े हिस्से को डेरे से दूर ले जा चुका है।
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1998 में डेरे की सियासी पकड़ हुई मजबूत 

डेरे की सियासी पकड़ 1998 में तब मजबूत हुई थी जब 1998 में पहली बार लोकसभा चुनावों में अकाली-भाजपा को समर्थन दिया गया। इस दौरान पंजाब की कुल 13 लोकसभा सीटों पर तब अकाली-भाजपा गठजोड़ काबिज हो गया और कांग्रेस का पंजाब में बुरी तरह सफाया हो गया। यहां तक कि मौजूदा मुख्यमंत्री पंजाब कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भी पटियाला लोकसभा इलैक्शन प्रोफैसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा से हार गए। यह डेरे की सियासी शतरंज का आगाज था, फिर कुछ महीने बाद केंद्र की वाजपेयी सरकार गिर गई और देशभर में लोकसभा इलैक्शन आ गए। इस दौरान 1998 के अनुभव के आधार पर सियासी धड़ों ने वोट बैंक बनाने के लिए पुन: पैंतरा बरता।

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2007 के चुनाव में डेरे ने की कांग्रेस की मदद

2007 के पंजाब विधानसभा चुनाव में डेरे के सियासी विंग ने खुल कर कांग्रेस की मदद की थी, जिसके परिणामस्वरूप प्रदेश भर में हारी कांग्रेस ने मालवा पट्टी की 40 से ज्यादा सीटें जीत कर सियासी क्षेत्र में यह प्रभाव दे दिया था कि उक्त सीटों पर जीत का आधार सिर्फ डेरे का वोट बैंक ही बना है, जबकि वास्तव में कांग्रेस की जीत का बड़ा कारण कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की तरफ से पंजाब के पानी संबंधी लिए सख्त स्टैंड और मालवा पट्टी के किसानों को बड़े पैमाने पर प्रदान की सुविधाएं थीं। कैप्टन का मूल मालवे के साथ जुड़ा होना भी इसका एक बड़ा कारण था। 
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जाम-ए-इंसा पिलाकर सिख भावनाओं से किया खिलवाड़

2007 में पंजाब में बादल सरकार बनते ही डेरा प्रमुख ने डेरा सलाबतपुर (बठिंडा) में दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी जैसी पौशाक पहन कर और उनकी तर्ज पर जाम-ए-इंसा पिलाकर सिख भावनाओं का जो खिलवाड़ किया, उसने डेरा प्रमुख और सिखों के बीच नफरत की एक बड़ी लाइन खींच दी, पर बादल सरकार ने 2007 से 2017 के शासनकाल के दौरान समय-समय पर वोट बैंक को तरजीह देकर डेरा प्रमुख को गुप्त एजैंडे द्वारा निरंतर बचाने की कोशिश की। लोकसभा हलका बठिंडा से हरसिमरत बादल की दो बार लोकसभा इलैक्शन को डेरा प्रमुख ने खुलकर हिमायत की और उनकी जीत डेरा प्रमुख के भ्रम को और मजबूत करती रही। इस दौरान हरियाणा में भाजपा की खट्टर सरकार स्थापित होने से डेरा प्रमुख का सियासी भ्रम उसको 2014 में मिली विधानसभा इलैक्शन में दखल देने के लिए उत्साहित कर गया पर उसकी हिमायत प्राप्त भाजपा को 70 सीटों में से महज 3 सीटें प्राप्त हुईं।

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