घग्गर का दर्द': कभी इस गंदे नाले के पानी से बना करता था प्रसाद!

Edited By Updated: 06 May, 2017 02:46 PM

ghagra dam

किसी समय पवित्र सरस्वती नदी कहलाने वाला घग्गर दरिया अब गंदे नाले के तौर पर मशहूर है। जहां किसी समय इसका पवित्र पानी डेरे व

भटिंडा (बलविंद्र): किसी समय पवित्र सरस्वती नदी कहलाने वाला घग्गर दरिया अब गंदे नाले के तौर पर मशहूर है। जहां किसी समय इसका पवित्र पानी डेरे व मंदिरों में प्रसाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था आज वह पानी पशुओं व फसलों के लिए भी जहरीला करार दे दिया गया है। धर्म के ठेकेदार कहलाने वालों को कोई शर्म नहीं कि वे घग्गर की पवित्रता को फिर सुरजीत करने के लिए कोई कदम उठाएं। 

घग्गर के किनारे पर अनेक डेरे व मंदिर: हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में बहते घग्गर के किनारे पर सैंकड़ों गांव व शहर हैं। हर 15-20 गांव पीछे घग्गर के किनारे पर एक डेरा या मंदिर स्थित है। कुदरती पानी के वसीले कारण ही ये धार्मिक स्थान घग्गर के किनारे पर स्थापित किए गए हैं। पहले इन धार्मिक स्थानों पर लोगों के पीने, प्रसाद या लंगर आदि बनाने के लिए घग्गर के पानी का प्रयोग किया जाता था। 

मैं खुद घग्गर के पानी से प्रसाद बनाता था: बाबा केवल सिंह : बाबा हकताला जी द्वारा 400 वर्ष पहले घग्गर के किनारे पर अपनी सरां बनाई गई थी, जिसको डेरा बाबा हकताला जी कहा जाने लगा। यह अंग्रेजों के लिए पानी भंडार करने का जरिया भी रहा है। वर्ष 1986 से डेरे में सेवा निभा रहे बाबा केवल दास 108 ने बताया कि वह खुद घग्गर के पानी से प्रसाद बनाते रहे हैं। उन्हें अच्छी तरह याद है कि कपड़े से छानकर घड़ों में पानी लाते थे जो बहुत साफ  व पवित्र होता था। अच्छा नहीं लगता कि उस घग्गर दरिया को अब घग्गर नाला कहना पड़ रहा है। इसका पानी न सिर्फ गंदा, बल्कि जहरीला भी हो चुका है, जोकि इलाके में बीमारियां फैला रहा है। 

क्या हैं धार्मिक संस्थाएं: घग्गर किनारे रहते शहरों व गांवों में अनेक धार्मिक संस्थाएं हैं, जो जानती हैं कि हिंदू धर्म में पवित्र सरस्वती नदी का क्या महत्व था लेकिन अब वह पवित्र नहीं गंदा नाला बन चुकी है। इन धार्मिक संस्थाओं को चाहिए था कि वे घग्गर की पवित्र को बनाने के लिए कोई उचित प्रबंध करती परन्तु ऐसा नहीं हो सकता। अगर संस्थाएं घग्गर के लिए कुछ नहीं करती तो इनको अपना वजूद कायम रखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। डेरा बाबा हकताला के मुखी बाबा केवल दास ने बताया कि अब भी मौका है कि धार्मिक संस्थाएं घग्गर को बनाने के लिए एक लहर शुरू करे नहीं तो घग्गर का बचा नामो-निशान भी खत्म हो जाएगा। 

कई मुहिमें चलाई गईं लेकिन
नव निर्माण फाऊंडेशन सरदूलगढ़ के प्रो. बिक्करजीत सिंह और भरत करंडी ने बताया कि वे कई बार घग्गर बचाओ मुहिम चला चुके हैं लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रयास वैल्फेयर चैरीटेबल ट्रस्ट, सरदूलगढ़ के अध्यक्ष काका उप्पल और सचिव गुरलाभ सोनी ने बताया कि इन क्षेत्र के गांवों में कई मैडीकल चैकअप कैंप लगाए, जिससे काला पीलिया के सैंकड़ों मरीज सामने आए। यह बात दिल्ली सरकार तक तो पहुंची लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं सरकी। अंत कुछ संस्थाओं ने घग्गर बचाने का मामला जरूर उठाया लेकिन सरकार या लोगों का साथ न मिलने कारण यह मुहिम बीच में दम तोड़ गई। 

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