Edited By Updated: 20 Feb, 2017 02:11 PM
विधानसभा चुनावों में सियासी लाभ लेने के लिए धड़ाधड़ विकास कार्यों के नींव पत्थर रख दिए गए थे। इनमें से अधिकतर तो शुरू ही नहीं हुए। जो शुरू भी हुए वह अधर में लटके हैं। इसके चलते जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
लुधियाना(हितेश):विधानसभा चुनावों में सियासी लाभ लेने के लिए धड़ाधड़ विकास कार्यों के नींव पत्थर रख दिए गए थे। इनमें से अधिकतर तो शुरू ही नहीं हुए। जो शुरू भी हुए वह अधर में लटके हैं। इसके चलते जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
फंड के कारण लटकी योजनाएं
अगर लुधियाना की बात करें तो आमदन के मुख्य स्त्रोत चुंगी की वसूली बंद होने के बाद से निगम की आर्थिक गाड़ी पटरी से उतरी हुई है, जिसके विकल्प के तौर पर भले ही सरकार द्वारा वैट की वसूली का हिस्सा भेजा जा रहा है लेकिन उसे कई सालों से बढ़ाया नहीं गया और यह पैसा तनख्वाह व बिजली आदि के जरूरी बिल देने के लिए पूरा नहीं पड़ता। ऊपर से विभिन्न ब्रांचों से संबंधित राजस्व वसूली टारगेट हासिल करने में निगम प्रशासन पूरी तरह फिसड्डी साबित हो रहा है, जिसका सीधा असर विकास पर पड़ रहा है। इसके तहत लंबे समय से कोई नया प्रोजैक्ट शुरू नहीं हो पाया और पक्खोवाल रोड, शास्त्री नगर, गिल रोड दाना मंडी रेलवे क्रासिंग पर पुल, फिरोजपुर रोड की 8 लेनिंग, जगराओं पुल को चौड़ा करने जैसी पुरानी योजनाएं दशकों बाद भी अधूरी हैं।
फाइलों में विकास
यही हाल वार्ड वाइज होने वाले सड़कों, गलियों, पार्कों, पानी-सीवरेज व स्ट्रीट लाइटों के काम का भी है। अधिकतर काम या तो ठेकेदारों ने शुरू ही नहीं किए या बीच में छोड़े हुए हैं। इसे लेकर ऑडिट भी ऐतराज लगा चुकी है कि देरी से पेमैंट जारी करने कारण विकास कार्य तय समय में पूरे नहीं हो पा रहे। इससे बजट टारगेट के भीतर रहकर एस्टीमेट बनाने व खजाने में पैसा होने पर ही नए कामों के टैंडर लगाने बारे कोर्ट व सरकार द्वारा जारी आदेशों का उल्लंघन हो रहा है। फिर भी नेताओं द्वारा लोगों को खुश करने के लिए थोक में फाइलें तैयार करवाने का सिलसिला जारी रहा। इनमें से कुछ काम तो सरकार की ग्रांट या लोन के पैसे से पूरे हो गए जबकि ज्यादातर कामों का ग्राऊंड पर कोई नामोनिशान नहीं है।
कई कामों को रद्द करवाकर लोगों की नाराजगी मोल ली
विधानसभा चुनाव से ऐन पहले जो हलका वाइज विकास कार्य करवाने की योजना बनाई गई, उसकी कमान विपक्षी के अलावा अपने विधायकों व पार्षदों के विरोध के बावजूद सरकार ने चुनाव हार चुके हलका इंचार्जों को सौंप दी जिन्होंने पहले से पास हो चुके कई कामों को रद्द करवाकर लोगों की नाराजगी मोल ली। हालांकि जो विकास कार्य पास हुए उनको पूरा करवाने के लिए सरकार ने लोन लेकर पैसे का प्रबंध कर लिया लेकिन फिर भी काफी काम शुरू नहीं हो पाए या अधर में लटके हुए हैं। इसकी वजह कम तापमान में सड़कें बननी बंद होने के अलावा चुनावी कोड लगने के दौरान कोई काम शुरू न हो पाने के रूप में सामने आई है।
बढ़ सकती है जनता की परेशानी
इस दौर में जहां सड़कें उखाड़ कर छोड़ी हुई हैं या उनकी हालत काफी खस्ता है। चुनाव परिणाम आने तक यह काम शुरू न होने की सूरत में अगली सरकार उनमें बदलाव करके अपनी मर्जी के काम करवाएगी। उसमें सड़कें बनाने के अधिकतर कामों के क्वालिटी कंट्रोल का जनाजा निकलने के कारण कुछ समय बाद ही बिखरने की जांच करवाना भी नई सरकार के एजैंडे में शामिल होगा। इस पहलु के चलते लोग चुनावों में तो नाराज दिखे ही, बाद में चैकिंग के चलते कई काम बंद होने से जनता का गुस्सा और बढऩा तय है। यहां तक कि सरकार द्वारा भेजे फंड लगभग खत्म होने से भी आगे काम चलने पर सवालिया निशान लग ही गया है।
5 पार्षद व 4 पार्षदों के रिश्तेदार लड़ रहे चुनाव
विधानसभा चुनावों में महानगर की कई सीटों पर पिछली बार की तरह इस बार भी विधायक बनने के लिए कई पार्षद मैदान में हैं। इनमें से कुछ तो पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन कामयाब नहीं हुए थे, अब फिर किस्मत आजमा रहे हैं। इसके अलावा कई ऐसे पार्षद भी हैं, जो पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इनके बारे में 11 मार्च को ही पता चल पाएगा कि कौन कामयाब होता है। इसके चलते अगली बार नगर निगम चुनावों में कई वार्डों में चेहरे बदलना तय माना जा रहा है, क्योंकि जो विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं, वे दोबारा कौंसलर का चुनाव लडऩे से गुरेज करेंगे। इनकी जगह उनके परिवार का कोई मैंबर आगे आ सकता है।
*हलका उत्तरी : हेमराज अग्रवाल, रणधीर सीबिया
*आत्म नगर : कमलजीत कड़वल
*हलका पूर्वी- संजय तलवाड़, भोला ग्रेवाल
पूर्व पार्षदों ने भी लड़ा चुनाव
विधानसभा चुनावों में कई ऐसे नेता भी चुनाव लड़ रहे हैं, जो पहले पार्षद रह चुके हैं। इनमें से कुछेक को पहले विधायक बनने में कामयाबी मिल चुकी है लेकिन कई रह गए थे। अब फिर मैदान में हैं।
*हलका उत्तरी : मदन लाल बग्गा (2007), प्रवीण बांसल (2012)
*हलका साऊथ : हीरा सिंह गाबडिय़ा (2012 में) हार गए थे चुनाव
कई पार्षदों के रिश्तेदार हैं मैदान में
विधानसभा चुनावों को लेकर एक रोचक पहलु यह है कि कई मौजूदा पार्षदों के रिश्तेदार इस समय विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमा रहे हैं, जिनकी सफलता के साथ ही पार्षदों का सियासी भविष्य भी जुड़ा हुआ है।
*ममता आशु, पति भारत भूषण आशु (वैस्ट)
*निंदरजीत कौर, पति रंजीत सिंह ढिल्लों (पूर्वी)
*परमजीत कौर, पति दर्शन सिंह शिवालिक (गिल)
*रखविन्द्र सिंह, पिता हीरा सिंह गाबडिय़ा (साऊथ)
पिछली बार पार्षद से बने थे कई विधायक
नगर निगम के कई ऐसे पार्षद रहे हैं, जो बाद में विधानसभा चुनाव जीतकर एम.एल.ए. भी बने। उनमें से पिछली बार खड़े हुए प्रेम मित्तल (मानसा), सतपाल गोसाईं (लुधियाना सैंट्रल) को छोड़कर बाकी अब भी चुनाव लड़ रहे हैं।
*रंजीत ढिल्लों (पूर्वी), भारत भूषण आशू (वैस्ट), सिमरजीत बैंस (आत्म नगर), बलविन्द्र बैंस (साऊथ), दर्शन सिंह शिवालिक (गिल)