Edited By Kalash,Updated: 23 Feb, 2025 06:01 PM
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पिछले कुछ सालों से त्वचा को गौरा करने वाली क्रीम और त्वचा की देखभाल के लिए इंजेक्शन के रूप में ग्लुटाथियोन का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ रहा है।
चंडीगढ़ (पाल): हाल ही में पी.जी.आई. के नैफ्रोलॉजी विभाग की ओ.पी.डी. में एक मरीज किडनी की समस्या लेकर आया। डॉक्टर ने जब डायग्नोज शुरू करने से पहले हिस्ट्री पूछी तो पता चला कि मरीज ने कुछ वक्त से चमड़ी को गोरा करने वाली स्किन व्हाइटनिंग क्रीम का इस्तेमाल कर रहा था। इस क्रीम के इस्तेमाल से मरीज की किडनी में मरकरी यानी पारे की मात्रा को बढ़ने से किडनी में समस्या आ रही थी। डॉक्टर ने मरीज को कुछ वक्त तक इस क्रीम को न लगाने के लिए कहा। क्रीम का इस्तेमाल बंद करने के कुछ समय बाद ही शरीर में पारा की मात्रा अपने आप कम होने लगा।
पी.जी.आई. के नेफ्रोलॉजी विभाग से असिस्टैंट प्रोफेसर. डॉ राजा रामचंद्रन की माने तो पिछले कुछ साल से मरीजों में ऐसे ही मेम्ब्रेनस नैफ्रोपैथी (एम. एन.) के कई मामले सामने आए हैं। इन मरीजों द्वारा ऐसी क्रीम इस्तेमाल करने से प्रोटीन की लीकेज होती है जिससे किडनी के फिल्टर को नुकसान पहुंचाता है।
डॉ. रामचंद्रन के मुताबिक पिछले कुछ सालों से त्वचा को गौरा करने वाली क्रीम और त्वचा की देखभाल के लिए इंजेक्शन के रूप में ग्लुटाथियोन (कुदरती रूप से इंसानी कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक एंटीऑक्सीडेंट) का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में हुई कई रिसर्च में पता चला है कि इनमें से कुछ में पारे की तय सीमा से ज्यादा मात्रा होती है जो किडनी पर असर करती है।
मरीजों को क्रीम के ब्रांड और लेवल की नहीं जानकारी
डॉ. रामचंद्रन बताते हैं कि रिसर्च में पाया गया कि मरीजों से पूछने पर पता चला कि तो कई मरीजों को क्रीम ब्रांड लेबल, उसका नाम या उसके बारे में कुछ नहीं पता था। हमने त्वचा को गौरा करने वाली क्रीम के इस्तेमाल के बाद यूरिन में प्रोटीन रिसाव के नेफ्रोटिक सिंड्रोम के कुछ मामले देखे हैं। इन मरीजो के खून में पारा का स्तर बढ़ा हुआ था। इससे साफ पता चलता है कि इन क्रीमों तय मात्रा से ज्यादा पारा था, जो त्वचा के जरिए से शरीर के अंदर जा रहा था। ऐसे केस किसी एक एरिया नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों और दुनिया भर में इसी तरह के मामलें सामने आए हैं। इस तरह क्रीम के इस्तेमाल से किडनी की बीमारियों के कई मामले केरल में आए हैं।
लोकल स्तर और बिना ब्रांड की क्रीम से बचे
डॉ राजा रामचंद्रन की माने तो पिछले कुछ साल में मेम्ब्रेनस नैफ्रोपैथी (एम.एन.) के केस बढ़े है। त्वचा को गौरा करने वाले ज्यादातर उत्पादों को पूरी से टैस्टिंग और मंजूरी के बाद ही बाजार में उतारा जाता है। इस तरह के मरीजों को वही क्रीम नुकसान कर सकती है जो तय मापदंडों, टेस्टिंग किए बगैर, ज्यादा मात्रा में पारा जैसे हानिकारक कैमिकल ज्यादा मात्रा वाली हो।
किडनी को डैमेज कर सकती है ऐसी क्रीम
डॉ. रामचंद्रन बताते हैं कि इस ऐसी क्रीम के इस्तेमाल से कुछ लोगों में किडनी खराब होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि अप्रमाणित क्रीम ट्रिगर का काम करती हैं। पिछले साल केरल में किए गए एक रिसर्च में सामने आया कि उनमें बहुत ही ज्यादा मात्रा में पारा था। जब पारा त्वचा के जरिए शरीर में जाएगा तो किडनी को डैमेज करेगा। इसका सबसे पहले असर खून का साफ करने वाले किडनी के फिल्टर पर पड़ेगा।
फिल्टर में प्राब्लम आने से किडनी अपनी फंक्शनिंग सही तरीके से नही करने पर खराब होना शुरू हो जाएगी। ऐसी स्थिति में मूत्र में प्रोटीन का रिसाव होता है और इस तरह लगातार रिसाव के बाद प्रोटीन कम होने को अनदेखा किया जाला है तो यह कुछ समय बाद किडनी की गंभीर समस्या बन सकती है।
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