Edited By Kalash,Updated: 08 May, 2025 05:08 PM

एक तरफ शहरी क्षेत्रों में किराना, सब्जी व अन्य जरूरी सामान बेचने वाली दुकानों पर लोगों की भारी भीड़ देखी गई तथा लोग जमाखोरी करते नजर आए
अमृतसर (नीरज): एक तरफ शहरी क्षेत्रों में किराना, सब्जी व अन्य जरूरी सामान बेचने वाली दुकानों पर लोगों की भारी भीड़ देखी गई तथा लोग जमाखोरी करते नजर आए, वहीं दूसरी तरफ भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे गांवों के लोगों के चेहरों पर एक भी शिकन नजर नहीं आई। इन गांवों में अटारी, मोदे, धनोआ, नेष्टा, राजाताल, रत्तनखुर्द, धनोआ खुर्द आदि शामिल हैं, जो सरहदी कटींली तार से 100 से 200 मीटर की दूरी पर स्थित हैं और यहां घरों की छतों से पाकिस्तान को देखा जा सकता है। इन लोगों का कहना है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपना गांव और अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे और सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान को कड़ी टक्कर देकर सबक सिखाएंगे।
धनोआ निवासी राजिंदर सिंह और रौड़ावाला निवासी सक्तर सिंह ने कहा कि देश का इतिहास गवाह है कि जब भी किसी बाहरी ताकत ने भारत पर हमला किया है, तो पंजाब और सीमावर्ती गांवों के लोगों ने सबसे पहले दुश्मन का सामना किया है और हमेशा दुश्मन को कड़ी टक्कर दी है। हम सीमावर्ती गांवों के लोग हैं जो पीठ दिखाना नहीं और दुश्मन की छाती पर गोली चलाना नहीं जानते। सेना के साथ मिलकर जहां खाने-पीने व अन्य सामान से सहयोग किया जाएगा वहीं समय आने पर बंदूकों का भी उपयोग किया जाएगा।
1965-71 के युद्ध में सेना के साथ खड़े लोग
सीमा पर बाड़ के पास रहने वाले सेवा सिंह और जरनैल सिंह ने बताया कि 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान जब भारतीय सेना पाकिस्तान से लड़ रही थी, तब गांव वालों ने खुद ही सेना को राशन-पानी पहुंचाया था और सेना की सप्लाई लाइन को मजबूत किया था। जरुरत पड़ने पर वालंटियर बन कर दुशमन पर हथियार भी चलाए और आज भी सभी लोगों में यही जज्बा कायम है।
विलेज डिफेंस कमेटियां भी अलर्ट पर
सीमावर्ती गांवों में केंद्र व पंजाब सरकार द्वारा गठित विलेज डिफेंस कमेटियां भी इस समय पूरी तरह अलर्ट पर हैं तथा गांवों में विशेष रूप से रात के समय सतर्कता बरती जा रही है तथा हर आने-जाने वाले पर नजर रखी जा रही है। विलेज डिफेंस कमेटियां न केवल तस्करी रोकने में मददगार साबित हुई हैं, बल्कि युद्ध जैसी परिस्थितियों में प्रशासन और सेना को भी पूरा सहयोग दे रही हैं।
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