मरीजों की जगह दीमक खा रहे अस्पताल में पड़ी दवाइयां

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Feb, 2018 12:15 PM

medical medicines replaced with termites instead of patients

पंजाब सरकार द्वारा आए दिन ग्रामीण लोगों को आधुनिक स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के किए जा रहे वायदे महज बयानबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हालात इस कदर बदतर हैं कि 1958 में गांव सेखां कलां व ठठीभाई की सीमा पर साढ़े 8 एकड़ जमीन पर 52 गांवों के...

मोगा (पवन ग्रोवर): पंजाब सरकार द्वारा आए दिन ग्रामीण लोगों को आधुनिक स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के किए जा रहे वायदे महज बयानबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हालात इस कदर बदतर हैं कि 1958 में गांव सेखां कलां व ठठीभाई की सीमा पर साढ़े 8 एकड़ जमीन पर 52 गांवों के लिए बनाया गया 25 बिस्तरों का प्राइमरी हैल्थ सैंटर अपनी होनी खुद बयान कर रहा है। लोग निराश हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग हाथ पर हाथ रखकर सरकारी फाइलों में ही अस्पताल की दशा सुधारने की खानापूर्ति कर रहा है।

विभाग के मुताबिक प्राइमरी हैल्थ सैंटर में 24 घंटे एमरजैंसी सेवाएं, एक्स-रे मशीन व एम्बुलैंस सेवा जरूरी है, लेकिन इस अस्पताल की दुर्दशा का आलम यह है कि चौकीदार की भर्ती न किए जाने के कारण अस्पताल का माइक्रोस्कोप समेत अन्य जरूरी सामान नशेडिय़ों की ओर से चोरी किया जा चुका है। अस्पताल में पड़ी लाखों रुपए की दवाइयां जो मिट्टी बन चुकी हैं तथा उनको दीमक लग चुकी है। यह दीमक अब पूरी इमारत में फैल चुकी है। यही नहीं शूगर के मरीजों के लिए अस्पताल में आई इन्सोलीन लापरवाही के कारण मिट्टी के नीचे दबे पड़े हैं।

हैरानी की बात तो यह है कि अस्पताल का कोई वारिस न होने के कारण दवाइयां खराब हो रही हैं तथा मरीज निजी अस्पतालों से महंगे भाव पर दवाई लेने को मजबूर हैं। ओ.पी.डी. वाले कमरे में डाक्टर व फार्मासिस्ट के लिए रखे गए मेज-कुर्सी पर चाय बनाने वाला पतीला तथा चीनी का डिब्बा पड़ा रहता है ताकि किसी बड़े साहब के दौरे के समय चाय तुरंत तैयार की जा सके। मैडीकल अफसर के कमरे की कुर्सी भी अपने वारिस की प्रतीक्षा में जंगाली गई है।

सरकार को पत्र लिखने के बावजूद नहीं हुई कार्रवाई
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी वैल्फेयर क्लब सेखां कलां का एन.जी.ओ. चला रहे सिमरत सिंह का कहना है कि अस्पताल की इमारत की मुरम्मत व यहां खाली पड़ी आसामियां तुरंत पूरी किए जाने की मांग को लेकर वह सरकार के अलावा विश्व स्वास्थ्य संस्था तक को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन सुधार की बजाय यहां फिट की गई एक्स-रे मशीन किसी और अस्पताल में शिफ्ट कर दी गई है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले सरकार ने 82 लाख रुपए मंजूर किए थे, लेकिन यह ग्रांट फाइलों तक ही सीमित होकर रह गई। किसी समय मरीजों की सहूलियत के लिए बनाया गया इस स्वास्थ्य केन्द्र का आप्रेशन थिएटर अपना वजूद गंवा चुका है।

थिएटर पर लगा ताला इसकी गवाही खुद देता है। इस अस्पताल के साथ जुड़े गांव माड़ी मुस्तफा के निवासी गुरतेज सिंह ने बताया कि इस अस्पताल की खंडहर बनी इमारत नशेडिय़ों तथा गैर-सामाजिक तत्वों के लिए सुरक्षित जगह बन चुकी है। उन्होंने कहा कि मालवा क्षेत्र बीमारियों की चपेट में है, लेकिन इस अस्पताल की अनदेखी गरीब मरीजों की लूट का सबब बन रही है।

1958 में हुआ था अस्पताल का उद्घाटन
इस अस्पताल का उद्घाटन 1958 में ज्ञान सिंह राड़ेवाले ने किया था। इससे अधिक इस क्षेत्र के गांवों के लोगों की बदकिस्मती क्या हो सकती है कि कहने को तो सरकार ने इस प्राइमरी हैल्थ सैंटर में सीनियर मैडीकल अफसर का पद भरा है, लेकिन यह अफसर इस सैंटर में बैठने की बजाय बाघापुराना के अस्पताल में बैठ रहा है। मैडीकल अफसर की तैनाती तो यहां की गई है, लेकिन वह सप्ताह में 3 दिन ही यहां हाजिरी लगवाता है, जबकि बाकी के दिन उसको क्षेत्र के अन्य अस्पतालों में ड्यूटी के लिए भेजा जाता है। यहां सीनियर मैडीकल अफसर के दफ्तर में तैनात जूनियर सहायक हीरा सिंह का कहना है कि चौकीदार के न होने के कारण नशेड़ी रात को ताले तोड़कर बचा-खुचा सरकारी सामान कथित तौर पर चोरी करके ले जाते हैं। उन्होंने मांग की कि सरकार यहां चौकीदार की भर्ती करे।

अस्पताल को दोबारा नसीब नहीं हुआ काटा गया मीटर
गांव सेखां निवासी समाजसेवी नेता डा. राज दुलार सिंह का कहना है कि इससे बुरी बात क्या हो सकती है कि 52 गांवों की पंचायतें व समाजसेवी संगठनों द्वारा दबाव डालने के बाद 24 साल पहले बिल की अदायगी न होने के कारण अस्पताल का काटा गया बिजली का मीटर पिछली अकाली सरकार के समय 24 वर्षों बाद अस्पताल को दोबारा नसीब नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि साढ़े 8 एकड़ की जमीन सरकार की अनदेखी के कारण बंजर तथा इमारत खंडहर बन गई है। यही नहीं, अस्पताल में एमरजैंसी हालात के समय प्रयोग के लिए लाया गया टैलीफोन भी उठाया जा चुका है। यह क्यों हुआ इसका जवाब भी स्वास्थ्य विभाग नहीं दे सका।

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