शहर की स्ट्रीट लाइटों में लगे हुए हैं हजारों नकली बल्ब

Edited By Sunita sarangal,Updated: 09 Feb, 2020 09:49 AM

thousands of fake bulbs are engaged in the street lights of the city

अधिकारियों की मिलीभगत से खेला जा रहा बड़ा खेल

जालंधर(खुराना): नगर निगम शहर की 65 हजार स्ट्रीट लाइटों को जलाने-बुझाने तथा उन्हें मैंटेन करने के बदले में करीब 4 करोड़ रुपए चंद ठेकेदारों को देता है। बदले में टैंडर की शर्त होती है कि शिकायत मिलने पर ठेकेदार तुरंत स्ट्रीट लाइट का फाल्ट दूर करेगा और बल्ब फ्यूज हो जाने पर उसे तुरंत बदला जाएगा। यह भी नियम है कि ठेकेदार स्ट्रीट लाइट प्वाइंट में फिलिप्स, बजाज, क्राम्पटन या सूर्या ब्रांड के बल्ब ही लगाएगा।

देखा जाए तो स्ट्रीट लाइट ठेकेदार कितनी मिन्नतें डलवाकर स्ट्रीट लाइटों को ठीक करते हैं, इसके बारे में शहर के हजारों नागरिक भली-भांति जानते हैं। यहां तक कि चुने हुए पार्षदों तक को अपने वार्ड की स्ट्रीट लाइटें ठीक करवाने के लिए इन ठेकेदारों की मिन्नतें तक करनी पड़ती हैं। स्ट्रीट लाइटों में लगने वाले सामान की क्वालिटी बारे अगर बात करें तो इस समय शहर की हजारों स्ट्रीट लाइटें ऐसी हैं जहां नकली बल्ब लगे हुए हैं। यह भी हो सकता है कि हर दूसरे स्ट्रीट लाइट प्वाइंट में आपको नकली बल्ब मिले। यह सब कुछ नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना होना सम्भव नहीं है। आज भी अगर शहर की स्ट्रीट लाइटों में लगे हुए सामान की क्वालिटी की जांच की जाए तो एक बड़ा स्कैंडल सामने आ सकता है।

एक ठेकेदार की तो एनलिस्टमैंट में है गड़बड़ी
दरअसल पिछले लम्बे समय से स्ट्रीट लाइट मैंटीनैंस के टैंडरों पर कुछेक ठेकेदारों का ही कब्जा रहा है परंतु कांग्रेस सरकार आने के बाद इस कब्जे में कुछ सेंध लगी और कुछ नए ठेकेदारों ने इनमें एंट्री की। अब नई एंट्री वाले एक ठेकेदार की एनलिस्टमैंट को लेकर भी बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि आरोप है कि इस ठेकेदार ने निगम को बैंक से ली हुई करोड़ों रुपए की साल्वैंसी लैटर की फोटोकापी दे रखी है जबकि वह ओरिजिनल होनी चाहिए। कुछ ठेकेदारों की एनलिस्टमैंट को लेकर फाइल में लगे दस्तावेजों की जांच की मांग भी उठ रही है।

दिल्ली मेक और चाइनीज बल्बों की भरमार
दरअसल कई स्ट्रीट लाइट ठेकेदार फिलिप्स, क्राम्पटन, बजाज तथा सूर्या जैसी कम्पनियों से उनका महंगा माल खरीदने की बजाय दिल्ली का रुख करते हैं जहां उन्हें सस्ते बल्ब मनचाही क्वांटिटी में मिल जाते हैं। कई बार तो दिल्ली मेक बल्बों पर ब्रांडिड कम्पनियों के मार्क भी लगे होते हैं। यह माल दो नम्बर में रेलवे या ट्रांसपोर्ट कम्पनियों के माध्यम से आसानी से जालंधर पहुंच जाता है।

इसके अलावा कुछ स्ट्रीट लाइट ठेकेदारों ने कुछ माह पहले प्वाइंटों में सस्ते चाइनीज पत्ते लगाने का धंधा शुरू किया था परंतु उसका पर्दाफाश हो जाने के बाद कई ठेकेदारों ने चाइनीज बल्ब लगाने शुरू कर दिए, जो डायरैक्ट प्वाइंट में फिट हो जाते हैं और उन्हें जलाने के लिए चोक इत्यादि की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसके अलावा जहां चोक लगाई जाती है वहां भी कॉपर की बजाय सस्ती क्वालिटी वाली सिल्वर की चोक फिट कर दी जाती है जो कुछ ही दिनों बाद खराब हो जाती है। नगर निगम के अधिकारी हर साल ठेकेदारों को करोड़ों रुपए का भुगतान तो कर देते हैं परंतु उन्होंने शायद ही कभी स्ट्रीट लाइटों में लगे सामान की क्वालिटी की जांच की हो।

विधायक और मेयर भी नहीं लगवा पाए जुर्माना
स्ट्रीट लाइट मैंटीनैंस के टैंडर अलॉट करते समय एक कड़ा नियम है कि यदि बंद स्ट्रीट लाइट प्वाइंट को ठेकेदार 48 घंटे के भीतर ठीक नहीं करता तो उसे प्रति प्वाइंट 50 रुपए जुर्माना होगा और अगर प्वाइंट एक सप्ताह तक भी ठीक नहीं होता तो जुर्माना 200 रुपए प्रति प्वाइंट हो जाएगा। अब शहर निवासी खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि शहर की स्ट्रीट लाइटें कई बार महीना-महीना बंद रहती हैं। ऐसे में अगर निगमाधिकारी सही तरीके से जुर्माने लगाएं तो ठेकेदारों को अपने पल्ले से निगम को कुछ देकर जाना पड़ेगा।

वहीं दूसरी ओर निगमाधिकारियों और आधा दर्जन ठेकेदारों की सैटिंग इस कदर जबरदस्त है कि इनके सामने विधायक और मेयर तक फेल हो जाते हैं। मेयर जगदीश राजा खुद मानते हैं कि उनके कहने पर भी अधिकारी इन ठेकेदारों पर जुर्माने नहीं लगाते। पिछले दिनों विधायक बावा हैनरी और उनके हलके के कई पार्षदों ने नार्थ हलके की सैंकड़ों बंद पड़ी स्ट्रीट लाइटों बारे शिकायत मेयर को सौंप कर कई लाख रुपए जुर्माना कैल्कुलेट किया था परंतु वह जुर्माना भी नहीं लग पाया और ठेकेदार का कुछ नहीं बिगड़ा। इसी सैटिंग के दम पर ठेकेदारों को बहुत कम जुर्माना लगाया जाता है ताकि फाइल का पेट भी भरा जा सके।

ठेकेदारों पर हो सकती है एफ.आई.आर.
इन दिनों स्ट्रीट लाइट के कुछ ठेकेदारों ने निगम पर दबाव बनाने हेतु स्ट्रीट लाइट जलाने-बुझाने वाली तारों को काटने का सिलसिला शुरू कर रखा है ताकि शहर अंधेरे में डूबा रहे और उनके पूल हुए टैंडर सिरे चढ़ सकें। निगमाधिकारी चाहें तो ऐसे ठेकेदारों पर सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने की धारा के तहत एफ.आई.आर. तक दर्ज करवा सकते हैं क्योंकि इस समय स्ट्रीट लाइट ठेकेदारों का कोई लेना-देना शहर की स्ट्रीट लाइटों से नहीं है और उनके ठेके 31 जनवरी को खत्म हो चुके हैं।

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