‘वोट प्रसैंटेज बढऩे से टूटते हैं राजनीतिक मिथक’

Edited By Updated: 30 Jan, 2017 02:21 AM

vote prasantej break by increased political myth

1967 के पंजाब विधानसभा ....

जालंधर(इनपुट इलैक्शन डैस्क): 1967 के पंजाब विधानसभा चुनावों में 71.18 पोलिंग प्रसैंटेज में बढ़ौतरी कर पूरे देश में सनसनीखेज रिकार्ड कायम कर दिया था। राज्य में कम साक्षरता दर होने के बावजूद इस उपलब्धि को लेकर भारतीय चुनाव आयोग गद्गद् था लेकिन इसके बाद से राज्य में ऐसे घटनाक्रम शुरू हो गए कि अगले 50 साल तक 8 प्रसैंट पोङ्क्षलग भी नहीं बढ़ पाया। राज्य के अंतिम विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो 2012 में 78.57 प्रसैंट पोङ्क्षलग दर्ज की गई । यह 1969 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले महज 6 प्रसैंट ही अधिक है।  


राजनीतिक विशेषज्ञ इसके पीछे कई घटनाक्रमों को कारण मानते हैं जिसमें आतंकवाद भी प्रमुख है। चुनाव आयोग 2017 के विधानसभा चुनावों में पोङ्क्षलग प्रसैंट की बढ़ौतरी को लेकर गंभीर है। पोङ्क्षलग को 80 प्रसैंट से ऊपर ले जाने के लिए कई अहम वोटिंग कैंपेन चलाए जा रहे हैं और इसके लिए कई बड़ी हस्तियों को ब्रांड एम्बैसेडर बनाया गया है। 


1972 के विधानसभा चुनावों से गिरने लगा था ग्राफ 
राज्य के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो 1972 से पोङ्क्षलग प्रसैंट में गिरावट दर्ज आनी शुरू हो गई। यह दर तेजी से नीचे गिरी और 1992 के विधानसभा चुनावों में 23.82 प्रसैंट तक लुढ़क गई। वर्ष 1992 के विधानसभा चुनावों में दर्ज सबसे कम पोङ्क्षलग प्रसैंटज के पीछे अकाली दल का चुनावों का बायकाट करना एक प्रमुख कारण बताया गया लेकिन 1972 से लेकर 1992 तक का यह राज्य का वह काला अध्याय था जब लोगों के बीच लोकतंत्र को लेकर आस्था कम हुई। हालांकि सरकार के प्रयासों से लोगों के बीच फिर लोकतंत्र के प्रति आस्था जगी और 1997 से पोङ्क्षलग प्रसैंटज का ग्राफ फिर ऊपर उठना शुरू हो गया।

 

1967 के चुनावों में 71.18 त्न पोलिंग दर्ज कर बनाया था रिकार्ड

वर्ष       पोलिंग (प्रतिशत में)        सरकार बनी
2012    78.57                         अकाली-भाजपा
2007    75.45                         अकाली-भाजपा
2002    65.14                         कांग्रेस
1997    68.73                         अकाली-भाजपा
1992    23.82                         कांग्रेस
1985    67.53                         शिअद
1980    64.33                         कांग्रेस
1977    65.37                         शिअद
1972    68.64                         कांग्रेस
1969    72.27                         कांग्रेस
1967    71.18                         कांग्रेस
1962    63.44                         कांग्रेस
1957    57.72                         कांग्रेस
1951    57.85                         कांग्रेस

 

पहले चुनाव से ही जागरूक दिखा वोटर 
चुनाव आयोग में दर्ज पोङ्क्षलग के रिकार्ड पर गौर करें तो 1951 से ही पंजाब में वोटिंग को लेकर जागरूकता दर्ज की गई है। जब देश के अन्य हिस्सों में लोगों को वोटिंग करने के बारे में जागरूक किया जा रहा था तो पंजाब ने 57.85 प्रसैंट पोङ्क्षलग करके कांग्रेस को सत्ता में काबिज कर दिया। पहले चुनाव के बाद से ही राज्य के प्रत्येक चुनाव में पोङ्क्षलग प्रसैंटज में बढ़ौतरी दर्ज होती गई। वर्ष 1962 के चुनावों में पोङ्क्षलग 60 प्रसैंट को पार कर गई थी। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि 1962 में दर्ज 63.44 प्रसैंट पोङ्क्षलग को देखते हुए तत्कालीन राजनीतिज्ञ उम्मीद कर रहे थे कि जल्द ही पंजाब के सभी वोटर पूरी चुनावी प्रक्रिया में खुलकर हिस्सा लेना शुरू कर देंगे और अगले कुछ वर्षों में पोङ्क्षलग 80 प्रसैंट को पार कर जाएगी। यह भारतीय राजनीति के लिए एक सुखद संकेत थे।


अन्य प्रदेशों से अलग पंजाब
पंजाब की राजनीति ने देश के कई राजनीतिक मिथकों को तोड़ा है। अमूमन राजनीति में यह धारणा है कि आम या विधानसभा चुनावों में वोट प्रसैंट में बढ़त देखने को मिले तो सरकारें बदल जाती हैं लेकिन पंजाब में ऐसा नहीं है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव इसके गवाह हैं। इन चुनावों में वोट प्रसैंट में बढ़ौतरी के बावजूद ‘अकाली-भाजपा’ की सरकार रिपीट हुई। 


हालांकि पोङ्क्षलग के दिन दर्ज हुई 78.57 प्रसैंट पोङ्क्षलग को लेकर पूरे राज्य में चर्चा थी कि कांग्रेस सरकार अकाली-भाजपा को हराकर सत्ता में काबिज हो रही है। बढ़े हुए पोङ्क्षलग प्रसैंट को देखते हुए ऐसी गलतफहमी पैदा हुई कि विभागों के अधिकारियों तक की लिस्टें बननी शुरू हो गईं। इसके साथ ही कांग्रेस में मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले नेताओं की चर्चाओं का दौर तक शुरू हो गया लेकिन जैसे ही 2012 के चुनावी नतीजे बाहर आए तो इसने पूरे देश के नागरिकों को चौंका डाला। पोङ्क्षलग प्रसैंटज में बढ़ौतरी के बावजूद अकाली-भाजपा की सरकार ने रिपीट कर इतिहास रच दिया।  

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