Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Aug, 2017 08:25 AM
डेरा सिरसा प्रमुख को सजा सुनाए जाने वाले दिन और पंजाब के बिगड़े हालातों के मद्देनजर फरीदकोट जिले में चौथे दिन प्रशासन ने सख्ती और बढ़ा दी। जिले को पूरी तरह सील करते हुए सजा का फैसला आने तक कर्फ्यू के दौरान कोई ढील नहीं दी गई।
फरीदकोट(हाली): डेरा सिरसा प्रमुख को सजा सुनाए जाने वाले दिन और पंजाब के बिगड़े हालातों के मद्देनजर फरीदकोट जिले में चौथे दिन प्रशासन ने सख्ती और बढ़ा दी। जिले को पूरी तरह सील करते हुए सजा का फैसला आने तक कर्फ्यू के दौरान कोई ढील नहीं दी गई। जिले को मिलाने वाली सभी सड़कें पूरी तरह सील की हुई थीं और किसी को भी शहर के अंदर दाखिल होने की आज्ञा नहीं दी जा रही थी।
फैसला आने का बाद कफ्र्यू में डील दी गई।बताने योग्य है कि फरीदकोट जिले के करीब एक हजार प्रेमी पंचकूला और सिरसा गए थे। इस कारण 25 अगस्त को जिले में कोई दुखद घटना नहीं घटी परन्तु अब काफी प्रेमी अपने-अपने घरों को वापस आ गए हैं। इसी को लेकर प्रशासन ने चौकसी बढ़ा दी है। रविवार को कफ्र्यू में ढील मिलने के बावजूद जिले भर के तमाम पैट्रोल पंप बंद रहे।
इसी तरह बस और रेल सेवाएं भी मुकम्मल तौर पर बंद रहीं। कफ्र्यू का सबसे अधिक खमियाजा दूध वालों और हलवाइयों को भुगतना पड़ रहा है। दूध का कारोबार करने वाले मलकीत सिंह और गुरनाम सिंह ने कहा कि उसका 3 दिन से दूध नहीं बिक रहा है, जिस कारण उसे घाटा हो रहा है। हलवाई राज कुमार और प्रेम सिंह ने कहा कि पंजाब सरकार ने डेरा प्रमुख के फैसले के बाद हुए नुक्सान की भरपाई के लिए विवरण मांगे हैं। उन्होंने कहा कि दूध वालों और हलवाइयों को भी इस कैटेगरी में शामिल किया जाए और उनके हुए नुक्सान की भरपाई की जाए।
प्रेम सिंह ने बताया कि कफ्र्यू और हालात सुखदायक न होने के कारण उनके काम में 95 प्रतिशत का घाटा पड़ा है। फलों और सब्जियों के विक्रेता भी कर्फ्यू की मार झेल रहे हैं। फरीदकोट की मुख्य सब्जी मंडी पिछले 4 दिनों से बंद पड़ी है। सोमवार को आढ़तियों ने सब्जी मंडी खोली थी परंतु फलों और सब्जियों के व्यापारी मंडियों में सब्जियां लेकर नहीं आए। आढ़ती महेन्द्र कुमार ने कहा कि कफ्र्यू के कारण सब्जी मंडी का समूचा काम प्रभावित हुआ है। चौथे दिन प्रशासन की तरफ से कुछ ज्यादा सख्ती करने के कारण शहर मुकम्मल बंद रहा और कोई भी दुकान नहीं खुली, यहां तक कि दवाओं की भी दुकानें बंद रहीं। निजी अस्पताल के भी दरवाजे बंद थे और सरकारी अस्पतालों में बहुत से डाक्टर गैर उपस्थित थे, जबकि अस्पताल खुले थे। इलाज करवाने के लिए मरीजों को डाक्टर और अन्य प्रबंधक न होने के कारण काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।