बच्चें को अध्यापक व अभिभावक  ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम से बचाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Sep, 2017 09:21 AM

teacher and guardian  protect children from blue whale challenge game

ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है। इसने कई मासूम बच्चों की जान ले ली है और पंजाब में भी इससे पीड़ित बज्जे सामने आने शुरू हो गए हैं, जिसको गंभीरता से लेते हुए अमृतसर

अमृतसर  (नीरज): ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है। इसने कई मासूम बच्चों की जान ले ली है और पंजाब में भी इससे पीड़ित बज्जे सामने आने शुरू हो गए हैं, जिसको गंभीरता से लेते हुए अमृतसर 

 

जिला प्रशासन ने पहले से ही इससे निपटने की तैयारी कर ली है। आज डी.सी. कमलदीप सिंह संघा ने जिले के समूह शिक्षण संस्थानों को नोटिस जारी करके स्कूल प्रबंधकों को इस खतरनाक गेम संबंधी बच्चों का जागरूक करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा शिक्षा विभाग को भी निर्देश दिए हैं कि सभी स्कूल प्रमुखों के साथ बैठक कर उनको ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम के खतरनाक परिणामों से अवगत कराया जाए। डी.सी. ने कहा कि आज जहां इंटरनैट ने पूरी दुनिया को छोटा कर दिया है और इससे भारी ज्ञान भी प्राप्त होता है, वहीं ब्ल्यू व्हेल गेम से बच्चे अपनी जान गंवा रहे हैं। जो बच्चे अपने स्कूल व घरों में इंटरनैट चलाते हैं उन पर खास ध्यान देने की जरूरत है। जो बच्चे मोबाइल फोन पर गेम खेलते हैं उनको इस खतरनाक गेम से बचाने की जरूरत है। 


उन्होंने कहा कि जब बच्चा अकेला रहने की कोशिश करे और रात को जागना शुरू कर दे, इसके अलावा असामान्य हरकतें करे तो उस पर खास ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि इस गेम में शामिल होने वाले बज्जे मानसिक रूप से गुमराह हो जाते हैं। वे आमतौर पर बेचैन रहते हैं और अकेले घूमते हैं। ऊंची इमारतों पर चढऩे का प्रयास करते हैं और ऐसे काम करने की प्रयास करते हैं, जो उनकी उम्र से मेल नहीं खाते हों। जब बच्चे इस प्रकार की हरकत करना शुरू कर दें तो समझ लेना चाहिए कि वह ब्ल्यू व्हेल गेम की गिरफ्त में आ चुका है।माता-पिता को अपने घरों में बच्चों को इस गेम के बुरे परिणामों संबंधी जागरूक करने की जरूरत है।

 

क्या है ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम 
ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम में जो बज्जा फंसता है, उसको गेम एडमिन की तरफ से ऐसे टॉस्क पूरा करने के लिए दिए जाते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं। रात को 12 बजे के बाद यह गेम शुरू होती है, जो बच्चा इस गेम को छोडऩे का प्रयास करता है तो एडमिन की तरफ से उसको मारने या उसके घर वालों को नुक्सान पहुंचाने की धमकी दी जाती है। हालांकि ये धमकियां खोखली होती हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चे इस स्टेज तक पहुंचते-पहुंचते मानसिक रूप से इतना डूब जाते हैं कि वे आत्महत्या तक करने से भी गुरेज नहीं करते हैं। आज जरूरत है हम सभी को अपने बच्चों पर नजर रखने की और उनको समझाने की कि इंटरनैट की दुनिया व असलियत में जमीन-आसमान का अंतर है।

 

परंपरागत खेल व आऊटडोर गेम्स लुप्त होने के चलते बने हालात
कभी जमाना था कि जब बच्चे अपने गली-मोहल्ले में इकट्ठे होकर बांदर किल्ला, छु छपाई, लुकन मीटी, शटापू, गुल्ली-डंडा, रस्साकस्सी, रस्साटप्पी जैसे परंपरागत खेल खेलते थे, जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास होता था, लेकिन आज यह परंपरागत खेल लुप्त हो चुके हैं। सामाजिक माहौल व क्राइम इतना बढ़ चुका है कि बच्चे अपने घर से बाहर निकलने में डरते हैं। यहां तक कि ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को पड़ोसी के घर तक भी नहीं जाने देते हैं। ऐसे में बच्चों का गली-मोहल्ले में परंपरागत खेल खेलना बंद हो गया है। इससे इंडोर गेम्स हावी हो गए हैं, जिसमें बच्चे टी.वी. पर कार्टून चैनल्स देखते हैं।

 

मोबाइल पर इंटरनैट के जरिए गेम्स खेलते हैं, जिसके पॉजीटिव रिजल्ट्स के साथ-साथ नैगेटिव रिजल्ट भी होते हैं। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए व मनोरंजन करने के लिए बच्चे कुछ ऐसी इंटरनैट साइट्स के चक्कर में फंस जाते हैं, जिनसे वे कभी नहीं निकल पाते हैं। एक ऐसी ही नैगेटिव साइट है ब्ल्यू व्हेल चैलेंज गेम, जिसके खिलाफ बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। इंटरनैट की दुनिया से निकालकर बच्चों को असल जिन्दगी में लाने की जरूरत है। आऊटडोर गेम्स के प्रति रुझान लाने की जरूरत है ताकि बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास हो सके। इस काम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका माता-पिता व स्कूलों के अध्यापक ही निभा सकते हैं।

 

सुबह से शाम तक पढ़ाई के बोझ तले दबे रहते हैं ज्यादातर बच्चे
एक तरफ जहां विदेशों में स्कूल व कालेज में पढऩे वाले बच्चों को 3-4 किताबें दी जाती हैं और फिजीकल एक्टीविटीज पर ज्यादा भेजा जाता है, उसके उल्ट आज हमारे देश में बच्चों को पढ़ाई के बोझ के तले इतना दबा दिया गया है कि हर बच्चा 8 से लेकर 10 घंटे तक पढ़ाई के चक्कर में ही फंसा रहता है। सुबह 7 से लेकर शाम के 7 बजे तक उसे पढ़ाई ही पढ़ाई करनी पड़ती है और वह एक किताबी कीड़ा बनकर रह जाता है। ऊपर से आऊटडोर गेम्स खत्म होने के कारण वह अपना मनोरंजन करने के लिए मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देता है और ब्ल्यू व्हैल गेम जैसी खतरनाक गेम में फंस जाता है। शिक्षा का निजीकरण होने के कारण हालात और ज्यादा खतरनाक हो चुके हैं। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना पसंद करते हैं और स्पोर्ट्समैन नहीं बनाते हैं। बच्चों की फिजीकल एक्टीविटी बिल्कुल खत्म हो चुकी है।

 

बैन की जानी चाहिए ब्ल्यू व्हेल गेम
समाज सेवक संजय गुप्ता ने कहा कि भारत सरकार को ब्ल्यू व्हेल गेम को बैन करना चाहिए और इसके प्रबंधकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करके गिरफ्तार करना चाहिए। चाहे जिस भी देश से यह गेम शुरु की जाती है, उसके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि मासूम बच्चों की जान बचाई जा सके।

 

सभी स्कूलों को ब्ल्यू व्हेल गेम संबंधी नोटिस जारी कर दिए गए हैं और जल्द ही स्कूल प्रमुखों के साथ बैठक करके उनको इस गेम के खतरनाक परिणामों संबंधी जागरूक किया जाएगा। बच्चों के माता-पिता को भी अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए और बच्चों को इंटरनैट के बुरे प्रभावों से बचाना चाहिए।                                          -कमलदीप सिंह संघा, डिप्टी कमिश्नर अमृतसर। 

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