सुरेश कुमार प्रकरण का साइड इफैक्ट,कैप्टन हुए पहली बार लाल-पीले

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jan, 2018 09:02 AM

suresh kumar episode s side effect

सुरेश कुमार प्रकरण का साइड इफैक्ट अब पंजाब की राजनीति पर दिखाई देने लगा है।

जालंधर  (राकेश बहल, सोमनाथ कैंथ): सुरेश कुमार प्रकरण का साइड इफैक्ट अब पंजाब की राजनीति पर दिखाई देने लगा है। प्रकरण के चलते विरोधी मुखर हो गए और सचिवालय में सन्नाटा पसरने लगा है। पहले सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने एक अखबार को इंटरव्यू देकर कैप्टन पर हमला बोला। बाजवा काफी समय से मौके की तलाश में थे। मंगलवार को लोकल बॉडी मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने निगम की बैठक का बायकाट कर कड़ा रुख अपना लिया। साथ ही उनके समर्थक पार्षदों ने बैठक का बायकाट कर दिया। इस नए घटनाक्रम से पंजाब की राजनीति में एकदम हलचल शुरू हो गई है।  जिसके चलते कैप्टन गुस्से में नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ इंटैलीजैंस विंग पता लगा रहा है कि इस प्रकरण के पीछे कौन-कौन हैं।    
कैप्टन के विरोधी अचानक सक्रिय : सूत्रों का कहना है कि कैप्टन के विरोधी काफी समय से मौके की तलाश में थे। अब उनको मौका मिल गया है। सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार हालांकि लुधियाना निगम चुनाव के बाद होगा लेकिन अभी से कांग्रेस में कैप्टन विरोधियों ने लॉङ्क्षबग शुरू कर दी है।


 ऐसी चर्चा है कि उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसके लिए 3 नाम हैं।  पहला बह्म महिन्द्रा, दूसरा मनप्रीत बादल और तीसरा नवजोत सिंह सिद्धू।  सूत्रों का कहना है कि सिद्धू को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की ब्रिगेड का सदस्य माना जाता है। सूत्रों का कहना है कि उपमुख्यमंत्री बनाने की बात भी सुरेश कुमार प्रकरण के बाद उठनी शुरू हुई है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह शुरू से उपमुख्यमंत्री बनाने के हक में नहीं थे। कैप्टन को कमजोर होता देख अब पार्टी के अंदर उनके विरोधियों ने उनके फैसलों पर उंगलियां उठानी शुरू कर दी हैं। पी.पी.एस.सी. सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी कांग्रेस के अंदर विरोध के सुर उठने शुरू हो गए हैं। 10 महीने में ऐसा पहली बार हो रहा है जब कांग्रेस के अंदर कैप्टन के फैसलों का विरोध होना शुरू हो गया है। 


आगे की सियासी चुनौतियां 
प्रताप सिंह बाजवा और ज्यादा आक्रामक रुख अपना सकते हैं। उन्हें सिद्धू का साथ भी मिल सकता है। बाजवा वह पहले नेता थे जिन्होंने सिद्धू का कांग्रेस में आने पर स्वागत किया था। दोनों माझा से हैं। दोनों का कोई टकराव भी नहीं है। दोनों राहुल गांधी के खास समझे जाते हैं। ऐसे में अगर ये दोनों मिल जाते हैं तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं। इस बात की भी संभावना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में कैप्टन के विरोधी समझे जाने वाले 1 या 2 विधायकों को मंत्री बना दिया जाए। इसके साथ-साथ कैप्टन के समर्थक मंत्रियों के विभाग बदल दिए जाएं।  राज्य की आॢथक हालत पहले ही ठीक नहीं है। वित्त मंत्री नई परियोजनाएं बनाने से इंकार कर चुके हैं। इसका कारण यह है कि कैप्टन सरकार को सत्ता संभाले एक साल होने को है और सरकार अभी तक पिछली सरकार के समय के बिलों का भुगतान कर रही है। खुद वित्त मंत्री बयान दे चुके हैं कि उनकी सरकार को पटरी पर आते-आते 3 साल गुजर जाएंगे। उसके बाद नई परियोजनाएं बनाई जा सकेंगी।
 सरकार के चौथे साल में नई परियोजनाओं के लिए फंड जुटाए जा सकने की उम्मीद है जबकि दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में किए गए वायदे पूरे करना गले की फांस बन सकता है। किसानों का कर्ज माफी का मामला पहले से फंसा हुआ है। किसानों ने आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। 


क्या एक लॉबी की राजनीति का शिकार हुए सुरेश कुमार 
ऐसी चर्चा है कि सुरेश कुमार एक लॉबी का शिकार हुए हैं। पंजाब की सत्ता पर हमेशा काबिज रहने वाली एक बड़ी लॉबी कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सत्ता से बाहर हो गई है। यहां तक कि बड़े शहरोंमें इस लॉबी का प्रभाव खत्म हो गया है। सूत्रों का कहना है कि पंजाब में सबसे ज्यादा यही लॉबी ताकतवर है। यही लॉबी सुरेश कुमार को सहन नहीं कर पा रही थी क्योंकि वह इस लॉबी से संबंध नहीं रखते हैं इसलिए कई दुश्मन दोस्त बन गए। 

 

कौन-कौन सी बड़ी लॉबी हैं पंजाब में
सत्ता की पावरगेम में हरेक पार्टी के समर्थक अफसर मौजूद हैं। वैसे पंजाब में 2 ही लॉबियां सत्ता पर हावी रही हैं। एक हिन्दू लॉबी और दूसरी जाट लॉबी। इसके अलावा तीसरी दलित लॉबी है जो हिन्दू लॉबी के साथ मिल जाती है। जहां तक सरकार में अफसरों की बात है तो अकाली दल के अपने समर्थक हैं और भाजपा व आर.एस.एस. के अलावा कांग्रेस समर्थक अफसरों की अलग लॉबी है। अब आम आदमी पार्टी के समर्थक अफसरों की लॉबी भी बन गई। ये लॉबियां पुलिस और सिविल दोनों में हैं। सब-डिवीजन से लेकर सचिवालय तक इनका प्रभाव है। सत्ता और पावर की लड़ाई में सत्ता किसी भी दल के पास आए नेताओं के साथ-साथ इन लॉबीज की भी सत्ता आती है। 


प्रशासन और पुलिस में हो सकते हैं फेरबदल 
जिस तरह से हालात चल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में प्रशासन और पुलिस में फेरबदल हो सकता है। आम तौर पर यह फेरबदल मार्च में होता है लेकिन इस बार शायद यह पहले हो जाए।   

 

विपक्ष के एक नेता की भूमिका है इस प्रकरण में 

सत्ता की लड़ाई में विपक्ष के एक बड़े नेता की भी भूमिका है। जैसे-जैसे इस प्रकरण की परतें खुल रही हैं वैसे-वैसे चौंकाने वाले नाम सामने आ रहे हैं। पावर की इस लड़ाई में अफसरों के साथ नेताओं की भी भूमिका है।
 सूत्रों ने बताया है कि विपक्ष के एक नेता ने सरकार बनते ही मुख्यमंत्री को घेरने की रणनीति तैयार कर ली थी। इस नेता को मुख्यमंत्री के स्वभाव का पहले से पता था लेकिन सुरेश कुमार की मुख्यमंत्री दफ्तर में एंट्री ने सारी गेम खराब कर दी। काम ठीक तरह से चलने लग गया। ऐसी चर्चा है कि अफसरों के पीछे यही नेता था। ऐसा कहा जाता है कि इस नेता को भी ऊपर से आदेश मिला था। 

 

सबसे बड़ा सवाल, क्या सुरेश कुमार की वापसी होगी 
क्या सुरेश कुमार की वापसी होगी, यह सवाल इस समय सभी के दिमाग में चल रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि उनके जापान से वापस आने पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह उनसे बात करेंगे, उसके बाद ही कोई फैसला होगा। तब तक ए.जी. अतुल नंदा भी इस मामले में आगे क्या हो सकता है इसकी रिपोर्ट देंगे। सूत्रों का कहना है कि सुरेश कुमार अपने पुराने स्टैंड पर कायम हैं। अब देखना यह होगा कि सी.एम. क्या करते हैं।

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