संगरूर का कुतुबमीनार बहा रहा ‘पथरीले’ आंसू

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Dec, 2017 09:28 AM

sanguroor kutub minar sheds rocky tears

राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर की तर्ज पर बना रियासत जींद की राजधानी रहा ऐतिहासिक शहर संगरूर आज अपनी पुरानी रियासती शान गंवा चुका है और यहां का कुतुबमीनार ‘पथरीले आंसू’ बहा रहा है। इसके चारों ऐतिहासिक दरवाजे गिराकर इसकी पहचान मिटा दी गई है।

संगरूर(बावा): राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर की तर्ज पर बना रियासत जींद की राजधानी रहा ऐतिहासिक शहर संगरूर आज अपनी पुरानी रियासती शान गंवा चुका है और यहां का कुतुबमीनार ‘पथरीले आंसू’ बहा रहा है। इसके चारों ऐतिहासिक दरवाजे गिराकर इसकी पहचान मिटा दी गई है। प्रसिद्ध इतिहासकार कृष्ण बेताब ने अपनी किताब ‘संगर से सतबीर’ (इतिहास रियासत जींद) तक में जींद रियासत के महाराजा रघुबीर सिंह बारे लिखा है कि वह उस समय आधुनिकता के पुजारी थे जिन्होंने संगरूर को अपनी रियासत बनाने से कुछ समय बाद ही इस रियासती शहर को देश का पहला नल के द्वारा पानी सप्लाई करने वाला शहर बना दिया था। बंबाघर की स्थापना संगरूर की शाही फौंडर में की गई थी जहां बने सामान पर मेड इन संगरूर लिखा जाता था।

शहर की बाकी ऐतिहासिक इमारतों की तरह यह भी दम तोड़ चुका है। बंबे घर के अलावा शहर के आसपास खुशबू छोड़ते अनार, नाशपती, जामुन, आम आदि के पौधे भी तहस-नहस कर दिए गए। शहर के बाग उजाड़ दिए गए। किले गिरा दिए गए और दरवाजे, बाजार, ड्यूढिय़ां, फव्वारे, फरासखाने, मोदीखाना, तोशाखाना, जलौखाना, बग्गीखाना, हाथीखाना, जिमखाना, कुताखाना सब मलियामेट कर दिए गए हैं। शहर के बाहर बने चारों तालाब मिट्टी से भर दिए गए हैं। बागों के शहर के तौर पर जाने जाते संगरूर के सीरी बाग, महताब बाग, किशन बाग, आफताब बाग, गुलबहार चमन, दिलशाद चमन, रोशन चमन व लाल बाग समय की सरकारों ने उजाड़ दिए। यह सभी बाग उजाड़कर जिला प्रबंधकीय काम्पलैक्स, जिला कचहरी, बस अड्डा, रिहायशी कालोनियां, स्कूल, स्टेडियम और मत्स्य पालन विभाग के दफ्तर बना दिए गए हैं। 

बंबाघर का मिट चुका है नामो-निशान 
बंबाघर जो 11 बीघे में बना हुआ था। देश की आजादी के बाद इस इमारत को पी.डब्ल्यू.डी. विभाग के हवाले कर दिया गया जहां अब विभाग की तरफ से स्टोर बनाया गया है। बंबाघर की आधी जमीन पर जजों के लिए आवास बना दिए गए हैं और बाकी इमारत की तस्वीर अपनी त्रासदी बयां करती नजर आ रही है। बंबाघर के मुख्य द्वार और एक भीतरी इमारत आज भी पी.डब्ल्यू.डी. विभाग के पास ही है। विरासती इमारत की सिर्फ वह 2 चिमनियां ही निशानी के तौर पर रखी गई हैं बाकी बंबाघर का नामो-निशान मिट चुका है। विभाग के किसी भी अधिकारी ने इस त्रासदी पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

आधुनिक तकनीक के नाम पर बर्बादी
प्रसिद्ध साहित्यकार चरणजीत सिंह उड़ारी ने बताया कि जिस समय बंबाघर से सप्लाई होने वाले पानी से सड़कों पर छिड़काव किया जाता था तो विशेष बात यह थी कि शहर में बनी नालियों की सफाई के लिए बंबाघर से पानी कुछ विशेष प्वाइंटों पर छोड़ा जाता था जिससे शहर की सभी नालियों की सफाई हो जाती थी। उन्होंने बंबाघर के खात्मे पर दुख प्रकट करते कहा कि आधुनिक तकनीक के नाम पर बर्बादी ही हुई है। अब बंबाघर की बची चिमनियां ही एक निशानी हैं यदि यह भी गिर गईं तो रियासती शहर की एक और विरासती निशानी खत्म हो जाएगी। 

संगरूर देश का पहला शहर जहां पानी की सप्लाई नल से होती थी : कृष्ण बेताब
इतिहासकार कृष्ण बेताब के अनुसार संगरूर शहर ही देश का पहला शहर था, जहां पानी की सप्लाई नल से होती थी और यह सिस्टम 1902 से संगरूर में चालू हुआ। इसको बंबाघर के नाम से जाना जाता है, जोकि ऐतिहासिक विरासत का चिन्ह है। बंबा घर से पहले यहां राजे की शाही फौंडरी 1876 में कायम की गई थी, जिसमें हर तरह की मशीनें, खरादे, चक्कियां, इंजन, पानी निकालने के पम्प, लकड़ी के आरे मशीन, वाटर वक्र्स पर कुएं कायम थे। छोटा-मोटा हथियार भी इस शाही फौंडरी में बनाया जाता था। राजा रघुबीर सिंह ने जब यहां तोपे बनानी शुरू की तो अंग्रेजों ने वर्कशाप बंद करवा दी। यह चिमनियां, जिनको शहरवासी संगरूर का कुतुबमीनार कहते थे, वे कारखाने का कच्चा धुआं निकालने के लिए बनाई गई थीं, जो विरासती निशानी के तौर पर भी मौजूद हैं।
 

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