Edited By Updated: 04 Mar, 2017 01:27 AM
पंजाब विधानसभा के लिए 2017 के इस बार हुए चुनाव पिछले सभी चुनावों से.....
जालंधर: पंजाब विधानसभा के लिए 2017 के इस बार हुए चुनाव पिछले सभी चुनावों से दिलचस्प रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि पिछले अधिकतर चुनाव 2 पक्षों के बीच होते थे परंतु इस बार आम आदमी पार्टी पहली बार अकाली दल व कांग्रेस के मुकाबले तीसरे मजबूत विकल्प के रूप में मैदान में थी। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटों पर ‘आप’ की हैरानीजनक जीत के सदंर्भ में इस बार सत्ता विरोधी लहर के कारण भविष्य के परिणामों को लेकर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में तूफान से पहले वाली शांति वाला माहौल बना हुआ है। बेशक दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) चुनाव परिणाम ने पार्टी को कुछ राहत जरूर दी है।
सामाजिक गतिविधियों से हुए दूर
इस समय शिअद की अंदरूनी हालत की बात की जाए तो पार्टी ‘वेट एंड वॉच’ की पॉलिसी अपना रही है। बेशक ‘आप’ व कांग्रेस ने अपनी जीत का हिसाब-किताब लगा कर अपने संभावी मंत्रिमंडल व अधिकारियों की तैनाती के बारे में विचार-विमर्श शुरू कर रखा है, परंतु अकाली नेताओं में अभी ऐसा कुछ नहीं है। इस समय पार्टी का कोई कार्यक्रम भी नहीं हो रहा और न ही प्रमुख अकाली नेता खुल कर सामाजिक गतिविधियों में ही हिस्सा ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी मतदान के बाद इलाज के लिए विदेश चले गए थे और वापस आने के बाद भी वह आराम की मुद्रा में ही हैं। अब तक उन्होंने सिर्फ अधिकारियों के साथ सिर्फ एक मीटिंग एस.वाई.एल. नहर तथा एक मीटिंग आलुओं के मुद्दे पर की है। इसी तरह पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल, सांसद हरसिमरत कौर बादल भी विदेश से कुछ दिन पहले ही वापस लौटे हैं परंतु दरबार साहिब माथा टेकने के अलावा उन्होंने अभी तक पार्टी की कोई बड़ी गतिविधि शुरू नहीं की।
‘आप’ का भय ज्यादा
बेशक इस समय अकाली दल का कोई भी बड़ा नेता 11 मार्च से पहले पार्टी के भविष्य के बारे में बोलने को तैयार नहीं परंतु अंदरूनी तौर पर नेताओं से बात की जाए तो स्पष्ट संकेत मिलता है कि अगर राज्य में हंग सरकार की स्थिति बनती है तो अकाली दल किसी भी हालत में ‘आप’ को सत्ता में आने से रोकने की पॉलिसी पर चलेगा। इसके लिए जरूरत पडऩे पर किसी न किसी तरीके से अप्रत्यक्ष रूप में कांग्रेस को भी सहारा दिया जा सकता है।
अकाली इस समय कांग्रेस के मुकाबले ‘आप’ को ज्यादा खतरनाक मान कर चल रहे हैं। सूत्रों की मानें तो कुछ अकाली नेताओं ने तो 11 मार्च को ‘आप’ की जीत के परिणाम आते ही विदेश की ओर खिसकने की तैयारी तक कर रखी है। अकाली दल को इस समय अंदरूनी तौर पर ‘आप’ का भय ज्यादा सता रहा है।
हार हुई तो शिअद में हो सकती है बगावत
कुछ अकाली नेता यह बात भी अंदरूनी तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि अकाली दल अगर सत्ता में न आया तो पार्टी में बड़ी बगावत भी खड़ी हो सकती है। हार का ठीकरा कुछ नेताओं के सिर फोड़ा जाएगा। इस कारण अकाली दल में इस समय बाहर से बेशक खामोशी लग रही हैं परंतु अंदरूनी तौर पर पार्टी में तूफान मचा है। बेशक 11 मार्च को विधानसभा के चुनाव परिणाम आने हैं परंतु 8 मार्च के बाद अन्य राज्यों में चुनाव खत्म होते ही टी.वी. चैनलों आदि पर शुरू होने वाले एग्जिट पोल तथा सर्वेक्षणों के शुरू होने पर स्थिति काफी हद तक स्पष्ट होनी शुरू हो जाएगी।